Skip to main content

कपाल कुंडला - बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय







कपाल कुंडला


.
लेखक - बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशन वर्ष - १८६६
--------------------------------------------------------------------

मेरी समीक्षा
---------------

बंकिम दा की लेखन इतिहास में यह इनकी रचना श्रेणी में दुसरे स्थान पर आता है। दुर्गेश नंदिनी के पश्चात बंकिम दा ने यह दूसरा उपन्यास "कपाल कुंडला" लिखा। "कपाल कुण्डला" बंकिम दा के बेहतरीन और लोकप्रिय उपन्यासों में से एक माना जाता है। इसका अंग्रेजी, जर्मन, हिंदी, गुजराती, तमिल, तेलुगु और संस्कृत में अनुवाद किया गया है। इस कहानी को Dariapur, Contai में आधुनिक समय के पूर्ब मेदिनीपुर जिले (पश्चिम बंगाल) पश्चिमबंग जहां चट्टोपाध्याय एक डिप्टी मजिस्ट्रेट और डिप्टी कलेक्टर के रूप में सेवा किया था वही के माहौल पर आधारित है मतलब परिवेश वहीँ का प्रयोग किया गया है इस उपन्यास में।

इस उपन्यास के कुछ पात्र और घटनाये इस प्रकार की हैं  जिससे थ्रिलर की थोड़ी बहुत झलक मिलती है। वैसे यह उपन्यास एक ऐसे किरदार कपाल कुंडला नाम की स्त्री पर आधारित है जिसने अपने प्यार का बलिदान दिया। बंकिम दा ने इस उपन्यास में भी स्त्री चरित्र को अपनी पृष्ठभूमि में रखा है।

नवकुमार नाम का नवयुवक गंगासागर तीर्थयात्रा से एक बड़े जहाज से लौट रहा है। अत्यधिक धुंध होने के कारण जहाज भटक जाती है और एक निर्जन द्वीप पर जा लगती है। यात्रियों के लिए भोजन की व्यवस्था के लिए अकेले जंगल में चला जाता है। वापिस आने पर देखता है की जहाज तो जा चूका है। वो द्वीप पर घूमता रहता है, रात्रि होने पर उसकी मुलाक़ात एक तांत्रिक कापालिक से होती है । कापालिक उसे रहने के छत और खाने को भोजन देता है। कापालिक अगले रात्रि पर नवकुमार को अपने तंत्र स्थल पर उसकी बलि देने के लिए ले जाता है। लेकिन दे पाने से पहले ही एक नवयुवती द्वारा बचा लिया जाता है। नवयुवती नवकुमार को एक भैरव मंदिर में ले जाकर छुपा देती है जहाँ उसकी माँ नवयुवती कपालकुंडला के भविष्य की चिंता करती है। कपालकुंडला की माँ बताती है की अब कापालिक कपालकुंडला की बलि देगा। उसकी माँ इसका हल दोनों के विवाह से निकाल लेती है। कपालकुंडला और नवकुमार विवाह करके तत्क्षण द्वीप से निकल जाते हैं।

रास्ते में नवकुमार मोतीबाई नामक एक महिला की सहायता करता है जिसके काफिले को डाकुओं ने लूट लिया था। मोतीबाई नवकुमार का परिचय पाती है तो खुश हो जाती है। मोतीबाई फिर वहां से आगरा को रवाना हो जाती है और अपने आभूषण कपालकुंडला को दे देती है। नवकुमार अपने गाँव सप्तग्राम पहुँचते हैं जहाँ उसके माता-पिटा उसको जीवित देखकर खुश होते हैं और कपालकुंडला को अपने बहु के रूप में अपना लेते हैं। अब कपालकुंडला एक साध्वी जीवन से पारिवारिक जीवन में कदम रखती है। लेकिन वो पारिवारिक जीवन के साथ आपने आप को अभ्यस्त नहीं कर पाती । नवकुमार की बहन उसकी इस कार्य में सहायता करती है। कपालकुंडला पारिवारिक जीवन में आनंद तो लेती है पर समाज की बंदिशों को नहीं मानती।

 कुछ समय बाद मोतीबाई सप्तग्राम आती है वो नवकुमार को अपना असली परिचय देती है। लेकिन नवकुमार उसे स्वीकार करने से माना कर देता है। मोतीबाई इसी उधेरबुन में नदी के किनारे बैठ जाती है जहाँ कापालिक की उस से मुलाक़ात होती है कापालिक उसे बताता है की उसे कपालकुंडला चाहिए और मोतीबाई को नवकुमार। दोनों एक साजिश रचते हैं, मोतीबाई कपालकुंडला को मिलने का संदेशा भिजवाती है।

कपालकुंडला जब मिलने के लिए निकलती है तो नवकुमार उस से प्रश्न पूछता है लेकिन वो सही से जवाब नहीं दे पाती । नवकुमार को कपालकुंडला पर विश्वास नहीं रहता और वो भी उसके पीछे पीछे चला जाता है। नवकुमार को बीच रास्ते में कापालिक मिलता है जो नवकुमार को बताता है की कपालकुंडला ने उसके साथ विश्वासघात किया है और वो किसी पराये पुरुष से मिलने गयी है। वहां कपालकुंडला मिलने के तय स्थान पर जाती है जहा मोती बाई उसे कापालिक के बारे में बताती है और उसके पति के अविश्वास के बारे में भी बताती है। यह बात सुनकर कपालकुंडला स्वयं को देवी को समर्पित करने की प्रतिज्ञा लेती है। तभी कापालिक नवकुमार को नशे की दवाई पिलाता है और कपालकुंडला को तंत्र स्थान तक ले जाने की आज्ञा देता है। नवकुमार नशे की हालत में कपालकुंडला का हाथ पकड़ कर समुद्र के किनारे ले जाता है जहा कापालिक ने आपना तंत्र- मंत्र का कार्यकर्म पहले से ही शुरू किया होता है। कापालिक नवकुमार को आज्ञा देता है की कपालकुंडला को स्नान करवा लाये। जब नवकुमार कपालकुंडला को समुद्र में हाथ पकड़ के स्नान के लिए ले जाता है तभी नवकुमार को होश आता है की वह क्या अनर्थ कर रहा है। पर कपालकुंडला आपना निश्चय और प्रतिज्ञा भी बताती है और समुद्र में छलांग लगा देती है। नवकुमार भी उसे खोजने के लिए समुद्र में छलांग लगता है पर कपाल कुंडला नहीं मिलती।


एक स्त्री को नवकुमार पा चूका था लेकिन उस पर वह विश्वास न कर सका। चूंकि कपालकुंडला ने साध्वी जीवन बिताया था इसलिए वह पारिवारिक क्रियाकलापों में भाग नहीं ले पाती। अविश्वास ने नवकुमार के परिवार को बर्बाद कर दिया। शायद मोतीबाई को बाद में अहसास हो गया था की कापालिक के साथ नवकुमार को धोखा देने की जो वह बात सोच रही है वह गलत है।

नदी तट का वह क्षण जब कापालिक नवकुमार को नशे की दवाई पिलाता है, उस समय का दृश्य और घटना क्रम बंकिम दा ने ऐसा लिखा है की एक पल को लगेगा की कोई भूत की कहानी आप पढ़ रहे हों। लेकिन इस दृश्य के प्रसंग में ऐसी सार्थकता और सादगी है की आप सहज ही इसमें खो जायेंगे।

नवकुमार और कपालकुंडला की प्रथम मुलाक़ात में ऐसा लगता है की कपालकुंडला कोई आत्मा है जो नवकुमार की रक्षा कर रही है। कापालिक का चरित्र इतना सुदृढ़ है की कपालकुंडला के पश्चात कहानी में वही छाया हुआ है। बंकिम दा स्त्री चरित्र का कितना सुन्दर वर्णन करते हैं इस पुस्तक आप जान सकते हैं। बंकिम दा ने एक ही पुस्तक में स्त्री के विभिन्न रूपों को प्रदर्षित किया है। कपालकुंडला एक स्त्री है लेकिन समाज की बंदिशे मानना नहीं चाहती है। मोतीबाई नवकुमार को पाने के लिए त्रियाचरित्र का प्रयोग करती है। नवकुमार की बहन एक सहेली के रूप में कपालकुंडला की सहायता करती है। कपालकुंडला एक शशक्त, सुदृढ़, सुन्दर, अकल्पनीय किरदार है। मैं शब्दों में बंकिम दा की इस रचना का बखान नहीं कर सकता। नाम भले ही अजीब सा लगता हो लेकिन जिस प्रकार का सौन्दर्य दिखाया बताया गया है वह अलंकारों की सीमा तोड़ देती है। सिर्फ सौंदर्य मात्र ही किसी स्त्री का गहना नहीं होती, उसका बात, व्यवहार, लज्जा, संस्कार आदि यह भी स्त्री की महत्वपूर्ण गहन है।  मोतीबाई के किरदार भी सही है जो नवकुमार को पाने के लिए तत्पर रहती है। बंकिम दा ने मोतीबाई और कपालकुंडला के सौंदर्य की तुलना में मोतीबाई अग्रणी किया लेकिन फिर वही बात आयी की सौंदर्य ही स्त्री का गहना नहीं होता है। नवकुमार अंत में  एक ऐसे किरदार के रूप में उभरते हैं जिसकी कल्पना करना मुश्किल लगता है। भारतीय समाज में मर्दों का अपनी नारी पर विश्वास न करना बहुत ही साधारण है और इस कुरीति से कई घर रोजाना उजड़ते हैं। विश्वास एक अहम् तथ्य है जिसे इंसान अपने अपने तरीके से प्रयोग में लाता है। बंकिम दा ने अपने कई उपन्यासों में नारी चरित्र को गहरा स्थान दिया है।

सिमित किरदार को लेकर इस उपन्यास की कहानी इतने सुन्दर रूप से सिर्फ बंकिम दा ही बढ़ा सकते थे। उनके द्वारा लिखे गए कई उपन्यास वर्त्तमान में भिन्न-भिन्न प्रकाशनों से छपते हैं और आसानी से उपलब्ध हैं। आप सभी के विचारों को इंतज़ार रहेगा।

आभार
राजीव रोशन

Comments

  1. कपाल कुण्डला उपन्यास पढा, अच्छा लगा।
    आपने इस उपन्यास पर बेहतरीन समीक्षा लिखी है।
    धन्यवाद।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

कोहबर की शर्त (लेखक - केशव प्रसाद मिश्र)

कोहबर की शर्त   लेखक - केशव प्रसाद मिश्र वर्षों पहले जब “हम आपके हैं कौन” देखा था तो मुझे खबर भी नहीं था की उस फिल्म की कहानी केशव प्रसाद मिश्र की उपन्यास “कोहबर की शर्त” से ली गयी है। लोग यही कहते थे की कहानी राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म “नदिया के पार” का रीमेक है। बाद में “नदिया के पार” भी देखने का मौका मिला और मुझे “नदिया के पार” फिल्म “हम आपके हैं कौन” से ज्यादा पसंद आया। जहाँ “नदिया के पार” की पृष्ठभूमि में भारत के गाँव थे वहीँ “हम आपके हैं कौन” की पृष्ठभूमि में भारत के शहर। मुझे कई वर्षों बाद पता चला की “नदिया के पार” फिल्म हिंदी उपन्यास “कोहबर की शर्त” की कहानी पर आधारित है। तभी से मन में ललक और इच्छा थी की इस उपन्यास को पढ़ा जाए। वैसे भी कहा जाता है की उपन्यास की कहानी और फिल्म की कहानी में बहुत असमानताएं होती हैं। वहीँ यह भी कहा जाता है की फिल्म को देखकर आप उसके मूल उपन्यास या कहानी को जज नहीं कर सकते। हाल ही में मुझे “कोहबर की शर्त” उपन्यास को पढने का मौका मिला। मैं अपने विवाह पर जब गाँव जा रहा था तो आदतन कुछ किताबें ही ले गया था क्यूंकि मुझे साफ़-साफ़ बताया ग...

विषकन्या (समीक्षा)

विषकन्या पुस्तक - विषकन्या लेखक - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक सीरीज - सुनील कुमार चक्रवर्ती (क्राइम रिपोर्टर) ------------------------------------------------------------------------------------------------------------ नेशनल बैंक में पिछले दिनों डाली गयी एक सनसनीखेज डाके के रहस्यों का खुलाशा हो गया। गौरतलब है की एक नए शौपिंग मॉल के उदघाटन के समारोह के दौरान उस मॉल के अन्दर स्थित नेशनल बैंक की नयी शाखा में रूपये डालने आई बैंक की गाडी को हजारों लोगों के सामने लूट लिया गया था। उस दिन शोपिंग मॉल के उदघाटन का दिन था , मॉल प्रबंधन ने इस दिन मॉल में एक कार्निवाल का आयोजन रखा था। कार्निवाल का जिम्मा फ्रेडरिको नामक व्यक्ति को दिया गया था। कार्निवाल बहुत ही सुन्दरता से चल रहा था और बच्चे और उनके माता पिता भी खुश थे। चश्मदीद  गवाहों का कहना था की जब यह कार्निवाल अपने जोरों पर था , उसी समय बैंक की गाड़ी पैसे लेकर आई। गाड़ी में दो गार्ड   रमेश और उमेश सक्सेना दो भाई थे और एक ड्राईवर मोहर सिंह था। उमेश सक्सेना ने बैंक के पिछले हिस्से में जाकर पैसों का थैला उठाया औ...

दुर्गेश नंदिनी - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय

दुर्गेश नंदिनी  लेखक - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय उपन्यास के बारे में कुछ तथ्य ------------------------------ --------- बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखा गया उनके जीवन का पहला उपन्यास था। इसका पहला संस्करण १८६५ में बंगाली में आया। दुर्गेशनंदिनी की समकालीन विद्वानों और समाचार पत्रों के द्वारा अत्यधिक सराहना की गई थी. बंकिम दा के जीवन काल के दौरान इस उपन्यास के चौदह सस्करण छपे। इस उपन्यास का अंग्रेजी संस्करण १८८२ में आया। हिंदी संस्करण १८८५ में आया। इस उपन्यस को पहली बार सन १८७३ में नाटक लिए चुना गया।  ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ यह मुझे कैसे प्राप्त हुआ - मैं अपने दोस्त और सहपाठी मुबारक अली जी को दिल से धन्यवाद् कहना चाहता हूँ की उन्होंने यह पुस्तक पढने के लिए दी। मैंने परसों उन्हें बताया की मेरे पास कोई पुस्तक नहीं है पढने के लिए तो उन्होंने यह नाम सुझाया। सच बताऊ दोस्तों नाम सुनते ही मैं अपनी कुर्सी से उछल पड़ा। मैं बहुत खुश हुआ और अगले दिन अर्थात बीते हुए कल को पुस्तक लाने को ...