बीवी का हत्यारा
“इर्ष्या ही इंसान की
संहारक प्रवृति की जननी होती है।”
“अविश्वास और अनास्था ही
इंसानी रिश्तों को दीमक लगाती है।”
दोस्तों उपरोक्त दोनों ही
सूक्तियां पाठक साहब द्वारा लिखित उपन्यास “बीवी का हत्यारा” से लिया गया है।
“बीवी का हत्यारा” सर सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा लिखित एक बेहतरीन शाहकार है जो
थ्रिलर की श्रेणी में गिना जाता है। लेकिन अभी २ हफ्ते पहले जब मैंने इस पुस्तक को
पढना शुरू किया और अपने मित्रों को बताया की मैं “बीवी का हत्यारा” पढ़ रहा हूँ तो
उनके कमेंट बहुत ही मजाकिया थे। वैसे ऐसा होना भी चाहिए क्यूंकि अभी बमुश्किल एक
महीने ही मेरी शादी को हुए हैं और मैं शादी के बाद पहला उपन्यास पढना शुरू भी किया
तो कौन सा – “बीवी का हत्यारा”। तो ऐसी स्थिति में मेरे मित्रों द्वारा मजाक किया
जाना वाजिब है।
मैं इस उपन्यास को इस बार
से पहले भी, कई बार पढ़ चूका हूँ। लेकिन इस उपन्यास में एक कशिश है जो मुझे इसे
बार-बार पढने को मजबूर कर देती है। इस उपन्यास का केंद्रीय किरदार एक पुलिस इंस्पेक्टर
है जो अविश्वास और अनास्था की एक ऐसी राह पर पड़ता है जहाँ से वापिस लौटना किसी के लिए
भी संभव नहीं हो पाता है। यह अविश्वास और अनास्था उसके जीवन में किसी और के लिए
नहीं बल्कि अपनी पत्नी के लिए पैदा होती है। इस उपन्यास की कई ऐसी घटनाएं है जो इस
किरदार के मन में अविश्वास और अनास्था का बीजारोपण करती है और लगातार उसे बढ़ाती
जाती है। यह तब तक जारी रहता जब तक की वह इस अवस्था तक नहीं पहुँच जाता की वह अपनी
पत्नी के क़त्ल करने की सोच अपने दिमाग में, अपने जहन में कील की तरह ठोक ले।
सबसे पहली घटना जो
इंस्पेक्टर के मन में अविश्वास का बीजारोपण करती है, वह है एक केब्रे डांसर का
मर्डर होना। कमाल का इत्तेफाक यह होता है की इंस्पेक्टर की पत्नी और कैबरे डांसर
का नाम सामान होता है। कैबरे डांसर के मर्डर की तहकीकात के साथ ही साथ इंस्पेक्टर
के मन में अपनी पत्नी के लिए क्रोध और इर्ष्या बढती जाती है जिसके कारण वह अपनी
पत्नी का मर्डर करवा लेने की ठान लेता है। उपन्यास पढ़ते रहने के दौरान आपको पता
चलेगा की कैसे, कैसे एक इंसान जो स्वयं ही समाज का रक्षक है, भक्षक बन जाने जैसा
कार्य करने पर उतारू है। आप पायेंगे की कैसे उसके मन में, दिल में और दिमाग में
अपनी पत्नी के लिए इतना ज़हर भर जाता है की वह उस पाप को करने साहस कर बैठता है जो
विधाता और कानून के नज़रों में अक्षम्य है। आप पायेंगे की कैसे वह कानून के सरंक्षण
में रहकर कानून का इस्तेमाल करके इस अपराध से बचने की योजना बनाता है। उपन्यास में
ज्यों-ज्यों कैबरे डांसर के क़त्ल की गुत्थी सुलझती जाती है त्यों-त्यों एक नए क़त्ल
की योजना उभर कर बाहर आती है।
एक थ्रिलर उपन्यास में जिन
मसालों की आवश्यकता होती है वह सभी आपको इस उपन्यास में जरूर मिलेंगी। वैसे तो
उपन्यास की लम्बाई कम है लेकिन ऐसा आपको कहीं महसूस नहीं होगा। उपन्यास अपने आप
में पूर्ण है। कोई ऐसी घटना नहीं है जिसे सही प्रकार से पाठक साहब ने एक धागे में
पिरोया न हो। अगर किरदारों की बात करूँ तो सभी किरदार इस उपन्यास सही प्रकार से
फिट किये गए हैं। इंस्पेक्टर,सब-इंस्पेक्टर, ACP, कैबरे डांसर के मौत से सम्बंधित
लोग, इंस्पेक्टर की पत्नी आदि सभी अपने आप में अपनी झलक में अच्छी छाप छोड़ जाते हैं।
कोई किरदार ऐसा नहीं नज़र आता जो गैर-जरूरी हो। घटनायों की तरफ आयें तो पता चलता है
की सभी घटनाएं उपन्यास को एक सशक्त उपन्यास बनाने में सहयोगी हैं। अगस्त १९९४ में
पहली बार प्रकाशित हुई यह पुस्तक थ्रिलर की श्रेणी में एक बेहद कामयाब उपन्यास
मानी जाती है।
अब ये बताना भी बहुत जरूरी
है की शादी के तुरंत बाद ही इस उपन्यास को मैंने क्यूँ पढ़ा तो इसका जवाब लेख की
पहली दो सूक्तियां हैं जो हर इंसान को समझ लेना बहुत आवश्यक है।
आजकल मैं “तड़ीपार” पढ़ रहा
हूँ, और “बीवी का हत्यारा” के बाद यह “टाइटल” सूट भी करता है। :)
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