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10 Best SMP Novel: Which Can Be Turn into A Movie In Future

10 Best SMP Novel: Which Can Be Turn into A Movie In Future





आज मैं जिस बात को लेकर आप सभी के पास आया हूँ कोई नयी नहीं है। यह बात बहुत पुरानी है। सर सुरेन्द्र मोहन पाठक साहब के प्रशंसक हमेशा से ऐसी चाहत रखते आये हैं जिसके अनुसार उनका मानना है की पाठक साहब के किसी उपन्यास पर आधारित फिल्म बने। दोस्तों, हम प्रशंसकों की यह चाहत बहुत पुरानी है। लेकिन हमारी यह चाहत हमेशा से एक ख्वाब ही रही है। सुना था कभी की सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यास “डायल १००” पर “लम्बे हाथ” नामक फिल्म बन रही है। लेकिन यह बात कब वर्तमान से समय के गर्त में पहुँच गयी, कुछ पता ही नहीं चला और न ही कोई सही कारण पता लग सका क्यूँ घोषित हुई फिल्म बनी नहीं। आज भी प्रशंसकों के मन में यह प्रश्न है लेकिन जवाब सिफ़र है।

अगर हम पाठक साहब द्वारा लिखित कुछ ऐसे उपन्यासों पर दृष्टि डालें जिस पर भविष्य में फिल्म बन सकती है तो ऐसी उपन्यासों की सूची प्राप्त करना बहुत मुश्किल काम है। फिर भी कई मित्रों से विचार-विमर्श के बाद, मैं आप सभी के सामने १० उपन्यासों के नाम रख रहा हूँ जिन पर फिल्म बन सकती है। इन उपन्यासों की कहानी अपने आप में इतनी जबरदस्त है की निर्माता-निर्देशक आसानी से इन्हें हाथों-हाथ ले सकते हैं। लेकिन ऐसे में एक सवाल उठता है की अभी तक ऐसे निर्माता-निर्देशक क्या अभी तक सोये हुए थे। इस सवाल का जवाब देना मुश्किल नहीं होगा क्यूंकि पाठक साहब ने कई बार अपने साक्षात्कार में कबूल किया है की फिल्मनगरी उन्हें कई बार बुला चुकी है लेकिन उनकी कई ऐसी शर्तें होती हैं जिन पर वे अपनी मोहर नहीं लगा पाते हैं। तो यह कहना गलत होगा की फ़िल्मी दुनिया ही पाठक साहब को नकार रही है जबकि यह भी कहा जा सकता है की पाठक साहब फ़िल्मी-दुनिया के साथ अपना तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं।

खैर समय बहुत तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है इसलिए भविष्य में क्या होगा – क्या नहीं होगा, यह कहना बहुत मुश्किल है। अब मैं आप सभी के सामने उन १० उपन्यासों का जिक्र करने वाला हूँ जिन पर भविष्य में फ़िल्में बनाए जाने की संभावना है।


१) डायल १०० – यह एक थ्रिलर उपन्यास है जिसके केंद्र में एक जाबांज और ईमानदार पुलिस ऑफिसर है तो दूसरी तरफ एक घाघ सीरियल किलर। भूतकाल में इस पर फिल्म बनाने की कोशिश हुई थी लेकिन वह कभी परवान नहीं चढ़ पाई। यह कहानी इन दो किरदारों के बीच के चोर-पुलिस गतिविधि को दर्शाता है। वहीँ, इस उपन्यास में इस पुलिस-ऑफिसर का किरदार इतना सुदृढ़ है की कई प्रशंसक यह कह बैठते हैं की यह किताब तो पुलिस अकैडमी में पढाये जाने लायक है। इस उपन्यास की कहानी को कई भागों में, दोनों ही किरदारों के अनुरूप कहा गया है। ऐसा लगता है की इस कहानी पर अगर फिल्म बने तो जरूर ही चलेगी लेकिन भूतकाल में ऐसे कांसेप्ट पर कई फ़िल्में बन भी चुकी हैं। लेकिन फिर भी अगर कहानी की आत्मा को न मारा जाए, मेरा मतलब कहानी में बदलाव न किया जाए तो यह फिल्म जरूर सुपरहिट होगी। इस कहानी में इमोशन, ड्रामा, रोमांस, थ्रिल और एक्शन सभी हैं इसलिए यह कहानी अपने आप में एक परफेक्ट स्क्रिप्ट है एक फिल्म बनाने के लिए।


२) मेरी जान के दुश्मन – सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा लिखित यह भी एक थ्रिलर उपन्यास है। इस उपन्यास के केंद्र में एक ऐसा किरदार है जो अपने शहर को इसलिए छोड़ कर चला गया था क्यूंकि उसने शहर के एक गुंडे के खिलाफ गवाही दे दी थी। लेकिन कई वर्षों बाद जब वह फिर से उस शहर में एक ट्रक ड्राईवर के तौर पर लौटा तो उसे कैसी-कैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा और कैसे वह इन समस्याओं से जूझ कर अपने अन्दर के डर को भगा कर आगे बढ़ पाया, यह इस कहानी का मूल-मंत्र है। यह कहानी अपने आप में सशक्त है जिसमे आजकल के फिल्मों में डाले जाने वाले सभी मसाले मौजूद हैं। इस प्रकार की कहानी पर कभी कोई फिल्म भी नहीं बनाएगी इसलिए इसका अनोखापन भी इसकी एक खासियत है।


३) १० मिनट – १० मिनट एक थ्रिलर उपन्यास है लेकिन यह प्रेम, बलिदान, षड़यंत्र, घात-आघात-प्रतिघात, ड्रामा, ओपन मर्डर-मिस्ट्री आदि कई प्रकार के मसालों से युक्तायुक्त कहानी है। इस उपन्यास के तीन किरदार ही इस कहानी की जान है। कहानी है एक ऐसे इंसान की जो लड़कियों को अपने कामदेव रुपी जाल में फंसा कर, उन्हें शादी का झांसा या हीरोइन बनाने का झांसा देकर, उनके साथ बदफेली करता है और बाद में फिर से अरब देशों में शेखों के हाथ बेच देता है। इतने पर ही वह नहीं रुकता, जिन लडकियों से शेखों का मन भर जाता है उन्हें वह वहां के वैश्यालय में बेच देता है। ऐसे में इस इंसान के हाथ एक ऐसी लड़की फंसती है जिसको एक सीधा-साधा लड़का प्यार करता है। लड़का उस राक्षस के बारे में लड़की को सब कुछ बताता है लेकिन लड़की पर उस कामदेव रुपी राक्षस का ऐसा रंग चढ़ा होता है की वह लड़के की बात पर कोई विश्वास नहीं करती। ऐसे में लड़का उस राक्षस को इस तरह से मारने की जुगत करता है ताकि राक्षस भी मर जाए और वह कानून के हाथों में भी न फंसे। अपने प्यार को यूँ बर्बाद होता देखने से अच्छा वह उस बिमारी को ही जड़ से मिटा देना चाहता है जिसके कारण ऐसे हालात आये थे। एक परफेक्ट कहानी जिस पर अगर फिल्म बने तो बेशक कामयाबी के नए झंडे गाड़ देगी।


४) कागज़ की नाव – मुंबई स्थित धारावी शहर में गढ़ी गयी यह कहानी है, वहां फल-फूल रहे अपराध और अपराधियों और उस क्षेत्र के एक ईमानदार एवं निष्ठावान इंस्पेक्टर की। इस कहानी की खासियत इसका अनोखापन है जिसमे लेखक ने बखूबी झुग्गी-झोपड़ियों से अपराध को एक वृहद् आकार लेते हुए दर्शाया है। जहाँ कहानी में अपराध और कानून के जबरदस्त टक्कर है वहीँ प्रेम और त्याग के भी अंश हैं। कहानी घटना प्रधान है जिसके कारण सर सुरेन्द्र मोहन पाठक के प्रशंसकों ने बहुत पसंद किया। यह देखना बहुत रोमांचक है की कैसे धारावी जैसे क्षेत्र में पनपते अपराध के हर पौधे को कानून जड़ से उखाड़ पाता है। अगर इस कहानी के ऊपर फिल्म बनाई जाए तो निःसंदेह बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाये बिना नहीं मानेगी।




५) धोखा – सर सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा लिखा गया यह उपन्यास भी थ्रिलर श्रेणी में कई प्रशंसकों का पसंदीदा है। यह उपन्यास एक ऐसे इंसान की कहानी है जो अनजाने में ही सिलसिलेवार तीन कत्लों का चश्मदीद गवाह बन जाता है लेकिन जब वह पुलिस को इन कत्लों की सुचना देकर वापिस मौकायेवारदात पुलिस के साथ आता है तो उसे इन कत्लों का कोई नामोनिशान प्राप्त नहीं होता है। उस इंसान की हर बात झूठ साबित होने पर लोग और पुलिस उसे पागल करार देने लग जाती है। यहाँ तक की दिल्ली का टॉप क्रिमिनोलॉजिस्ट भी उसकी सहायता नहीं कर पाता। कैसे वह इंसान इन हत्याओं की गुत्थी को सुलझा पायेगा या वह पागलखाने का शिकार हो जाएगा। यह उपन्यास एक परफेक्ट स्क्रिप्ट है जिसमे की एक मर्डर मिस्ट्री – थ्रिलर फिल्म की रचना की जा सकती है। लेकिन इस उपन्यास के उपर पॉइंट तो पॉइंट फिल्म बनाना आसान बात नहीं, पर अगर यह संभव भी हुआ तो यह फिल्म सिने दर्शकों के दिमाग की चूले हिला देगा।


6) तीन दिन – तीन दिन उपन्यास अगर आप पढ़ें तो आपको पता चलेगा की यह उपन्यास पूरी तरह से फिल्म बनाने के लिए ही बना है। उपन्यास की कहानी ही नहीं, घटनाएं और किरदार भी फ़िल्मी हैं। मैं यह नहीं कहना चाहता की जैसा उपन्यास की कहानी में दर्शाया गया है वैसा हो नहीं सकता क्यूंकि होने को तो कुछ भी हो सकता है। उपन्यास की कहानी एक ऐसे युवक पर आधारित है जो समाज के लिए अपने आकार को लेकर अनोखा है। ऐसे में मुंबई बंदरगाह के करीब जब एक रात पूरी तरह टुन्न होकर यह युवक अपने जहाज की तरफ जा रहा होता है तो वह अचानक ही एक क़त्ल का चश्मदीद गवाह बन जाता है। वह नशे में लाश को अपने साथ ढोता फिरता है और उससे बात करता रहता है। लेकिन सीमा से अधिक शराब पीने के कारण उसे कुछ याद नहीं रहता है। अगले दिन वह उस युवक को तलाश करना शुरू करता है जिसके साथ उसने रात बिताई थी। इसी तलाश एक दौरान उसकी मुलाक़ात एक लड़की से होती है जिससे वह एक तरफा प्रेम करने लगता है। मैंने जैसा की ऊपर बताया कहानी में थ्रिल, सस्पेंस, रोमांस और ड्रामा का पूरी तरह से इन्वोल्वेमेंट है जिसके कारण यहाँ कहानी एक परफेक्ट स्क्रिप्ट बन जाती है।


७) वहशी – वहशी एक क्राइम थ्रिलर-मर्डर मिस्ट्री- कोर्ट रूम ड्रामा है। कहानी एक हाई प्रोफाइल मर्डर से शुरू होती है जिसमे भारत के एक प्रसिद्ध वकीलों के फर्म आनंद आनंद आनंद एंड एसोसिएट्स के भतीजे को गिरफ्तार कर लिया जाता है। ऐसे में इस फर्म द्वारा मुकेश माथुर नामक नौसिखिये वकील को इस लड़के का केस लड़ने के लिए भेजा जाता है। मुकेश माथुर नौसिखिया होने के बावजूद केस के हर पहलु पर ध्यान देता है ताकि वह उस लड़के को बचा सके। कोर्ट में केस लगता है जहाँ सरकारी वकील यह साबित कर देता है की लड़के ने ही वह मर्डर किया था लेकिन मुकेश माथुर लड़के को बेगुनाह साबित करने में कामयाब हो जाता है। दोनों तरफ से कई गवाहों को पेश किया जाता है और जिसके कारण कई उन बातों से पर्दा भी उठ जाता है जो नहीं होना चाहिए था। यह उपन्यास एक परफेक्ट कोर्ट-रूम ड्रामा है और मुझे याद नहीं की भारत में ऐसा कोर्ट रूम ड्रम किसी लेखक ने लिखा भी होगा। मेरी दिली ख्वाहिश है की इस उपन्यास पर फिल्म जरूर बने।


८) मिडनाइट क्लब – इस उपन्यास की कहानी एक पाठक साहब के जीवन में एक अलग ही मुकाम रखती है। इस उपन्यास के मुख्य किरदार के एक गहरे दोस्त को जब इतना मारा जाता है की वह कुछ बोलने की स्थिति में नहीं होता की कौन उसकी इस हालत का जिम्मेदार है। ऐसे में मुख्य किरदार जब अपने दोस्त के साथ घटी हुई घटना का अवलोकन करता है तो उसे पता चलता है उसका दोस्त उस रात मुंबई की एक क्लब में गया था जहाँ उसकी यह हालत हुई। मुख्य किरदार जो स्वयं एक तालातोड़ है, अपने दोस्त की इस हालत के लिए जिम्मेदार उस व्यक्ति को खोजना शुरू करता है ताकि वह उससे बदला ले सके। एक परफेक्ट और अलग कहानी से भरपूर यह उपन्यास एक शानदार फिल्म को जन्म दे सकता है। बस इंतज़ार है ऐसे निर्माता निर्देशक की जो इसे हाथों-हाथ ले ले और फिल्म बना दे।


९) १ करोड़ का जूता – यह एक बहुत ही जबरदस्त कहानी है जिस पर फिल्म बने तो सुपरहिट जरूर होगी। कहानी ७०-८० के दशक की है और अगर इस पर फिल्म बने तो कहानी को उसी समय में रखना पड़ेगा। कहानी एक ऐसे इंसान की है जिसे हर वर्ष एक तयशुदा रकम अपने पिता की तरफ से आती है। इस इंसान का पिता एक जालसाज था जो उस वक़्त अपने बेटे को छोड़ कर चला गया जब उसे खबर मिल गया था की उसे कानून अपने पंजों में दबोच लेगी। तकरीबन १५-२० वर्षों से उसे एक चिट्ठी और रकम, अपने पिता के तरफ से मिलती रहती थी। हर साल पुलिस और उस कंपनी के लोग जिसमे उसके पिता ने गबन किया था, आते थे ताकि यह पता चल सके की उसके पिता कहाँ हैं और उसे गिरफ्तार कराया जा सके। उस लड़के को पता था की उसके पिता के पास एक जूता था जिसमे वे १०० करोड़ के हीरे रखते थे और जिस रात उसके पिता गायब हुए उस रात वह वही जूता पहन कर गए थे। उस लड़के को अपने पिता को खोज निकालने का ऑफर दिया जाता है और वह स्वीकार कर लेता है। लेकिन जब वह अपने पिता की तलाश करना शुरू करता है तो उसके रास्ते में कई प्रकार के अवरोध आते हैं जो उसे मौत के दरवाजे तक भी ले जाकर खड़ा कर देते हैं। क्यूँ, है न एक लाजवाब कहानी। लेकिन बड़े अफ़सोस की बात है की अब तक इस कहानी पर किसी निर्माता-निर्देशक की नज़र नहीं पड़ी जिसके कारण यह कहानी अभी तक सिर्फ किताबों में ही सिमटा हुआ है।


१०) वन वे स्ट्रीट – दिल्ली में चल रहे ड्रग्स माफियाओं के खिलाफ सुधीर कोहली की छेड़ी गयी जंग की यह कहानी तब शुरू होती है जब एक केस पर काम करते हुए सुधीर के एक साथी का क़त्ल हो जाता है। पुलिस और सुधीर की तहकीकात के बाद पता चलता है की कहीं न कहीं उसके साथी का क़त्ल ड्रग्स के कारण हुआ है। सुधीर दिल्ली के सभी ड्रग्स माफियाओं की तहकीकात करना शुरू करता है ताकि वह पता कर सके की किसने उसके साथी की हत्या की। ऐसे में कई बार सुधीर को अपनी जान भी जोखिम में डालनी पड़ती है। वन वे स्ट्रीट एक थ्रिलर स्टोरी है जिस पर एक तेज रफ़्तार फीचर फिल्म बनाई जा सकती है क्यूंकि ऐसी फ़िल्में कभी दौर से बाहर नहीं होती और सिने दर्शक इन्हें हाथों-हाथ लेते हैं।




मुझे आशा है की आप सभी को यह लेख बहुत पसंद आएगा क्यूंकि पाठक साहब के प्रशंसकों के लिए पाठक साहब द्वारा लिखित किसी उपन्यास पर फिल्म बनाना, एक ख्वाब है जो सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं वरन लाखों प्रशंसकों का ख्वाब है। तो मुझे उम्मीद है की भविष्य में इन कहानियों पर फिल्म जरूर बनेंगी। तो दोस्तों, आशा है की भविष्य में इन दस उपन्यासों की कहानियों को अडॉप्ट करके कोई निर्माता-निर्देशक सुपरहिट फिल्म हमें दे सके। लेकिन ताली कभी एक हाथ से बजती नहीं है। इसलिए पाठक साहब हों या निर्माता-निर्देशक दोनों को ही अपने नियमों में कुछ नमी बरतनी होगी ताकि यह ख्वाब एक परवान चढ़ सके।

आभार

राजीव रोशन 

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