पांचवां निशान (सुधीर कोहली - द लकी
बास्टर्ड)
दुनिया में कुछ इंसान ऐसे भी होते हैं
जो जबरदस्ती पंगे में फंसना पसंद करते हैं। ऐसे ही ख़ास किस्म का किरदार है सुधीर
कोहली, एकदम २४ कैरेट, खालिस दिल्ली वाली किस्म का, एक नंबर का हरामी लेकिन अपने
पेशे में ईमानदार। जब तक पंगा सुधीर कोहली से आकर पंगा नहीं लेता तब वह पंगे से
कभी पंगा नहीं लेता। लेकिन कभी-कभी, अपने इस उसूल को वह अपने कुछ ख़ास क्लाइंट्स के
लिए बदल भी लेता है। सुधीर कोहली, पेशे से प्राइवेट डिटेक्टिव है। दिल्ली जैसे शहर
में प्राइवेट डिटेक्टिव संख्या उस समय बिलकुल वैसी ही थी जैसे कि दिल्ली में रेलवे
जंक्शन की हुआ करती थी, मतलब इक्का-दुक्का ही प्राइवेट डिटेक्टिव होते थे उस वक़्त
दिल्ली में।
सुधीर का एक ख़ास क्लाइंट डॉ. कोठारी था।
डॉ. कोठारी अपने किस्मत में ऐसे सितारे लिखवाकर आया था की वह बार-बार खुद ही किसी
पंगे को जन्म दे देता था। ऐसे ही एक रात उसे एक भयानक पंगे को जन्म दिया जिसने
कोठारी आइन्दा आने वाली जिन्दगी तो बदली ही बदली, साथ ही सुधीर को भी लपेटे में ले
लिया।
एक रात जब सुधीर कोहली और डॉ. कोठारी
‘अब्बा’ में शबाब और शराब का मजा ले रहे थे उसी वक़्त डॉ. कोठारी के पास उसकी एक
खास पेशेंट का फ़ोन आता है और डॉ. कोठारी सुधीर को अकेला छोड़ अपने क्लिनिक की ओर चल
देता है। लेकिन आधे घंटे बाद ही वह बदहवास लौटता है और सुधीर को बताता है की उसने अपनी
रिसेप्शनिस्ट कोमल के पति की गोली मारकर हत्या कर दी है। कोमल डॉ. कोठारी की
प्रेमिका थी जिसके साथ कोठारी के नाजायज़ सम्बन्ध थे। वहीँ कोठारी की पत्नी पायल का
सम्बन्ध भी एक डॉ. रजनीश पूरी के साथ था। दोनों एक दुसरे कि जिन्दगी से पूरी तरह
बेज़ार हो चुके थे। ऐसे में डॉ. कोठारी अपनी नयी-नयी रिसेप्शनिस्ट के साथ संबंध
बनाता था। ऐसे ही एक सम्बन्ध ने आज उसके लिए मुश्किल खड़ी कर दिया था। सुधीर उसे एक
तगड़ी फीस के लालच में इस दुश्वारी से निकाल बाहर करने का आश्वासन देता है।
लेकिन जब सुधीर और डॉ. कोठारी क्लिनिक
पर पहुँचते हैं तो उन्हें कोमल के पति की नहीं बल्कि कोमल की लाश मिलती है। दोनों
ही सन्नाटे में आ जाते हैं। सुधीर, अब डॉ. कोठारी की मदद करने से इनकार कर देता है
लेकिन वह अपनी एलिबाई उसे जरूर देता है। पुलिस आती है और तहकीकात करती है। तहकीकात
के दौरान इंस्पेक्टर यादव को पता चलता है कोमल की हत्या गला दबाकर की गयी है। कोमल
के गले पर पांच उँगलियों के निशान पाए जाते हैं जिनमे से चार तो डॉ कोठारी के थे
और एक कोमल का। तहकीकात के दौरान इंस्पेक्टर यादव को कुछ ऐसे तथ्य प्राप्त होते
हैं जिनका कोई जवाब नहीं दे पाता, वहीँ सुधीर के लाख समझाने के बावजूद उसे डॉ.
कोठारी पर शक होता है। जब तक शक अपनी बाह पसार पाता, डॉ. कोठारी अपनी बाहें
इंस्पेक्टर यादव के लिए खोल देता है जिसके फलस्वरूप इंस्पेक्टर यादव केस में कहीं
भी डॉ. कोठारी का नाम नहीं आने देता। लेकिन कुछ ही दिनों बाद कोमल के पति की लाश
यमुना में तैरती मिलती है। इंस्पेक्टर यादव कोठारी से मिले शानदार मेहरबानी के
सदके इस केस को हत्या एवं आत्महत्या का केस मानकर बंद कर देता है।
लेकिन बाद में कुछ ऐसे हालात उभर कर
आते हैं जिसके कारण सुधीर इस हत्या-आत्महत्या के केस को एक अलग ही रूप में
प्रस्तुत कर, कातिल का पर्दा फाश कर करता है। इस कहानी में दोनों कत्लों के लिए कई
लोग शक के दायरे में आते हैं। सबसे पहले तो स्वयं डॉ. कोठारी है, फिर पायल कोठारी
और डॉ. रजनीश पूरी। वहीँ उमेश उप्पल नाम का एक फोटोग्राफर भी शक के दायरे में आता
है। कहानी में ऐसा लगता है कि सुधीर को कर कुछ और रहा है लेकिन किसी खुदाई ताकत से
वह केस के हल के करीब पहुँचता जा रहा है। ऐसा है, कि सुधीर को इस कहानी में, अब्बा
में गाने वाली एक लड़की ‘सोना’ से मोहब्बत हो जाता है। लेकिन सोना के पीछे अब्बा का
मेनेजर भी हाथ धोकर पड़ा है। ऐसे में यह देखने वाली बात होती है कि सुधीर सोना को
पा सकता है कि नहीं।
कहानी बहुत ही सामान्य सी है, जिसमे
हल्का-फुल्का रहस्य का तड़का है। ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्यूंकि कहानी अगर
मर्डर-मिस्ट्री तक टिकी रहती तो अच्छा होता लेकिन जब मर्डर-मिस्ट्री कि तहकीकात
बंद हो गयी तो कहानी डॉ. कोठारी और पायल के बीच तलाक को लेकर आगे बढ़ने लगी। कहानी
सुधीर और सोना के बीच के बुनियाद बनाने लग गयी और अचानक ही कहानी का अंत आ जाता है।
उपन्यास के किरदारों की बात करें तो सुधीर के अलावा, पायल कोठारी, डॉ. कोठारी, डॉ.
रजनीश पूरी और उमेश उप्पल अपनी भूमिका में सशक्त नज़र आते हैं। साथ ही इस उपन्यास
में सिल्विया ग्रेको और जॉन. पी. अलेग्जेंडर भी अपने गेस्ट अपियेरंस में नज़र आते
हैं। रजनी और सुधीर कि चुलबुली बाते आपका भरपूर मनोरंजन करेंगी। वहीँ सुधीर के शानदार
दार्शनिक बातें आपके मन को मोहित कर जाती हैं।
मार्च, १९९४ में आया यह उपन्यास सुधीर
कोहली सीरीज का १० वां उपन्यास था। अभी तक इस सीरीज के अंतर्गत २१ उपन्यास आ चुके
हैं। सोचने वाली बात यह है कि सन १९८० में इस सीरीज का पहला उपन्यास आया था, ३५
वर्षों में पाठक साहब ने इस सीरीज के अंतर्गत मात्र २१ उपन्यासों की ही रचनाएं की
हैं। जबकि उनके द्वारा लिखे गए दुसरे सीरीज के उपन्यासों की संख्या बढ़ गयी है। आशा
है भविष्य में सुधीर सीरीज के नए उपन्यास जरूर देखने को मिलें, क्यूंकि सुधीर
दिल्ली का जो ठहरा।
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आभार
राजीव रोशन
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सुधीर कोहली उवाचः-
जो औरतें ज्यादा दिखाना चाहती हैं, उन्हीं को सबसे ज्यादा फिक्र होती है कि कुछ दिख
न जाए और कुछ दिखने से रह भी न जाए।
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सुधीर कोहली उवाचः-
पता नहीं चरित्रहीन औरतों को भगवान इतना खुबसूरत क्यूँ बनाता है
या शायद खुबसूरत औरतें ही चरित्रहीन होती हैं।
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सुधीर कोहली उवाचः-
औरत प्यार नहीं दुत्कार समझती है। दुत्कार से उसे
अपनी औकात का अंदाजा होता हिया,
प्यार से वो अपनी औकात कि बाबत
भरमा जाती है।
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सुधीर कोहली उवाचः-
औरत की वजह से - खुबसूरत, हसीन, राजी औरत की वजह से - आदमी का बच्चा एक ही बार
में तड़प भी सकता था और चैन भी पा सकता था, आसमान
कि बुलंदियों को छू भी सकता था और पाताल कि गहराइयों की थाह भी पा सकता था, तंदूर में भी लग सकता था और डीपफ्रीज़ में भी बंद
हो सकता था।
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सुधीर कोहली उवाचः -
बड़े लोगों ने कहा भी है
कि मैरेजिज आर मेड इन हेवन - शादियाँ स्वर्ग में होती हैं - फिर भी लोग-बाग़ इस काम
को धरती पर अंजाम देने लगते हैं।
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सुधीर कोहली उवाचः -
खुदा ने हर आदमी को
आजाद पंछी पैदा किया है। अगर वो शादी कर लेता है तो ये उसकी अपनी जहालत है।
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सुधीर कोहली उवाचः-
साहबान, जब खुदा ने औरत बनाई तो
उसने उसमें हर खूबी पैदा कि - उसे तौबाशिकन जिस्म दिया, दिलफरेब मुस्कराहट दी, खुबसूरत चेहरा दिया, रेशम-से बाल दिए, हिरणी सी आँखें दीं, गुलाब की पंखड़ियों जैसे
होंठ दिए - लेकिन फिर उसे कतरनी-सी जुबान दी और अपने तमाम किये-धरे पर पानी फेर
दिया।
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सुधीर कोहली उवाचः-
दुनिया का सबसे बड़ा
अहमक शख्स वो होता है जो दुश्मन को कमजोर समझता है। हर किसी को अपने आपको
अक्लमंद समझने का अख्तियार होता है लेकिन दुसरे को अहमक समझने का अख्तियार नहीं
होता।
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सुधीर कोहली उवाचः -
साहबान, आप ही सोचिये, विश्व शान्ति कैसे संभव
है जब कि लोगबाग़ शादी करने से बाज नहीं आते?
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कुछ दिलचस्प संवाद इस
उपन्यास से:-
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"दरवाजा बंद कर डे"
- मैंने आदेश दिया - "और इधर आ के मेरी गोद में बैठ।"
उसने दरवाजा बंद किया, 'इधर' आई लेकिन मेरी गोद में
न बैठी। मैंने
उसका हाथ थाम लिया और बोला - "बैठ।"
"गोद में?"
- वो
अपना निचला होंठ चुभलाती बड़े कुटिल भाव से बोली।
"कहीं भी।"
"आप हाथ छोड़े तो बैठूं न।"
"हाथ?"
"मेरा।"
"ये हाथ तेरा है?"
"ख्याल तो है ऐसा।"
"इसे मैंने पकड़ा हुआ है?"
"आपका क्या ख्याल है।"
"मेरे ख्याल से तो देश
कि हालत बद से बद्तर होती जा रही है।"
"मेरा सवाल देश कि हालत
कि बाबत नहीं था। मेरा
सवाल मेरे हाथ कि बाबत था जोंकि अभी भी आपके हाथ में है।"
"कमाल है। मेरे
हाथ में इतनी लाजवाब चीज़ है और मुझे खबर ही नहीं।"
"अब तो हो गयी खबर। अब
तो हाथ छोडिये।"
"रजनी।"
मैं
नथुने फुलाकर बोला - "इस पंजाबी पुत्तर ने हाथ पकड़कर छोड़ना नहीं सीखा।"
"और इस पंजाबन पुत्री
ने" - वो जबरन अपना हाथ मेरे हाथ से निकालते हुई बोली - "ऊँगली पकड़कर
पहुंचे तक पहुँचने की नियत रखने वालों को हाथ पकडाना नहीं सीखा।"
"रजनी, तू समझती क्यों नहीं?"
"क्या नहीं समझती मैं?"
"मैं तेरे से प्यार करता
हूँ। दीवानगी
कि हद तक तड़पता हूँ मैं तेरे लिए।"
"सर, आधुनिक शिक्षित समाज
में एक ऐसी रस्म होती है जिससे ऐसे प्यार का, ऐसी दीवानगी का, ऐसी तड़प का स्थायी रूप
से समापन किया जा सकता है।"
"क्या कहते हैं उस रस्म
को?" - मैं आशापूर्ण स्वर में बोला।
"शादी।"
"क्या?"
"शादी हुई नहीं कि
प्यार-मोहब्बत सब उड़नछू। तड़प, दीवानगी सब गायब। मर्द, औरत कि सूरत से बेज़ार। पीछा
ही नहीं छोड़ती कम्बख्त। हर वक़्त सिर पर सवार रहती है। वगैरह! वगैरह!
वगैरह!"
"रजनी।"
"यस, सर।"
"एक नंबर कि कम्बख्त औरत
है तू।"
"मैं एक नंबर की नहीं
हूँ और औरत नहीं हूँ। सौ बार बताया।"
"लेकिन कम्बख्त तो है?"
"अब आप कहते हैं तो....
"
"हाँ, मैं कहता हूँ। तू
तो ऐसी कम्बख्त है, कम्बख्त, कि एस्प्रो को सिरदर्द
कर दे। इतनी
सर्द मिजाज है कि अगर मच्छर तुझे काट खाए तो मच्छर को निमोनिया हो जाए। ऐसी
निकम्मी है जैसे पनडुब्बी में पैराशूट। जैसे एस्किमो के घर में
रेफ्रीजिरेटर। जैसे
गंजे की जेब में कंघी। जैसे.... "
"और भी जो कहना है कह
लीजिये। खूब
मन कि भड़ास निकाल लीजिये। आज मौका है।"
"बातों में तेरे से वो
जीत सकता है जो बिजली के बल्ब को फूंक मार के बुझा सकता हो।"
वो फिर हंसी। अपने उसी दिलकश अंदाज़
से।
****************************************
"नमस्ते।"
- मुझे
अपनी सेक्रेटरी रजनी की खनकती आवाज सुनाई डी।
"नमस्ते।"
- मैं
जानबूझकर अनजान बनता हुआ बोला - "कौन?"
"रजनी।"
"कौन रजनी! अपनी उम्र, कद रंगत, कुल्हे, कमर और सीने का नाप
बोलो।"
"वो किसलिए?"
"ताकि मैं पहचान पाऊं
तुम कौन सी रजनी हो।"
"आप कई रजनियों को जानते
हैं?"
"हाँ।"
"सिर्फ जानते हैं?"
"क्यों भला? अरे, सब फ़िदा हिं मुझ पर। सब
दीवानी हैं मेरी।"
"सब?"
"एक कम्बख्त, नामाकूल, मगरूर रजनी को छोड़कर।"
"एक क्यों छुट गयी?"
"जैसे तुझे पता नहीं।"
- फिर
मैं बदले स्वर में बोआ - "अब आगे बोल।"
"बोलती हूँ। पहले
आप इस बात कि तसदीक कीजिये कि आप जाग गए हैं।"
"तुझे क्या लगता है?"
"आपकी बातों से तो लगता
है कि आप अभी भी नींद में बडबडा रहे हैं।"
"नहीं बडबडा रहा।"
"यानी कि जाग गए हैं।"
"हाँ।"
"बहन जी भी जाग गयी?"
"बहन जी।"
"जिनकी वजह से आप अभी तक
बिस्तर के हवाले हैं!"
"रजनी, अरी तुझ पर खुदा की
मार..."
"नहीं जागीं तो जगा
दीजिये और हो सके तो उन्हें रुखसत भी कर दीजिये।"
"क्यों? क्यों कर दूँ? तूने उसकी जगह लेनी है?"
"अभी मेरे इतने बुरे दिन
तो नहीं आये।"
"ठहर जा कम्बख्त।"
****************************************
"तू
जानता है उसे?"
"हां। इसका
नाम सोना है।"
"सोना?"
"खालिस। चौबीस
कैरेट। कोई
मिलावट नहीं। कोई
खोट नहीं।"
"दमक तो रही है सोने की
ही तरह।"
"यू सेड इट। यू
सेड इट बॉस।"
"तू इस लड़की पर लाइन
मारता मालूम होता है मुझे।"
"मैं तो हर खुबसूरत लड़की
पर लाइन मारता हूँ।"
"मैंने तो कभी किसी लड़की
पर लाइन नहीं मारी।"
"खुशकिस्मत हो। तुम्हारा
ये काम लड़कियां ही जो कर देती हैं।"
वो धूर्त भाव से आँख दबाकर हंसा।
************************************
"मजा
आ गया।" - डॉक्टर कोठारी व्हिस्की का एक घूँट पीकर होंठ चटकाया हुआ
बोला।
"आके चला भी गया?"
- मैं
बोला।
"क्या?"
- वो
हडबडाया।
"मजा।"
"क्या मतलब?"
"तुमने अभी यही तो कहा
था कि मजा आ गया।"
"अरे, मेरा मतलब है मजा आ रहा
है।"
"अच्छा, अच्छा। आ
रहा है। अभी
पहुंचा नहीं।"
"कोहली।"
"यस, बॉस।"
"तेरे से तो बात करना
गुनाह है। अच्छी-भली
बात में कुनीन घोल देता है। खामखाह।"
मैं हंसा।
**************************************
मोहब्बत भी क्या चीज थी। कितना कमजोर बना देती थी वो आदमी को। मुर्दा जिस्मों से अमूमन दो-चार होने
वाला डॉक्टर अपनी हसीं माशूका को लाश में तब्दील हो गया देखने की ताब नहीं ला पा
रहा था। अभी उसकी सिर्फ आँखे नाम थीं। लेकिन मुझे बराबर अंदेशा था कि किसी भी
क्षण वो फुक्का फाड़ के रो पड़ने वाला था।
*************************************
"कोहली।"
"यस, माई लार्ड एंड मास्टर।"
"आई लव यू।"
"मैनी पीपल डू।"
"आई लव यू दी मोस्टेस्ट।"
"थैंक यू। यू
मे किस माई हैण्ड।"
उसके चेहरे पर उलझन के भाव आये।
"ऑर हेव दी नेक्स्ट डांस
विथ मी।"
"वाट नोंसेन्स"
"नथिंग, हुक्का हाजिर है, गुडगुडाइये।"
"हुक्का!"
"आई मीन जाम हाज़िर है, नोश फरमाइए।"
******************************************************
"दरवाजा बंद कर डे" - मैंने आदेश दिया - "और इधर आ के
मेरी गोद में बैठ।"
उसने दरवाजा बंद किया, 'इधर' आई लेकिन मेरी
गोद में न बैठी। मैंने उसका हाथ थाम लिया और बोला - "बैठ।"
"गोद में?" - वो अपना निचला होंठ चुभलाती बड़े कुटिल भाव से बोली।
"कहीं भी।"
"आप हाथ छोड़े तो बैठूं न।"
"हाथ?"
"मेरा।"
"ये हाथ तेरा है?"
"ख्याल तो है ऐसा।"
"इसे मैंने पकड़ा हुआ है?"
"आपका क्या ख्याल है।"
"मेरे ख्याल से तो देश कि हालत बद
से बद्तर होती जा रही है।"
"मेरा सवाल देश कि हालत कि बाबत
नहीं था। मेरा सवाल मेरे हाथ कि बाबत था जोंकि अभी भी आपके हाथ में है।"
"कमाल है। मेरे हाथ में
इतनी लाजवाब चीज़ है और मुझे खबर ही नहीं।"
"अब तो हो गयी खबर। अब तो हाथ छोडिये।"
"रजनी।" मैं नथुने
फुलाकर बोला - "इस पंजाबी पुत्तर ने हाथ पकड़कर छोड़ना नहीं सीखा।"
"और इस पंजाबन पुत्री ने" -
वो जबरन अपना हाथ मेरे हाथ से निकालते हुई बोली - "ऊँगली पकड़कर पहुंचे तक
पहुँचने की नियत रखने वालों को हाथ पकडाना नहीं सीखा।"
"रजनी, तू समझती क्यों
नहीं?"
"क्या नहीं समझती मैं?"
"मैं तेरे से प्यार करता हूँ। दीवानगी कि हद तक तड़पता हूँ मैं तेरे लिए।"
"सर, आधुनिक शिक्षित समाज में एक ऐसी
रस्म होती है जिससे ऐसे प्यार का,
ऐसी दीवानगी का, ऐसी तड़प का
स्थायी रूप से समापन किया जा सकता है।"
"क्या कहते हैं उस रस्म को?" - मैं आशापूर्ण स्वर में बोला।
"शादी।"
"क्या?"
"शादी हुई नहीं कि प्यार-मोहब्बत
सब उड़नछू। तड़प, दीवानगी सब गायब। मर्द, औरत कि सूरत से
बेज़ार। पीछा ही नहीं छोड़ती कम्बख्त। हर वक़्त सिर पर
सवार रहती है। वगैरह! वगैरह! वगैरह!"
"रजनी।"
"यस, सर।"
"एक नंबर कि कम्बख्त औरत है तू।"
"मैं एक नंबर की नहीं हूँ और औरत
नहीं हूँ। सौ बार बताया।"
"लेकिन कम्बख्त तो है?"
"अब आप कहते हैं तो.... "
"हाँ, मैं कहता हूँ। तू तो ऐसी कम्बख्त है, कम्बख्त, कि एस्प्रो को
सिरदर्द कर दे। इतनी सर्द मिजाज है कि अगर मच्छर तुझे काट खाए तो मच्छर को
निमोनिया हो जाए। ऐसी निकम्मी है जैसे पनडुब्बी में पैराशूट। जैसे एस्किमो
के घर में रेफ्रीजिरेटर।
जैसे गंजे की जेब में कंघी। जैसे.... "
"और भी जो कहना है कह लीजिये। खूब मन कि भड़ास निकाल लीजिये। आज मौका है।"
"बातों में तेरे से वो जीत सकता है
जो बिजली के बल्ब को फूंक मार के बुझा सकता हो।"
वो फिर हंसी। अपने उसी दिलकश अंदाज़ से।
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"पांचवां निशान" उपन्यास के दो शानदार शेर आप सभी के साथ साझा
कर रहा हूँ :-
आज के दौर की खातून बनाई जिसने,
वही मेरा भी खुदा हो, मुझे मंजूर
नहीं।
उम्र तो कटी इश्के बुतां में
मोमिन,
अब आखिरी वक़्त में ख़ाक मुसलमां
होंगे।
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