Skip to main content

जाली नोट (लघु कथा) - समीक्षा



जाली नोट (लघु कथा)

जाली नोटों का धंधा जुर्म की एक इकाई है। इस धंधे से किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ी जा सकती है। इसलिए ऐसे धंधे की रोकथाम आवश्यक है। जहाँ जाली नोटों का धंधा होता है वहां एक नहीं कई प्रकार के जुर्म पनपते हैं। सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा लिखित इस छोटी सी कहानी हमें बताती है की जुर्म किस प्रकार पनपते हैं।

कहानी एक ऐसे षड़यंत्र की है जिसका पहला शिकार कैलाश भार्गव बनता है, जब फोर स्टार नाईट क्लब में सी.आई.डी. इंस्पेक्टर द्वारा उसे जाली नोटों को चलाने के सम्बन्ध में गहन पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन ले जाया जाता है। बाद में, पुलिस को कैलाश भार्गव के घर से २०००० रूपये के जाली नोट प्राप्त हो जाते हैं। कैलाश भार्गव जाली नोटों के धंधा करने के जुर्म गिरफ्तार कर लिया जाता है।

ऐसे में कैलाश भार्गव अपने बेगुनाही की दुहाई देता है और अपने पत्रकार मित्र सुनील चक्रवर्ती से सहायता मांगता है। सुनील को कैलाश की बेगुनाही पर यकीन हो जाता है और वह एक पेशेवर जमानत देने वाले व्यक्ति ज्वालाप्रसाद से संपर्क करके कैलाश की जमानत करवा देता है। जमानत प्राप्त करने के बाद से ही कैलाश गायब हो जाता है। यहाँ तक की कोर्ट द्वारा मुक़र्रर की गयी तारिख पर भी नहीं पहुँच पाने की आशंका लगी रहती है। ऐसे में ज्वालाप्रसाद बहुत कलपता है।

सुनील भी कैलाश की खोज करता है। लेकिन कोर्ट द्वारा मुक़र्रर तारिख से एक दिन पहले ही एक भयंकर अग्निकांड में अपने ही घर पर कैलाश की मौत हो जाती है। जहाँ पुलिस को और कैलाश की पत्नी रूही भार्गव को यह आत्महत्या लगती है वहीँ सुनील इसे हत्या समझ कर तहकीकात करता है।

रूही भार्गव, कैलाश के जीवनकाल में ही उससे तलाक चाहती थी। रूही को अचानक ही किसी रिश्तेदार के विरसे से बहुत दौलत मिली थी जिसके कारण उसमे दौलत के पंख लग गए थे। वैसे तो पेशे से वह फोर स्टार नाईट क्लब में गाना गाती थी और साथ ही उसका नाजायज सम्बन्ध क्लब के पियानोवादक टोनी के साथ था।

कैलाश भार्गव अपनी जिन्दगी से वैसे ही परेशान था जब उसे जाली नोटों के धंधे में गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन जब जमानत पर रिहा हो कर उसने इस धंधे की तहकीकात शुरू की तो उसको अपने ही घर में जलकर मरने की सजा मिली।

एक मकड़ी के जाले सी उलझी हुई कहानी जिसमे कैलाश भार्गव और सुनील शिकार की तरह फंसे हुए थे और शिकारी उन्हें धर दबोचना चाहते थे, जबकि शिकारी का कोई अस्तित्व नज़र नहीं आता था। एक मर्डर मिस्ट्री कहानी जो कुछ पन्नों में सुनील सीरीज का पूरा मजा बनाए रखने के काबिल है। सिमित किरदारों में सिमिति हुई इस यह कहानी छोटे पैकेट में बुलेट बम सा मजा देती है।

कहानी का इबुक लिंक- http://ebooks.newshunt.com/Ebooks/default/Jali-Note/b-42736

सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के कहानियों का संग्रह इबुक के रूप में प्रकाशित हो चूका है। आप उसका भी आनंद उठा सकते हैं।

संपूर्ण कथा साहित्य लिंक वॉल्यूम १ - http://ebooks.newshunt.com/Ebooks/default/Sampurn-Katha-Sahitya---Vol-1/b-42653
संपूर्ण कथा साहित्य लिंक वॉल्यूम २ - http://ebooks.newshunt.com/Ebooks/default/Sampoorn-Katha-Sahitay---Vol-2/b-43227

नोट:- लघुकथा का छायाचित्र राजीव रोशन जी द्वारा बनाया गया है जिसका किसी भी प्रकार व्यावसायिक प्रयोग प्रतिबंधित है। छायाचित्र के लिए चित्रों का प्रयोग गूगल इमेज सर्च द्वारा लिया गया है।

Comments

Popular posts from this blog

कोहबर की शर्त (लेखक - केशव प्रसाद मिश्र)

कोहबर की शर्त   लेखक - केशव प्रसाद मिश्र वर्षों पहले जब “हम आपके हैं कौन” देखा था तो मुझे खबर भी नहीं था की उस फिल्म की कहानी केशव प्रसाद मिश्र की उपन्यास “कोहबर की शर्त” से ली गयी है। लोग यही कहते थे की कहानी राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म “नदिया के पार” का रीमेक है। बाद में “नदिया के पार” भी देखने का मौका मिला और मुझे “नदिया के पार” फिल्म “हम आपके हैं कौन” से ज्यादा पसंद आया। जहाँ “नदिया के पार” की पृष्ठभूमि में भारत के गाँव थे वहीँ “हम आपके हैं कौन” की पृष्ठभूमि में भारत के शहर। मुझे कई वर्षों बाद पता चला की “नदिया के पार” फिल्म हिंदी उपन्यास “कोहबर की शर्त” की कहानी पर आधारित है। तभी से मन में ललक और इच्छा थी की इस उपन्यास को पढ़ा जाए। वैसे भी कहा जाता है की उपन्यास की कहानी और फिल्म की कहानी में बहुत असमानताएं होती हैं। वहीँ यह भी कहा जाता है की फिल्म को देखकर आप उसके मूल उपन्यास या कहानी को जज नहीं कर सकते। हाल ही में मुझे “कोहबर की शर्त” उपन्यास को पढने का मौका मिला। मैं अपने विवाह पर जब गाँव जा रहा था तो आदतन कुछ किताबें ही ले गया था क्यूंकि मुझे साफ़-साफ़ बताया गया थ

विषकन्या (समीक्षा)

विषकन्या पुस्तक - विषकन्या लेखक - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक सीरीज - सुनील कुमार चक्रवर्ती (क्राइम रिपोर्टर) ------------------------------------------------------------------------------------------------------------ नेशनल बैंक में पिछले दिनों डाली गयी एक सनसनीखेज डाके के रहस्यों का खुलाशा हो गया। गौरतलब है की एक नए शौपिंग मॉल के उदघाटन के समारोह के दौरान उस मॉल के अन्दर स्थित नेशनल बैंक की नयी शाखा में रूपये डालने आई बैंक की गाडी को हजारों लोगों के सामने लूट लिया गया था। उस दिन शोपिंग मॉल के उदघाटन का दिन था , मॉल प्रबंधन ने इस दिन मॉल में एक कार्निवाल का आयोजन रखा था। कार्निवाल का जिम्मा फ्रेडरिको नामक व्यक्ति को दिया गया था। कार्निवाल बहुत ही सुन्दरता से चल रहा था और बच्चे और उनके माता पिता भी खुश थे। चश्मदीद  गवाहों का कहना था की जब यह कार्निवाल अपने जोरों पर था , उसी समय बैंक की गाड़ी पैसे लेकर आई। गाड़ी में दो गार्ड   रमेश और उमेश सक्सेना दो भाई थे और एक ड्राईवर मोहर सिंह था। उमेश सक्सेना ने बैंक के पिछले हिस्से में जाकर पैसों का थैला उठाया और बैंक की

दुर्गेश नंदिनी - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय

दुर्गेश नंदिनी  लेखक - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय उपन्यास के बारे में कुछ तथ्य ------------------------------ --------- बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखा गया उनके जीवन का पहला उपन्यास था। इसका पहला संस्करण १८६५ में बंगाली में आया। दुर्गेशनंदिनी की समकालीन विद्वानों और समाचार पत्रों के द्वारा अत्यधिक सराहना की गई थी. बंकिम दा के जीवन काल के दौरान इस उपन्यास के चौदह सस्करण छपे। इस उपन्यास का अंग्रेजी संस्करण १८८२ में आया। हिंदी संस्करण १८८५ में आया। इस उपन्यस को पहली बार सन १८७३ में नाटक लिए चुना गया।  ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ यह मुझे कैसे प्राप्त हुआ - मैं अपने दोस्त और सहपाठी मुबारक अली जी को दिल से धन्यवाद् कहना चाहता हूँ की उन्होंने यह पुस्तक पढने के लिए दी। मैंने परसों उन्हें बताया की मेरे पास कोई पुस्तक नहीं है पढने के लिए तो उन्होंने यह नाम सुझाया। सच बताऊ दोस्तों नाम सुनते ही मैं अपनी कुर्सी से उछल पड़ा। मैं बहुत खुश हुआ और अगले दिन अर्थात बीते हुए कल को पुस्तक लाने को कहा। और व