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“जहन्नुम कि अप्सरा” – इब्ने सफी

“जहन्नुम कि अप्सरा” – इब्ने सफी



अभी हाल ही में न्यूज़-हंट पर ईबुक में इब्ने-सफी कि सभी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। सभी हिंदी में अनुवादित उपन्यास हैं। इब्ने-सफी अपने आप में एक ब्रांड नेम हैं। सुना है कि उन्हें हिंदी एवं उर्दू क्राइम फिक्शन का जनक माना जाता है। पहले वे भारत में ही कहानियां लिखा करते थे पर बाद में वे पाकिस्तान माइग्रेट कर गए और वहीँ से अपना पब्लिकेशन संस्था खोल कर अपनी कहानियां प्रकाशित करने लगे थे। आज भी भारत में उनके प्रशंसकों कि संख्या बहुत है। कई लेखक उनको पढ़-पढ़ कर ही लेखन के ऊँचे मुकाम पर पहुंचे हैं। वैसे तो मैं 2-3 किताबें उनके द्वारा लिखी गयी पहले भी पढ़ चूका था लेकिन आज उनकी किसी कहानी के बारे में लिखने कि सोचा है।

“जहन्नुम कि अप्सरा” इस पुस्तक का नाम है जो कि अली इमरान सीरीज कि ५ वीं पुस्तक है। कई वर्षों बाद उनकी कहानी को हिंदी में छाप कर हार्पर कॉलिंस ने एक अलग ही दौर कि शुरुआत कर दी है। मेरे हिसाब से इब्ने-सफी के कई प्रशंसक हार्पर-कॉलिंस के इस कदम का स्वागत करते हैं। वहीँ ऑनलाइन पढने वाले पाठक भी बहुत ही आनंदित महसूस करते होंगे क्यूंकि अब हार्पर कॉलिंस से छपी सभी इब्ने-सफी कि पुस्तकें ईबुक में न्यूज़-हंट एप्लीकेशन पर उपलब्ध हैं।

अब आते हैं कहानी कि ओर, अली इमरान जो कि सी.आई.डी. में एक जासूस है और अपनी बेवकूफाना हरकतों कि वजह से पुरे डिपार्टमेंट में बदनाम है। चूँकि उसके पिता सी.आई.डी. के डायरेक्टर हैं इसलिए उसको थोड़ी बहुत छुट भी मिली हुई है। लेकिन आखिरकार उसके पिता अपने कर्तव्य के आगे घुटने टेक देते हैं और अली इमरान को सी.आई.डी. छोड़ कर जाने का हुक्म सुना देते हैं। इमरान अपनी असिस्टेंट रुसी के साथ, सी.आई.डी. छोड़कर तलाक दिलवाने वाली संस्था खोल लेता है।

अब इमरान के पास एक महिला का केस आता है जो एक खास व्यक्ति को देश से बाहर भेजना चाहती है। इमरान चाहकर भी उस महिला से यह बात नहीं निकलवा पाता है। इमरान उस व्यक्ति से बात करने जाता है तो उसे पता चलता है कि वह व्यक्ति तो किसी के लिए दरवाजा ही नहीं खोलता और अपने आपको कमरे में बंद करके रखता है। वहां कुछ पड़ोसियों से बात करके उसे पता चलता है कि कई बड़े लोग उससे मिलने के लिए आते रहते हैं लेकिन वह सभी के साथ समान ही व्यवहार करता है। इनमे से एक उस महिला का पति होता है जिसके केस पर इमरान कम कर रहा है।

लेकिन इमरान अपनी हिम्मत नहीं छोड़ता और रात के वक़्त उस व्यक्ति को पकड़ लेता है और उसे उस महिला का सन्देश सुनाता है लेकिन वह व्यक्ति ऐसी ऐसी बातें कहता है जिसे इमरान नहीं समझ पाता। अगले दिन उस व्यक्ति कि लाश एक पार्क मिलती है। पोस्टमॉर्टेम के अनुसार उसके माथे में छोटे छोटे ज़हरीले कंकड़ मारे गए थे। यह क़त्ल का केस सी.आई.डी. के कैप्टेन फयाज को मिलता है। फयाज कभी भी बिना इमरान कि सहायता लिए खुद से कोई केस हल नहीं कर पाया था। इस बार भी वो इमरान के पास पहुँचता है और केस कि छानबीन करने के लिए कहता है।

इमरान छानबीन करता है तो उसे एक ऐसे किरदार के बारे में पता चलता है जो अमूमन विदेशी इवेंट में देखा जाता है। फयाज कि मदद से उसे पता चलता है की शहर में एक विदेशी इवेंट कंपनी आई हुई जिसके साथ ऐसा किरदार हो सकता है। इमरान ऐसे ही इवेंट में जाता है जिसका नाम होता है “जहन्नुम कि अप्सरा”। इमरान को इस इवेंट कि टिकेट बहुत मुश्किल से मिलता है।

धीरे-धीरे इमरान इस केस के अंत तक पहुँचता है जिसके लिए वह अपनी सूझ-बूझ का बखूबी इस्तेमाल करता है। इमरान की यह सूझ-बूझ सिर्फ पाठकों को ही नज़र आती है क्यूंकि कहानी के किरदारों के लिए तो इमरान एक जोकर है। आपनी बेवकूफाना हरकतों से आपके चेहरे पर कई बार मुस्कराहट लाने में वह कामयाब भी हो जाता है।

नीलाभ के सम्पादन में प्रकाशित हुई ये कहानियां वही एहसास दिलाती हैं जो उर्दू में छपने पर सन ५० के दशक में कई पाठकों को हुई होगी। वैसे इब्ने-सफी की कहानियों की एक खास बात यह होती है की इनकी कहानी में कोई शहर नहीं होता या कोई क्षेत्र नहीं होता। इब्ने-सफी जी की कहानी बिना किसी शहर के आगे बढती जाती है। टैक्सी है, सड़के हैं, मकान है, फ्लैट है लेकिन कोई स्पेसिफिक क्षेत्र नहीं और कोई समय का भी फर्क नहीं पड़ता। उस समय लिखी इस कहानी को जब मैंने अब पढ़ा तो मुझे थोडा सा महसूस हुआ कि यह पुराने परिवेश में लिखी गयी कहानी है लेकिन एक बार रफ़्तार पकड़ने लेने के बाद तो यह बात महसूस ही नहीं हुई।

आप सभी ने भी इब्ने-सफी की कई कहानियां पढ़ी होंगी। आशा है, आप मुझसे उपरोक्त लेख और इब्ने-सफी जी द्वारा लिखी कुछ किताबों के बारे में अपने विचार जरूर साझा करेंगे।

आभार

राजीव रोशन 

Comments

  1. राजीव रोशन जी इब्ने सफी मैं आपकी रूचि देख कर प्रसन्नता हुई साथ ही एसएमपी के नोवेल्स का जिस तरह से आपने शोर्ट मैं विवरण देते हुए गूगल पर जो म्हणत की है वो प्रशंसनीय है,क्या नेट पर इब्ने सफी के सभी २४५ नावेल हिंदी मैं डाले जा चुके हैं यदि हाँ तो वेबसाइट बताएँगे ???

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    Replies
    1. बलविंदर जी. देरी से उत्तर देने के लिए माफ़ी चाहूँगा| इब्ने सफी के सभी नावेल तो नहीं लेकिन कुछ ऐसे नावेल जो कुछ वर्ष पूर्व हार्पर कॉलिंस से छपे थे वे अब न्यूज़हंट या डेलीहंट मोबाइल एप्लीकेशन प्लेटफोर्म पर उपलब्ध हैं| आप अपने गूगल प्ले स्टोर पर जाकर इस एप्लीकेशन को इंस्टाल कीजिये और इबुक सेक्शन में आपको किताबें नज़र आ जायेंगी|

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  2. यह उपन्यास काफी रोचक है।
    मैंने अब तक इब्ने सफी के तीन उपन्यास पढे हैं, तीनों ही जबरदस्त हैं।

    www.pdfbookbox.blogspot.in

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  3. This comment has been removed by the author.

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