खतरे कि घंटी (सुधीर सीरीज)
सुधीर सीरीज मुझे हमेशा बहुत ज्यादा पसंद आता है। ऐसा इसलिए है क्यूंकि सुधीर का किरदार खालिस दिल्ली वासी जैसा ही लगता है। जिस तरह से सुधीर दुनिया को देखता है उसी तरह हम भी आम जीवन में दुनिया को देखते हैं। आपको अपने आस पास कई सुधीर देखने को मिल जायेंगे। सुधीर जितना प्रोफेशनल है, उससे तो मैं यह सोचता हूँ कि उसकी मिशाल पेश कि जानी चाहिए कॉर्पोरेट फर्म, कम्पनीज और मैनेजमेंट यूनिवर्सिटीज में। सुधीर लम्पट स्वभाव का है जो लड़की देखते ही लार टपकाना शुरू कर देता है जो उसके घुटनों तक पहुँचती है। सुधीर कि तरह ही, मैंने आम जीवन कई ऐसे लोगों को देखा है जो इस तरह का ही किरदार रखते हैं। यूँ भी कहना सही होगा कि मैं भी इस मामले में कम नहीं हूँ। लेकिन सुधीर कि बात कि तरह ही कहना चाहूँगा कि, मैं ताजमहल देख तो सकता हूँ, उसकी सुन्दरता का वर्णन तो कर सकता हूँ लेकिन उसे पाने कि कल्पना करना, कोरी कल्पना ही रहेगी।
अब इस उपन्यास कि तरफ आता हूँ, जो सुधीर सीरीज का चौदहवाँ उपन्यास है। सन २००० में यह उपन्यास प्रकाशित हुआ था जिसका खास आकर्षण इस उपन्यास के साथ एक्स्ट्रा में आये “विमल सीरीज कैसे बनी” पर पाठक साहब का अद्वितीय, अकल्पनीय, आश्चर्यचकित करने वाला लेख है। इस उपन्यास की एक और खास बात है वो ये कि सुधीर का जो जलाल अमूमन देखने को मिलता है वो इस उपन्यास में देखने को नहीं मिला। लेकिन एक खास बात और है इस उपन्यास की, वो ये कि, रजनी के किरदार में इस बार बदलाव देखा गया।
अब कहानी कि तरफ आता हूँ। सुधीर सीरीज के ज्यादातर कहानियों में उसका क्लाइंट कोई न कोई महिला होती है जो कि खास सुधीर कि कल्पनाओं की माफिक ही बनी होती है। लेकिन इस कहानी में सुधीर की मुलाक़ात एक पुरुष क्लाइंट से होती है। परमेश्वर ग्रोवर पल्लवी जैन के साथ मौजमेले कि खातिर महरौली – गुडगाँव रोड स्थित आल डे हेवन रिसोर्ट में जाता है। जब अगले दिन उसे पता चलता है कि उसी रिसोर्ट के उसके कॉटेज के सामने के स्विमिंग पूल में CID इंस्पेक्टर कमल आहूजा कि लाश मिली है। पुलिस के अनुसार कमल आहूजा कि हत्या हुई है और पुलिस सभी संभावितों कि तलाश कर रही है। अब चूँकि, परमेश्वर ग्रोवर एक शादीशुदा व्यक्ति था इसलिए उसने अपनी इस पिकनिक को छुपाने कि कोशिश की क्यूंकि उसका सोचना था कि अगर पल्लवी जैन के जरिये पुलिस उस तक पहुँच गयी तो उसकी पत्नी को भी उसके मौज-मेले कि खबर लग जायेगी। ऐसे में, उसने दिल्ली के प्रसिद्द प्राइवेट डिटेक्टिव सुधीर कोहली को चुना। सुधीर कोहली को ग्रोवर ने इस समस्या का हल भी समझाया। हल के अनुसार, सुधीर और पल्लवी फिर से रिसोर्ट जाएँ और उसी नाम से रहें जिस नाम से ग्रोवर और पल्लवी ने कमरा बुक किया था। इसके लिए ग्रोवर ने रिसोर्ट में बाकायदा आगे दो दिन का किराया भी भर दिया।
सुधीर के मन में इस काम को न करने के लिए खतरे कि घंटी बार-बार बज रही थी लेकिन जब उसको ग्रोवर ने शानदार फीस का लालच दिया तो सहज ही उसने इस उखल में सर डालने का मन बना लिया। यहाँ तक कि रजनी ने भी इस काम को न लेने कि सलाह दी लेकिन जब सुधीर कोहली किसी काम को लेने का मन बना लेता है तो बना लेता है।
इसी के साथ सुधीर कोहली, द फिलोस्फर डिटेक्टिव, द लकी बास्टर्ड ग्रोवर के ऊपर लटक रही तलवार को हटाने कि कोशिश में लग जाता है। उसका सामना बार-बार पुलिस ऑफिसर से होता है। जहाँ इस केस में उसे एक बहुरूपिये के रूप में काम करना था और कहानी खत्म थी। लेकिन सुधीर इस केस के साथ-साथ ही, कमल अहुजा के केस को भी अंजाम तक पहुंचाता है। इस केस के चक्कर में उसे दो बार हवालात के चक्कर काटने पड़ते हैं और दोनों बार रजनी और संजय सिंह, इंडियन एक्सप्रेस का अखबारची सहायता करता है। लेकिन सुधीर कोहली, द लकी बास्टर्ड की इस केस में शानदार कमाई होती है, जिसके लिए वह अपनी पीठ बार बार ठोकता है। वहीँ उसे रजनी का विश्वास भी प्राप्त होता है जो की एक हिला देने वाला प्रसंग है।
मेरे हिसाब से कहानी सही बन पड़ी है। मैं पाठक साहब कि कई पुस्तकों को बार-बार पढने में यकीन रखता हूँ और ऐसी कई पुस्तकें उनके द्वारा लिखी भी गयी हैं जो बार-बार पढ़ी जा सकती है। लेकिन “खतरे की घंटी” ऐसी नहीं निकली कि इसे साल में दूसरी बार पढूं। वहीँ सुधीर के दार्शनिक सूक्तियों की भी इस उपन्यास में कमी दिखाई दी। वैसे तो पाठक साहब ने इस उपन्यास को सिर्फ तीन घटनाक्रम तक ही सिमित रखा है लेकिन फिर भी मुझे रफ़्तार में वो तेज़ी नहीं दिखाई दी जो उनके द्वारा लिखे गए कई बेहतरीन उपन्यासों में नज़र आती है। लेकिन कहानी चाक-चौबंद है और जबरदस्त जान पड़ती है। सुधीर कि पंगे से पंगे लेने वाली आदत इस बार उसे बुरे गर्त में ढकेलने की बार-बार कोशिश करती है लेकिन बार-बार उसका लक उस गर्त से निकाल ही लेता है।
किरदारों के बारे में बात करूँ तो सुधीर कोहली के अलावा इंस्पेक्टर यादव, रजनी, पल्लवी जैन ने कहानी में ज्यादा स्थान घेरा है। वैसे यह भी कहना सही होगा कि उपन्यास मुझे घटना प्रधान नहीं लगा क्यूंकि घटनाओ की कमी बराबर देखी जा रही थी। मेरा मानना है कि सुधीर सीरीज अमूमन घटना प्रधान होती ही नहीं है लेकिन फिर भी कुछ उपन्यास इस सीरीज के अपवाद जरूर है जिनके बारे में आगे कभी चर्चा करूँगा।
मैं ये भी कहना चाहूँगा कि अगर आपने सुधीर को नहीं पढ़ा तो जरूर पढ़िए और इसके लिए जरूरी नहीं कि आप यही उपन्यास पढ़िए। जो पहले मिल जाए उस पढ़ डालिए। आप जरूर “द लकी बास्टर्ड” के फेन बन जायेंगे। क्यूंकि सुधीर दुनिया के वसूलों को नहीं मानता, वह अपने नियम खुद बनाता है। वह दुनिया कि फिलोसोफी को नहीं अपनाता बल्कि अपने अनुभव से नयी फिलोसफी बनाता है। सुधीर दुनिया के उन आदर्शों पर नहीं चलता जो उसे पुराने विचारों एक कमरे में बंद कर दे। सुधीर के अपने आदर्श हैं।
सुधीर, मैं हूँ। सुधीर, आप हैं। सुधीर, हम सभी हैं।
राजीव रोशन
सुधीर सीरीज मेरी भी पसंदीदा सीरीज है। मैंने इसके चोरों की बारात और प्यादा पढ़ा हुआ है। कुछ दिनों पहले बहरूपिया और ओवरडोज़ हासिल की तो वो अब पढ़ूँगा।
ReplyDeleteलेकिन दुःख की बात है कि इसके पुराने उपन्यासों के रीप्रिंट उपलब्ध नहीं हैं। अगर वो होते तो मज़ा आ जाता। वैसे आपके हिसाब से सुधीर सीरीज का कौन सा उपन्यास सबसे बेहतरीन है।
विकास भाई.. आप गड़े मुर्दे या घातक गोली पढ़िए| मेरे हिसाब से ये बेहतरीन हैं| वहीँ आप "गोल्डन गर्ल" को भी पढ़िए... शानदार हाउ डन इट है|
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