कफ़न – मेरी नज़र से
प्रेमचंद जी द्वारा लिखी कई कहानियां मैंने पढ़ी हैं। अधिकतर कहानियां तब पढ़ी थी जब मैं स्कूल में पढ़ा करता था। मैं समझता हूँ उस समय किसी कहानी के लिए निकला हुआ अर्थ और भावना, अब जब मैं उसी कहानी को दुबारा पढूं तो, एक समान नहीं रहेगा। मुझे याद नहीं कि मैंने इस “कफ़न” इससे पहले कभी पढ़ा था या नहीं लेकिन प्रेमचंद जी के कहानियों के संकलन “मानसरोवर” के सभी भाग पढ़े हैं।
अब मैं “कफ़न” कि तरफ आता हूँ। माधव, उसका बेटा बुधिया, बुधिया की पत्नी और कफ़न – ये चार किरदार हैं इस कहानी के। नहीं, नहीं, अगर ये चार ही किरदार हैं इस कहानी के तो फिर ये इस कहानी के साथ न्याय नहीं होगा। इस कहानी के और भी ऐसे किरदार हैं जिनको मानव शरीर का आकार नहीं दिया गया है। शायद भूख, गरीबी, आलस्य, पैसा, लालच और समाज की कई बुराइयां भी इस कहानी कि किरदार हैं।
बुधिया कि पत्नी प्रसव पीड़ा से पीड़ित है पर मजाल है कि माधव और बुधिया के कानों पर जूं रेंगी हो। मजाल है कि ये पत्थर दिल लोग उसकी इस पीड़ा से अपने अन्दर सोये इंसान को जगा पाए। ये दोनों पुरुष इंतज़ार कर रहे हैं कि प्रसव पीड़ा से पीड़ित परिवार का यह अतिरिक्त सदस्य मर जाए ताकि कोई नया सदस्य न आ सके। अगर कोई नया सदस्य आ गया तो उसकी रोटी और दूध का इंतजाम कहाँ से होगा जबकि अभी से फांके के लाले पड़े हैं।
आखिरकार होनी को वही मंजूर होता है और बुधिया कि पत्नी मर जाती है। अब चूँकि हिन्दू समाज में किसी शव को अग्नि देने तक में कई रीती रिवाजों का पालन करना पड़ता है। दोनों निकल पड़ते हैं, शव अंतिम संस्कार कि तैयारी में चंदा जुटाने के लिए। आस-पड़ोस के लोग लकड़ी आदि का इंतजाम तो कर देते हैं पर कफ़न का इंतजाम इन्हीं दोनों को करना है।
कैसे इन दोनों कि कफ़न के इंतजाम के मार्ग में अनेक विचार उठते हैं, यह देखने योग्य है और यह कहानी का मर्मान्तक अंत भी है।
समझ नहीं आता है कि यह कहानी सन्देश क्या देना चाहती है?
क्या कहानी यह सन्देश देना चाहती है कि एक लड़की अपने बाप के घर से इस उम्मीद में ससुराल में कदम रखती है कि जो परिवार उसे मिलेगा, उसके सुख और दुःख का भागी होगा। लेकिन जब एक महिला प्रसव पीड़ा से पीड़ित हो और उसका पति और ससुर कुछ करना ही चाहता है। वो तो यह चाहते हैं कि वो मर जाए और एक नया जीवन भी संसार में ना आये। ऐसा लगता है कि एक नए जीवन की दुनिया में आने से पहले ही हत्या हो गयी हो। मेरे हिसाब से कफ़न एक नारी-प्रधान कहानी है, जहाँ नारी कि पीड़ा को शब्दों में इस तरह दर्शाया गया है कि पढने वाले किरदार पर एक कटाक्ष हो।
हो सकता है कि उपरोक्त सन्देश ही हो, लेकिन, ऐसा भी हो सकता है कि यह कहानी इंसान के आलस्य कि कहानी कहता हो। बुधिया और माधव इतने आलसी हैं कि जब तक उनके पास खाने के लिए पैसे हैं वे काम ही नहीं करते। लेकिन जैसे ही पैसे खत्म होते हैं वो फिर कहीं जाकर काम करके कुछ पैसे ले आते हैं फिर वही चक्र शुरू हो जाता है। हाँ, शायद यह आलस्य की ही कहानी है। मैंने देखा है कि दिल्ली में कई मजदूर साल भर काम करके पैसा सहेजते हैं और फिर अपने गाँव चले जाते हैं। फिर तब ही वापिस आते हैं जब उनके पास पैसे खत्म हो जाते हैं।
नहीं, ये भी इस कहानी का केंद्र बिंदु नहीं हो सकता। मेरे हिसाब से जो बुधिया और माधव ने किया वह एक हत्या कि ओर इशारा करता है। और अब समाज कहता है कि इस हत्या पर पर्दा डालो और इस परदे के लिए ही कहानी लिखी गयी है। यह पर्दा वही कफ़न है जो मुर्दे के शरीर पर ओढाया जाना है। जिन इंसानों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि दर्द में कराहती एक स्त्री मौत के बिस्तर कि तरफ बढ़ रही है उन्हें क्यूँ चिंता है कफ़न की। क्यूँ समाज इस हत्या पर पर्दा डालने कि कोशिश करता है।
या फिर “कफ़न” हमारे जीवन के उस सच से पर्दा उठाने कि एक कोशिश जिसमे इंसान के एक बार गिरने और फिर गर्त तक गिरते रहना ही लिखा है।
मैं नहीं समझ पाया कि कहानी का केंद्र बिंदु क्या है? अगर आपने पढ़ा हो तो साझा करें। अगर नहीं पढ़ा तो पढ़ कर साझा करें।
आभार
राजीव रोशन
श्रीमान जी कफ़न के पात्र घीसू और माधव हैं ।बुधिया माधव की पत्नी है।
ReplyDeleteGood
Delete