कैशलेस इकॉनमी : भूत, वर्तमान एवं भविष्य
अगर गौर से देखा जाए तो डिजिटल इंडिया का आरम्भ तब हुआ जब टैक्सी सर्विस कंपनी ने भारत में अपनी टैक्सी सर्विस शुरू की। उनके पेमेंट करने के तरीके से लेकर, प्रमोशन के तरीके तक में डिजिटल इंडिया की झलक साफ़ दिखाई देती है। उबर को सफल बनाने में उनके कैश बैक पालिसी और फ्री कैब सर्विसेज ने ऐसा काम किया कि वह लोगों की आदत बन गयी। जी, हाँ, एक ऐसी आदत जिसे लोग अपनी आम जरूरत की आदतों में जोड़ने लगे। उस दौर में उबर कैब की पेमेंट या तो पेटीएम के जरिये होती थी या क्रेडिट/डेबिट कार्ड से। बाद के दिनों में ओला टैक्सी सर्विस ने भी इसी हथियार को अपनाया और उबर के साथ भारत में टैक्सी सर्विसेज में अपना वर्चस्व स्थापित किया। वहीँ पेटीएम् कंपनी ने जब कैश बैक के ऑफर से लोगों को मुतमुइन करना शुरू किया तो वह भी उपभोक्ताओं की आदत में शुमार कर गयी। जहां पेटीएम ने आरम्भ, इ-वॉलेट का रुख अख्तियार कर मोबाइल रिचार्ज और बिल-पेमेंट से अपना मोर्चा खोला और आगे आने वाले वक़्त में अपनी सूची का विस्तार व्यापक तरीके से किया। इसके बाद भिन्न-भिन्न बैंकों ने भी ई-वॉलेट एवं मोबाइल वॉलेट तकनीक को इस्तेमाल कर अपने-अपने मोबाईल एप्प को लांच कर दिया। गौरतलब है कि फ्रीचार्ज एवं मोबिक्विक जैसी ऑनलाइन रिचार्ज करने वाली वेबसाइट ने भी धीरे-धीरे अपना विस्तार कर एक मोबाइल एवं ई वॉलेट के रूप में पेटीएम के समकक्ष खुद को खड़ा कर दिया।
लेकिन इन सभी, हाथ में एक उँगलियों के जरिये एक बटन को दबाकर मिलने वाली सुविधाएं सिर्फ स्टेज के सामने का ही मनोरम दृश्य दिखाती हैं जबकि स्टेज के पीछे कई भयानक अपराध कथाएं हैं जो आसानी से सभी को पता नहीं चलती है। ये अपराध मूलतः ऑनलाइन ही किये जाते हैं जिसके लिए हैकिंग से लेकर प्रत्यक्ष तौर-तरीकों का भी इस्तेमाल होता है। प्रत्यक्ष रूप से किये जाने वाले अपराध इस तरह से किये जाते हैं जिनके बारे में उभोक्ताओं एवं शोषितों को पता चलते-चलते बहुत देर हो जाती है।
नवम्बर में भारत सरकार ने demonetization के जरिये डिजिटल क्रांति का जब आगाज़ किया तो कई प्रकार के पेमेंट मेथड सामने आये। इस दौर में भारत सरकार ने भी अपने ई-वॉलेट एवं एम-वॉलेट की शुरुआत की। वहीँ बाद में, USSP कोड से किये जाने वाले पेमेंट मेथड को आरम्भ करने के बाद भी, अभी तक भारत के लोग इस मेथड को अपने आदत में पेटीएम एवं ई-बैंकिंग की तरह इस्तेमाल करते नज़र नहीं आ रहे हैं। ऐसे में भारत सरकार द्वारा भारत क्यू आर कोड को लांच किया गया जिसे बहुत ही आसानी एवं सुरक्षित तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है। गौरतलब है कि पहले जहाँ अलग-अलग वॉलेट कंपनियां अलग-अलग क्यूआर कोड पर काम करती हैं लेकिन इस भारत क्यूआर कोड के जरिये सिर्फ एक ही कोड काफी होगा। कहा यह जा रहा है कि यह एक सुरक्षित एवं सुगम उपाय है पेमेंट ट्रांसफर करने का लेकिन इसकी सफलता एवं असफलता आने वाले भविष्य पर निर्भर करता है। सबसे बड़ी बात है इसको प्रमोट करना – और इसके लिए सरकार ने कैश-बैक ऑफर देने की भी योजना बनाई है और मेरा सोचना है कि, दूसरे सरकारी योजनाओं की तरह कैश-बैक आने वाली राशि न तो कम आएगी और न ही न आएगी – जैसा कुछ होगा। इस योजना को सफल करने के लिए यह प्रमोशन काबिलेतारीफ है क्योंकि मेरा मानना है कि हम भारतीयों को मुफ्त, एक पर एक फ्री या कैश-बैक चीजों के बड़ी बुरी आदत लगी है और यह आदत आज की नहीं बल्कि बहुत पुरानी है। असफलता के बारे में जानकारी तब प्राप्त होगी जब इस तरीके में सेंध लगाकर कोई साइबर क्राइम जैसा अपराध करेगा। जैसा की मुझे फिजिक्स की कक्षा में पढ़ाया गया था कि सिर्फ आइंसटीन का नियम E= mc^2 ही ऐसा नियम है जिसका तोड़ नहीं मिल पाया है तो इस हिसाब से भारत क्यूआर कोड के लांच होते ही इसको हैक कर इसकी धज्जियाँ उड़ाने वाले या इसका गैरकानूनी तरीके से इस्तेमाल करने वाले जमात ने काम करना शुरू भी कर दिया होगा।
अब इस कैशलेश के दौर में सबसे बड़ा मुद्दा जो उठता है, वह है ट्रांसेक्शन की सिक्योरिटी का। एक सिक्योर ट्रांसेक्शन की जरूरत पहले वाली व्यवस्था में भी थी और इस व्यवस्था में भी है। प्रोद्दोगिकी ने भले ही हमारे हर काम को आसान कर दिया है लेकिन इसकी खामियों से चिर-परिचित हमें होना पड़ेगा। द इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (CERT-In) की रिपोर्ट के अनुसार साइबर सिक्योरिटी एवं साइबर क्राइम से जुड़े लगभग 39,730 घटनाएं 2016 के प्रथम 10 महीनों में रिपोर्ट की गयी। यह 2015 के 49455 एवं 2014 के 44679 में रिपोर्ट किये गए आंकड़े से कम जरूर लगता है लेकिन’ द इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम’ के अनुसार यह आंकड़ा नवम्बर एवं दिसम्बर 2016 में बढ़ कर अपने पिछले आंकड़े को पार कर सकता है।
Demonetisation के कारण इ-वॉलेट एवं मोबाइल वॉलेट जैसी सेवाओं में एक जबरदस्त उछाल देखी गयी जिसका अंदाजा वॉलेट सर्विसेज देने वाली कंपनियों द्वारा बनाये गए एप्प के डाउनलोडिंग के आंकड़े से समझा जा सकता है। आंकड़े कहते हैं कि मोबाइल वॉलेट ने जहाँ 100% ग्रोथ की छलांग लगाई है वहीँ मोबाइल वॉलेट एप्प के डाउनलोडिंग ने 400% की छलांग लगाई है। यह आंकड़ा हमें बहुत कुछ सोचने-विचारने के लिए मजबूर करता है।
स्मार्टफोन मोबाइल की क्रांति ने ई-कॉमर्स, एम-कॉमर्स जैसी कई सेवाओं का भारत में उदय करने में सहायता प्रदान की वहीँ इसी क्रांति की बदौलत उबर और ओला जैसी कंपनियों ने डिजिटल पेमेंट को प्रमोट किया। जैसा कि मैंने ऊपर बताया है कि कंपनियों ने कैसे लुभावने ऑफर दे देकर डिजिटल पेमेंट और डिजिटल प्लेटफॉर्म को प्रमोट किया।
कैशलेश इकॉनमी की बुनियाद भले ही हम रख चुके हैं लेकिन यह बताना चाहूंगा की पिछले 5 वर्षों में, बैंकिंग सिस्टम में ही साइबर क्राइम से सम्बंधित घटनाओं की बढ़ोतरी हुई है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में, अक्टूबर 2016 में, एक एटीएम कार्ड हैकिंग ने लगभग 32 लाख डेबिट कार्ड्स को प्रभावित किया। इसलिए भारत में डिजिटल क्रांति को अगर किसी मुकाम पर लाकर खड़ा करना है तो साइबर सिक्योरिटी सिस्टम को परफेक्ट करना होगा, और मजबूत करना होगा।
एक्चुअली में जितना ज्यादा इंटरनेट बेस्ड पेमेंट ट्रांसफर बढ़ेगा उतना ही साइबर क्राइम भी बढ़ेगा जैसे कि – फिशिंग, स्कैनिंग, वेबसाइट इंट्रूशन्स, डेफसमेंट्स और वायरस कोड आदि बढ़ेंगे। एक्चुअली demonetisation के बाद से बैंकिंग और फाइनेंसियल सेक्टर सबसे ज्यादा क्रिटिकल स्थिति में हैं। पहले साइबर क्राइम के अंदर घटने वाले घटनाएं उतनी बड़ी नहीं होती थी लेकिन आज वह बड़ी, बहुत बड़ी एवं इतनी बड़ी हो सकती हैं कि तबाही ला सकती हैं।
हमें इस तबाही से बचने के लिए ‘ट्रांसक्शनल लिटरेसी’ की जरूरत है। हमें सीखने की जरूरत है, समझने की जरूरत है। आज कई बैंक्स ऑनलाइन ट्रांसेक्शन के लिए बायोमेट्रिक टेक्निक का इस्तेमाल करना चाह रही है जिसमे वे आपके कैमरे एवं ऑडियो को एक्सेस करना चाहती है। समस्या यह है कि सोशल साइट्स के लिए हम सभी चीजों का एक्सेस दे देते हैं और जहाँ बैंकिंग की बात आती डर जाते हैं, क्यूँ? क्योंकि हम कितने भी पढ़े-लिखे हों पर ट्रांसक्शनल लिटरेसी के मामले में अभी दिल्ली बहुत दूर है।
एक बेहद उम्दा, बेहतरीन, सुरक्षित एवं इंटेलिजेंट साइबर सिक्योरिटी सिस्टम या ट्रांसेक्शन सिस्टम के लिए जरूरी है कि देश के भर की सभी संस्थाएं, बैंक एवं एजेंसियां एक मंच पर आये और ऐसे सिक्योरिटी सिस्टम का निर्माण करें।
नए कैशलेश संसार में धोखाधड़ी एवं अपराध की घटनाएं बढ़ने वाली हैं ऐसे में हमें यह सोचने की जरूरत है कि वर्तमान में इस्तेमाल होने वाली तकनीक कब तक भरोसे के काबिल हैं। आशा है सरकार, बैंक एवं दूसरी संस्थाएं आगे बढ़ कर आएँगी और एक सिक्योर एवं सुविधाजनक तकनीक हमें प्रदान करेगी जिसके जरिये हम खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें।
आभार
राजीव रोशन
कोहबर की शर्त लेखक - केशव प्रसाद मिश्र वर्षों पहले जब “हम आपके हैं कौन” देखा था तो मुझे खबर भी नहीं था की उस फिल्म की कहानी केशव प्रसाद मिश्र की उपन्यास “कोहबर की शर्त” से ली गयी है। लोग यही कहते थे की कहानी राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म “नदिया के पार” का रीमेक है। बाद में “नदिया के पार” भी देखने का मौका मिला और मुझे “नदिया के पार” फिल्म “हम आपके हैं कौन” से ज्यादा पसंद आया। जहाँ “नदिया के पार” की पृष्ठभूमि में भारत के गाँव थे वहीँ “हम आपके हैं कौन” की पृष्ठभूमि में भारत के शहर। मुझे कई वर्षों बाद पता चला की “नदिया के पार” फिल्म हिंदी उपन्यास “कोहबर की शर्त” की कहानी पर आधारित है। तभी से मन में ललक और इच्छा थी की इस उपन्यास को पढ़ा जाए। वैसे भी कहा जाता है की उपन्यास की कहानी और फिल्म की कहानी में बहुत असमानताएं होती हैं। वहीँ यह भी कहा जाता है की फिल्म को देखकर आप उसके मूल उपन्यास या कहानी को जज नहीं कर सकते। हाल ही में मुझे “कोहबर की शर्त” उपन्यास को पढने का मौका मिला। मैं अपने विवाह पर जब गाँव जा रहा था तो आदतन कुछ किताबें ही ले गया था क्यूंकि मुझे साफ़-साफ़ बताया ग...
जानकारी से भरा लेख राजीव जी। सारे बैंको को एकजुट होकर एक योग्य तंत्र की स्थापना करने की अतिआवश्यकता है।
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