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पृथ्वीवल्लभ (गुजरात गाथा -4)

#पृथ्वीवल्लभ #गुजरात_गाथा 4



बात ज्यादा पुरानी नहीं लेकिन काबिलेगौर है, मेरे एक अभिन्न मित्र तरविंदर सिंह उर्फ रोमी भाई से एक बार पुस्तकों की चर्चा के दौरान गुजराती भाषा के महान साहित्यकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी का नाम सुना। उन्होंने उनका जिक्र #कृष्णावतार के संबंध में किया था जिसको खरीदने की कूवत उस वक़्त मुझमें नहीं थी। 7 खण्डों में विभाजित #कृष्णावतार में से मैंने पहली बार, पहला भाग ‘बंसी की धुन’ खरीदा और पढ़ा। पढ़ने के बाद, उन्हें और पढ़ने की चाहत मन में अतृप्त चाहत की तरह पलती रही। बाद के वर्षों में #कृष्णावतार का पूरा सेट खरीदा और उसके चौथे खंड #पांच_पांडव को पढ़ने का सिलसिला वर्तमान में जारी भी हैं।

इस वर्ष संपन्न हुए विश्व पुस्तक मेले में #वाणी_प्रकाशन के स्टाल पर मुंशी जी की नयी कृतियाँ नज़र आई जिस पर मैंने सबसे पहले अधिकार करने की कोशिश की। ये किताबें थी - #गुजरात_गाथा सीरीज के अंतर्गत आये चार उपन्यास जो ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखे गए थे वहीँ ‘परशुराम’ जो माइथोलॉजी पृष्ठभूमि पर लिखा गया है।

#प्रतिभा_राय द्वारा कृत #द्रौपदी एवं #विष्णु_सखाराम_खांडेकर द्वारा कृत #ययाति पढ़ने के बाद #पृथ्वीवल्लभ पढ़ना शुरू किया। हालाँकि #गुजरात_गाथा सीरीज का पहला उपन्यास #पाटन_का_प्रभुत्व है लेकिन #वाणी_प्रकाशन की एक खामी के चलते मैंने #पृथ्वीवल्लभ को ही इस सीरीज का पहला उपन्यास समझा। यह खामी थी - #गुजरात_गाथा सीरीज के उपन्यासों के ऊपर श्रृंखला क्रम संख्या न लिखा हुआ होना। खैर यह खामी मेरे लिए वरदान साबित हुए जिसके कारण, मैं, आज कई महीनों बाद किसी पुस्तक की समीक्षा लिखने के लिए प्रेरित हुआ हूँ।

#पृथ्वीवल्लभ कहानी है, 10 वीं शताब्दी में हुए दो राजाओं के टकराव की -  यह टकराव है, परमारवंशी राजा मुंज, जिसकी राजधानी अवंती है और चालुक्यवंशी राजा तैलप, जिसकी राजधानी मान्यखेट है, के बीच। जहाँ अवंति का राजा मुंज रसिक है, कवी है, प्रेमी है, आनंदी पुरुष है, भोगी है, बेपरवाह है, योद्धा है एवं अपनी आवाम के लिए ‘पृथ्वीवल्लभ’ के नाम से प्रसिद्द है और ऐसा ही कुछ हाल उसके राज्य का भी है जहाँ के निवासी अपने दैनिक क्रियाओं के साथ-साथ, गीत-संगीत, आमोद-प्रमोद, राग-रंग, नाट्य-नाटक आदि के जरिये जीवन के सच्चे आनंद का भी मजा उठाते हैं। जबकि राजा तैलप एक पाषाण ह्रदय पुरुष एवं विक्रमी योद्धा है जिसका लालन-पालन उसकी विधवा बहन मृणालवती ने किया। जिस प्रकार उस समय विधवाओं के लिए राग-रंग, आमोद-प्रमोद, गीत-संगीत निषेध होते थे उसी रूप में समाज के इन नियमों को स्वीकार करते हुए उसने अपने भाई का पालन किया और उसे भी इन भोगों से दूर रखा। कहने को तो तैलप राजा है लेकिन प्रजा पर राज उसकी बहन मृणालवती करती है। 

16 बार मुंज से हार का मुहं देखने के बाद तैलप अपने महासामंत भील्लमराज की सहायता से मुंज को हराकर, उसे बंदी बनाकर मान्यखेट ले आता है। इसके बाद इस उपन्यास की मूल कहानी की शुरुआत होती है जो एक प्रकार का द्वन्द है दो राज्यों के निवासियों के बीच का। यह द्वन्द है – मृणालवती के तपस्विनी एवं वैरागी जीवन एवं मुंज के बेपरवाह भोग के जीवन के बीच। यह द्वन्द है भील्लमराज के बेटी विलासवती और अवंती के कवी रसनिधि के बीच। मैं इस द्वन्द को प्रेम द्वन्द कहूँ तो बेहतर होगा। पृथ्वीवल्लभ कहाये जाने वाले मुंज के गर्व को अभिमान समझने वाली मृणालवती उसके अभिमान को तोड़ने के लिए सैंकड़ों जतन करती है लेकिन मुंज का रूप, वैभव, विचार, सोच आदि इतने दृढ हैं कि धारा उलटी बहने लग जाती है।उपन्यास पढ़ने के बाद एहसास होता है कि मुंज एक तपस्वी है जो प्रेम-यज्ञ कर रहा है - वह बार-बार इस यज्ञ में आहुति देता है ताकि मृणालवती के वैरागी एवं तपस्वी मन में प्रेम के बीज अंकुरित हो सके और बार-बार मृणालवती के अंदर की प्रेम अग्नि को भड़काता है।

कुल 122 पन्नों में सिमटे इस उपन्यास को सन 1920 में गुजराती भाषा में लिखा गया था। वाणी प्रकाशन के लिए इस उपन्यास को हिंदी में अनुवाद प्रवासिलाल वर्मा ने किया है। उपन्यास का अनुवाद इतने बेहतरीन तरीके से किया गया है कि महसूस ही नहीं होता की यह अनुवादिका उपन्यास है। #गुजरातगाथा सीरीज में यह चौथा एवं अंतिम उपन्यास है – जो अपने विशिष्ट ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं उसके बेहतरीन भाषाशैली से पाठक को अंत तक बांधे रखती है।

उपन्यास के किरदार – इतने बारीकी से उकेरे गए हैं – उनकी रचना वास्तविकता के ऐसे पैमाने पर की गयी है कि एहसास ही नहीं हो पाता है – की इसमें कल्पना की मात्रा भी मौजूद होगी। तैलप, मृणालवती एवं मुंज तो उपन्यास के मुख्य किरदार है हीं लेकिन भील्लमराज, लक्ष्मीवती, विलासवती, रसनिधि एवं धनञ्जय जैसे किरदारों के कारण ही उपन्यास परिपूर्ण लगता है।उपन्यास की घटनाएं निःसंदेह इतिहास से उठाई गयी हैं लेकिन उसका प्रस्तुतीकरण पाठक को किसी काल्पनिक कथा की तरह वशीभूत कर देता है।

गुजराती साहित्य के महान साहित्यकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी जी की यह कृति हर मायने में पठन योग्य है। 10 वीं शताब्दी के गुजरात एवं उसके आसपास के क्षेत्रों के इतिहास को इन गल्प के जरिये पढ़कर आप रोमांचित महसूस करेंगे। यह रोमांच एक अलग ही प्रकार का रस आपके दिलों दिमाग में घोल कर चला जाएगा जिसके बाद आपको मुंशी जी की रचनाओं की भूख और फिर पढ़ने के बाद मोहब्बत दोनों हो जायेगी।

सन 1950 ई. में सोहराब मोदी ने इस उपन्यास पर आधारित इसी पुस्तक के नाम से फिल्म का भी निर्माण किया था।

आभार
राजीव रोशन

इस पुस्तक को आप निम्न लिंक से खरीद कर पढ़ सकते हैं:- Prithvivallabh https://www.amazon.in/dp/9350726610/ref=cm_sw_r_tw_apa_7EcRyb6K794VA


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