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मकड़जाल और ग्रैंडमास्टर – The Magic created by Sir Surender Mohan Pathak

मकड़जाल और ग्रैंडमास्टर – The Magic created by Sir Surender Mohan Pathak


*Spoiler Alert*



“क्या आप गौर से देख रहे हैं, हर जादू के खेल में तीन भाग होते हैं या एक्ट्स। पहला भाग होता है “द प्लेज”। जादूगर आपको आम चीज दिखाता है – एक ताश की गड्डी, एक चिड़िया या एक आदमी। वो आपको ये चीज दिखाता है, शायद वह आपसे इसकी जांच करने को कहे यह देखने के लिए की यह सचमुच असली है कि कहीं कोई छेड़छाड़ तो नहीं पर बेशक शायद ऐसा नहीं है। दूसरा एक्ट कहलाता है “द टर्न” – जादूगर कुछ आर्डिनरी सा लेता है और उससे कुछ एक्स्ट्रा-आर्डिनरी सा करवाता है, जैसे कि गायब कर देना। अब आप राज की तलाश में हैं लेकिन वह आपको मिलेगा नहीं क्यूंकि बेशक आप असल में खोज नहीं रहे हैं, आप असल में जानना नहीं चाहते, आप चाहते हैं कि बुद्धू बने। पर अभी तक आप ताली नहीं बजायेंगे क्यूंकि किसी चीज को गायब करना ही काफी नहीं है आपको इसे वापिस लाना होता है। इसलिए हर मैजिक ट्रिक में एक तीसरा एक्ट होता है, सबसे कठिन भाग और इस पार्ट को कहते हैं “द प्रेस्टीज”।

दोस्तों ऊपर जो ये आप संवाद पढ़ रहे हैं वह सन २००६ में Christian Bale और Hugh Jackman अभिनीत हॉलीवुड फिल्म “द प्रेस्टीज” का पहला संवाद है। यह एक मिस्ट्री ड्रामा फिल्म है जिसकी कहानी को क्रिस्टोफर प्रीस्ट के नावेल “द प्रेस्टीज” से अडॉप्ट किया गया है। यह फिल्म दो ऐसे जादूगरों की कहानी है जो हमेशा एक दुसरे से प्रतियोगिता करने में लगे रहते हैं। यह फिल्म इतनी बेहतरीन और लाजवाब है की मैं ५-६ महीने एक बार इसे देख ही लेता हूँ। चलिए छोडिये मैं भी कहाँ इन बातों को ले आया।

सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी एक जादूगर हैं और इस बात से आप भी इनकार नहीं करेंगे। लेकिन वह किसी स्टेज पर परफॉर्म करने वाले जादूगर नहीं बल्कि कलम के जादूगर हैं। इस बात का बेहतरीन नमूना आपको उनके द्वारा लिखित कई उपन्यासों को पढने के बाद हासिल हो सकता है। हाल ही में मैंने उनकी जादूगरी, खासकर उस जादूगरी जो इस लेख की पहली पंक्ति पढने के बाद आपने महसूस किया होगा, को उनके उपन्यास “मकड़जाल” और “ग्रैंडमास्टर” में पढने के बाद महसूस किया। सन २००७ में आये दोनों ही उपन्यास एक वृहद् कहानी के दो भाग हैं। मई-२००७ में “मकड़जाल” प्रकाशित हुआ था फिर 2 महीने बाद ही अगस्त-२००७ में “ग्रैंडमास्टर” भी प्रकाशित हुआ।

यह पूरी वृहद् कहानी सिर्फ चार किरदारों के इर्द गिर्द बुनी गयी है जिसमे कौन नायक है और कौन खलनायक इसका पता लगाना बहुत मुश्किल काम है। सदानंद पुणेकर, पचास वर्ष से भी अधिक आयु का एक व्यवसाय है जो १५ नाईट क्लब्स का मालिक है और इन नाईट क्लब की आड़ में वह ड्रग का बिज़नस बड़े शांत एवं व्यवस्थित तरीके से चलाता है। नमिता पुणेकर, सदानंद पुणेकर की जवान और पटाखा बीवी है जिसे सिर्फ चाहत है तो दौलत, दौलत और दौलत की। कपिल कोठारी सदानंद पुणेकर का वकील और ट्रबलशूटर है। डॉ. प्रफुल सिंगला सदानंद पुणेकर का फॅमिली डॉक्टर है, जिसकी महत्वाकांक्षा है की वह भी एक धनाढय डॉक्टर बन कर उभरे। इन चार किरदारों के इर्द-गिर्द बुने गए इस वृहद् कहानी में घात-आघात-प्रतिघात के भरपूर मात्रा है जो इसे पाठक साहब के आम उपन्यासों से इसे अलग बनाती है।

एक पाठक आसानी से सर सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा लिखे गए इस जादूई उपन्यास के फंसता चला जाता है। एक पाठक समझता है कि उसने इस उपन्यास के जादूई लेखन को समझ लिया है, उसे सब कुछ आसान सा लगने लगता है कि तभी पाठक साहब कहानी को एक टर्न देते हैं और पाठक उस सीक्रेट को खोजता रहता है कि ये कैसे हुआ और कब हुआ। लेकिन पाठक साहब इस जादूई कहानी में अचानक ही एक प्रेस्टीज एक्ट करते हैं जिससे पाठक भौचक्का हो जाता है और वह मन ही मन पाठक साहब की जादूई लेखनी की वाह-वाही करना शुरू कर देता है।

इस उपन्यास को अगर मैं इस लेख के पहले पंक्ति से सम्बन्ध स्थापित करूँ तो कुछ यूँ होगा –

द प्लेज – सदानंद पुणेकर की हत्या की साजिश रचना। नमिता पुणेकर जो अपनी जवानी और हुस्न के सदके डॉ. प्रफुल सिंगला पर ऐसा प्रभाव डालती है कि डॉक्टरी जैसा इज्जतदार काम करने वाला शख्स खुद को सदानंद पुणेकर के क़त्ल के तैयार कर लेता है।

द टर्न – जिस रात डॉ. प्रफुल सिंगला सदानंद पुणेकर की हत्या करने वाला होता है उसी रात उसका एक्सीडेंट हो जाता है लेकिन उसकी लाश पुलिस को खोजे नहीं मिलती है।

द प्रेस्टीज - सदानंद पुणेकर किस्मत के सदके अपनी हत्या के षड़यंत्र से बच निकलता है।

लेकिन इस कहानी में सिर्फ एक ही जादू नहीं है। आगे आपको एक और जादू देखने को मिलता है:-

द प्लेज – फिर से सदानंद पुणेकर की हत्या की योजना बनती है। इस बार नमिता पुणेकर और कपिल कोठारी इसकी योजना बनाते हैं।

द टर्न – कपिल कोठारी हत्या की योजना को सफलता पूर्वक अंजाम देता है और कुछ दिनों के लिए नमिता पुणेकर से दूर चला जाता है।

द प्रेस्टीज – माफ़ी चाहूँगा। इस कहानी का प्रेस्टीज वाला हिस्सा आपको नहीं बता सकता। क्यूंकि जादू के बारे में सुनना और जादू को खुद देखकर महसूस करना दोनों ही अलग बात है। आप मकड़जाल और ग्रैंडमास्टर पढ़िए आप खुद जान जायेंगे की प्रेस्टीज वाला एक्ट क्या था।

वैसे मैं बता देना चाहूँगा की इस वृहद् कहानी में कई “प्लेज” और कई “टर्न” हैं लेकिन जो फाइनल “प्रेस्टीज” एक्ट है वह होश उड़ा देने के काबिल तो जरूर है। इसमें कोई दो राय नहीं की पाठक साहब एक बेहतरीन जादूगर हैं जो कलम से अपनी इस कला का बखूबी नमूना दिखाते हैं। एक समय आपके सामने रखे हैट के नीचे खरगोश है दुसरे ही पल वह वहां गायब। पाठक साहब रीडर को ऐसा उलझा देते हैं की वह खरगोश और हैट के आगे सोच ही नहीं पाता और तीसरे ही पल वह आपके सामने फिर से खरगोश को ला खड़ा कर देते हैं। इसे कहते है “द परफेक्ट मैजिक” और इसमें पाठक साहब को महारथ हासिल है।

जब आप इस वृहद् कहानी को पढ़ते हैं तो महसूस करते हैं की कैसे वह सिमित किरदारों के साथ इतनी वृहद् कथा का निर्माण कर सकते हैं। आप समझते हैं की आपने बहुत बुद्धिमानी से अपनी अक्ल का इस्तेमाल करते हुए इस रचना के मिस्ट्री और सीक्रेट को तोड़ दिया है लेकिन आप भूल गए हैं कि ये स्टेज किसका है और कौन इसका ग्रैंडमास्टर है – यकीनन पाठक साहब इस कहानी के ग्रैंडमास्टर हैं और हम रीडर वह हैं जो पाठक साहब द्वारा लिखे गए इस मकड़जाल में फंस जाते हैं और तब तक कहानी को पढ़ते हैं जब तक इसका अंत हमें मालूम न हो जाए।

इस कहानी की पृष्ठ भूमि मुंबई में एक बीच के किनारे स्थित एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ कई कॉटेज बने हैं। इस कहानी का ताना-बाना झूठ, फरेब, धोखा-धड़ी, हुस्न का जाल और घात-आघात-प्रतिघात के आधार पर बुना गया है। इस कहानी के किरदार विश्वसनीयता के एक दम करीब लगते हैं। रीडर को महसूस होता है की हाँ ऐसे किरदार होते होंगे उसे महसूस होता है की जो घटनाक्रम पाठक साहब ने कहानी में प्रस्तुत किया है ऐसा पहले भी कई बार हो चूका होगा। मैं ऐसा नहीं कहूँगा की कहानी में अनोखापण है लेकिन इसकी प्रस्तुतीकरण में अनोखापन है इस बात से मैं कभी मुकुरुंगा भी नहीं। इस कहानी में थ्रिलर, सस्पेंस और मिस्ट्री की एक शानदार प्रस्तुति है जो एक बाद एक टर्न लेती हुई सीधे प्रेस्टीज तक पहुँचती है और पाठक को रोमांच की वह खुराक देती है जिसका वह तलबगार है।

जादू वह होता है जिसमें आप उस घटना के साक्षी होते हैं जिसका संभव होना आपके दिमाग के लिए सक्षम नहीं है। जादू कुछ और नहीं आँखों का धोखा है जिसे जादूगर खुद आपके हाथों ही दिलवाता है। तो, क्या आप तलबगार हैं ऐसी जादूई और रहस्यमयी कहानी पढ़े को। तो, क्या आप तैयार हैं मिस्ट्री और थ्रिल की दुनिया में गोते लगाने को। तो क्या आप तैयार हैं उस रहस्य को खोज निकालने को जिसे खोजने में मैं असफल रहा था। तो निकालिए फिर से अपनी ७-८ वर्ष पुरानी “मकड़जाल” और “ग्रैंडमास्टर” की उस कॉपी को जिसे एक बार पढने के बाद धुल खाने के लिए छोड़ दिया था।

तो क्या आप तैयार हैं यह जानने के लिए की सदानंद पुणेकर जैसे इंसान के साथ क्या गुजरी जब वह बार-बार अपनी हत्या की षड़यंत्र का शिकार होने लगा?

मैं सलाह दूंगा की यह दोनों ही उपन्यास, एक ही बैठकी में पठनीय हैं और “मस्ट रीड” हैं।

आभार
राजीव रोशन

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