The Scenario of Prequels on SMP Novel:-
कैसिनो रॉयल, जेम्स बांड सीरीज उन फिल्मों में से है जो उससे पहले
रिलीज़ हुई सभी फिल्मों की प्रीक्वल थी। यहाँ प्रीक्वल का अर्थ यह है की कैसिनो
रॉयल फिल्म जेम्स बांड सीरीज के शुरूआती उपन्यासों में से एक है। लेकिन इस उपन्यास
की कहानी पर फिल्म, इस सीरीज की २० फ़िल्में बन जाने के बाद बनाया गया था। ऐसे ही
“द लार्ड ऑफ़ द रिंग्स ट्राईलोजी” पहले आई जबकि “द होबीट” सीरीज उसके प्री-क्वल के
रूप में बाद में आई। वैसे “प्री-क्वल” शब्द का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। सन
१९५८ में अन्थोनी बाउचर ने एक कहानी को लेकर लेख लिखा था जो जेम्स ब्लिस द्वारा
लिखी गयी कहानियों के ऊपर था। उसने उस लेख में इस शब्द का प्रयोग किया था। लगभग
बीस साल बाद इस शब्द का प्रचलन शुरू हुआ। स्टार-वार सीरीज ने इस शब्द को प्रसिद्धि
प्रदान किया।
विमल सीरीज की शुरुआत सन १९७१ में हुई थी। पाठक साहब ने अपने आगामी १०
उपन्यासों में सिर्फ जिक्र भर किया था कि कैसे वह एक अकाउंटेंट से इश्तहारी मुजरिम
बना था। पाठक साहब ने इस सीरीज के ११ वें उपन्यास “हार-जीत” में इस बात का पुर्णतः
खुलासा किया कि कैसे वह इश्तहारी मुजरिम बना, कैसे वह इलाहबाद जेल तोड़ कर भगा। इस
तरह से अगर देखें तो यह उपन्यास एक प्री-क्वल के रूप में पाठकों के सामने आया।
वैसे पाठक साहब चाहते तो इसे पूरी तरह से प्री-क्वल का रूप दे सकते थी लेकिन
जिन्होंने “विमल सीरीज कैसे बनी?” पढ़ा है उन्हें ज्ञात होगा की इसके पीछे क्या
कारण थे की वह पूर्ण रूप से प्री-क्वल क्यूँ नहीं बन पाया।
सुधीर सीरीज के एक उपन्यास में सुधीर के युवा-वस्था की जानकारी दी गयी
है कि कैसे वह मुंबई में रहता था और वहां से दिल्ली आ गया और किस तरह से वह
प्राइवेट डिटेक्टिव के पेशे में घुसा। वैसे उस उपन्यास में उस प्रसंग के आने के
बाद मैंने सोचा था की “हार-जीत” की तरह पाठक साहब सुधीर का भी प्री-क्वल लिख रहे
हैं जिसमे यह जानकारी होगी की सुधीर प्राइवेट डिटेक्टिव कैसे बना और उसका पहला केस
क्या था। लेकिन उस मंशा पर पानी फिर गया।
सुनील सीरीज, जिससे पाठक साहब ने अपनी लेखन जीवन की शुरुआत की थी, को पाठक साहब
मुतवातर 50 से अधिक वर्षों से लिखते आ रहे हैं। इस सीरीज के १२१ उपन्यास, इस सीरीज
की सफलता की कहानी अपने आप कहते हैं। गौरतलब बात है की पाठक साहब ने कभी सुनील
सीरीज का कोई भी उपन्यास प्री-क्वल के रूप में नहीं लिखा गया है। कुछ उपन्यासों
में सुनील की जन्म तिथि, उसका जन्म स्थान एवं उसकी शिक्षा की बात तो की गयी है
लेकिन कभी सुनील के जीवन के उन पन्नों को पाठक साहब शब्दों में ढाल नहीं पाए जब वह
ब्लास्ट का क्राइम रिपोर्टर बना नहीं था। इतना तो मैं जानता हूँ, प्रत्येक सुमोपा
प्रशंसक यह जानने को इच्छुक रहता है की सुनील का बचपन कैसा था, उसने कहाँ शिक्षा
पायी, उसके घर में कौन-कौन थे आदि। इसमें से भी, सबसे महत्वपूर्ण सवाल है, जिसका
जवाब प्रत्येक पाठक जानना चाहता है, वह है की सुनील और रमाकांत इतने पक्के यार
कैसे बने। मेरे हिसाब से पाठक साहब को सुनील सीरीज का एक प्री-क्वल लिखना चाहिए जो
सुनील ओरिजिन के जैसा हो।
वैसे तो यह लेख कल्पनाओं की उड़ान लेता सा लग रहा है लेकिन हम पाठकों
की हमेशा से अपने लेखक के लिए कई ऐसी महत्वाकांक्षाएं रहीं है जिन्हें वो पूरा कर
सकेंगे या नहीं, इसके बारे में कहना मुहाल है। लेकिन जहाँ पाठक कल्पनाएँ करने के
लिए स्वतंत्र है वहीँ पाठक साहब भी कल्पनाओं को अपने हिसाब से गढ़ने के लिए
स्वतंत्र हैं। लेकिन मेरी आशा फिर भी बंधी रहेगी की पाठक साहब इस बिंदु पर जरूर
कभी-न-कभी काम करेंगे।
यह लेख लिखने की प्रेरणा मुझे तब मिली जब मैं एक दिन लोकेश गौतम के
साथ, कुछ उपन्यासों पर चर्चा कर रहा था। शुक्रिया लोकेश इस लेख की नीवं को मजबूत
करने में तुम्हारा भी बहुत बड़ा हाथ है।
आप सभी अपने विचार जरूर दें, इंतज़ार रहेगा।
आभार
राजीव रोशन
सुनील सीरीज का prequel..... बहुत ही बढ़िया विचार है। ऐसा हो मज़ा आ जाये।
ReplyDeleteहरीश भाई... लेकिन है तो यह विचार ही... :)
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