क़त्ल का सुराग - सुधीर कोहली सीरीज
“क़त्ल का सुराग” सुधीर
कोहली उर्फ़ द लकी बास्टर्ड उर्फ़ द फिलोस्फर डिटेक्टिव, सीरीज का ९ वां उपन्यास है
जो कि दिसम्बर १९९३ में प्रकाशित हुआ था| सर सुरेन्द्र मोहन पाठक साहब के
क्रोनोलोजिकल उपन्यासों की श्रेणी में इसका स्थान १९० वां है| यह सुधीर सीरीज के
उपन्यासों का वो दौर था जब पाठक साहब इस किरदार को लेकर बहुत कम कहानियां लिखा
करते थे| सन १९९० में पाठक साहब ने इसी सीरीज में “आखिरी मकसद” उपन्यास लिखा था,
जिससे यह पता चलता है की लगभग 3 साल बाद यह उपन्यास पाठकों के हाथ में आया था| इस
तीन साल के वक्फे में पाठक साहब के ११ उपन्यास प्रकाशित हुए थे| इन ११ उपन्यासों
में 3 विमल सीरीज के उपन्यास थे जिनको “जहाज का पंछी” सीरीज भी कहा जाता है, वहीँ
2 उपन्यास सुनील सीरीज के और ६ उपन्यास थ्रिलर की श्रेणी में आये थे|
दिल्ली की एक मशहूर कैबरे
डांसर सिर्फ इसलिए मशहूर नहीं थी की वह कैबरे डांसर थी| कैबरे डांसर के अलावा वह
एक हाई प्रोफाइल कॉलगर्ल थी जिसके क्लाइंट्स समाज और दिल्ली के प्रसिद्द लोग थे|
इस अजिम्मोशान जादूगरनी का नाम था हीरा ईरानी जिसके हुस्न के आगे बड़े-बड़े महानुभाव
कुत्ते की तरह दम हिलाते थे| जिसमे आप सभी के खादिम सुधीर कोहली का भी नाम था|
लेकिन अगर उसने अपनी महत्वाकांक्षा को यहीं तो सिमित करके रखा होता तो बेहतर होता|
उसने अपनी इस कारगुजारी को और आगे बढ़ाया और कहानी को ब्लैकमेल तो ले जा पहुंची|
ऐसे कंडीशन में वो अपने सभी क्लाइंट्स को ब्लैकमेल कर रही थी और जो आपने हाथ से
उसको चढ़ावा नहीं चढ़ाता था उसे सुधीर कोहली को पार्टनर बता कर भी धमकी दिया करती
थी|
ऐसे में कुछ ऐसे क्लाइंट्स
जो सुधीर कि जानकारी में भी आते थे, उन्होंने सुधीर पर इलज़ाम लगाया तो सुधीर ने
ऐसे किसी काम से अपनी अनिभिज्ञता प्रकट की| तो उन्होंने सुधीर को हीरा ईरानी को
समझाने के लिए भेजा| सुधीर हीरा को हर तरीके से समझाने कि कोशिश करता है लेकिन
हीरा साम-दान-दंड-भेद में से किसी के सामने घुटने नहीं टेकती| सुधीर वह रात हीरा
के साथ ही गुजारता है जबकि तड़के सुबह जब सुधीर वाशरूम जाता है, हीरा का क़त्ल हो
जाता है| सुधीर को अपनी वहां मौजूदगी सही महसूस नहीं होती तो वह वहां से हीरा कि
वह डायरी और कागजात चुरा के भाग जाता है जिससे हीरा के कई खासुलखास क्लाइंट्स कि
जानकारी मिल सकती हो|
सुधीर सारे कागजात को अपने
फ्लैट में छुपा कर घटनास्थल पर फिर जाता है तो उसे पता चलता है की इस केस कि
इन्वेस्टीगेशन ए.सी.पी. तलवार कर रहा है क्यूंकि देवेन्द्र यादव पर रिश्वत लेने के
आरोप में इन्क्वायरी बिठा दी गयी है| तलवार ताजा-ताजा पुलिस भर्ती हुआ नौजवान अफसर
है जो अपनी तहकीकात को आगे बढ़ाता है| आगे कि कहानी में हीरा से सम्बंधित एक और किरदार
का क़त्ल होता है जहाँ मौकयेवारदात पर सुधीर पकड़ा जाता है| लेकिन उसे छोड़ दिया जाता
है ऐसे में सुधीर अपनी खुद कि स्वतंत्र तहकीकात करना शुरू कर देता है|
हीरा के घर से उडाये गए
कागजात उसके घर से चोरी हो जाते हैं| सुधीर के पीछे डायरी और कागजात को लेकर हीरा
के कई मेहरबान हाथ धोकर पड़ जाते हैं| जिसमे सुधीर और रजनी के कई बार जान जाते जाते
बचती है| सुधीर को बार-बार किस्मत कि मार झेलनी पड़ती है| बार-बार वह कातिल से एक
कदम पीछे ही रहता है जबकि उसको एक कदम आगे रहना चाहिए|
इस कहानी में कातिल इस तरह
से सुधीर को बार-बार पटखनी देता है कि विश्वास ही नहीं होता कि सुधीर इसमें
केंद्रीय किरदार में है| वैसे इस कहानी के असली कातिल को आसानी से पहचाना जा सकता
है| जैसा कि अमूमन देखा गया है सुधीर सीरीज के सभी मसाले इसमें मौजूद हैं लेकिन
इसमें सुधीर ऐसा उलझा हुआ है कि उसके दार्शनिक तत्व कि झलक नज़र नहीं आती| सुधीर इस
कहानी में उस बकरे कि तरह है जिसे हलाल किया जाना है लेकिन बकरा कोशिश कर रहा है
कि उसकी बारी आ न सके|
पाठक साहब ने इस कहानी को
बहुत ही शानदार तरीके से बुनने कि कोशिश कि है लेकिन निराशाजनक बात ये है कि सुधीर
का खालिस दिल्ली वाला अंदाज़ इसमें उभर कर नहीं आता| वैसे सही है, इसमें एक अलग ही
प्रयोग नज़र आता है| एक अलग प्रयोग का अर्थ है कि एक इंसान के अन्दर के हर प्रकार
के किरदार को दिखाना भी एक लेखक का काम है| बार-बार किरदार के क्रियाकलापों में
दोहराव कभी-कभी पाठक को मोहित नहीं कर पाते हैं|
इस कहानी में रची गयी मर्डर
मिस्ट्री आपको बाँध कर रख सकती है और इसका प्रस्तुतीकरण भी शानदार है| सुधीर के
अलावा जो भी किरदार नज़र आते हैं वे इस कहानी के जरूरी हिस्से लगते हैं| वहीँ इस
कहानी में इंस्पेक्टर देवेन्द्र यादव सुधीर को भरपूर हेल्प करता नज़र आता है जैसे
कि दोनों मौसेरे भाई हों| सुधीर जहाँ इस उपन्यास में बार-बार मर्डर सस्पेक्ट्स के
दायरे में आता है वहीँ रजनी के कारण वह केस पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाता| जबकि
उसके पीछे दिल्ली के कई गुंडे और पड़ जाते हैं और वह केस में भागा-भागा फिरता है|
इस कहानी में सुधीर का जो हातिमताई बन कर आगे आया है वह यादव ही है|
वैसे कहानी के एक बिंदु पर
मैं ध्यान केन्द्रित करना चाहूँगा वह है आवश्यकता से अधिक कि चाहत रखना| अगर हीरा
ईरानी ने अपनी महत्वाकांक्षा पर काबू रखा होता और जितना था उसमे ही खुश रहती तो जो
मेहरबान कद्रदान उसके दुश्मन बन गए थे उसके आगे पीछे दूम ही हिला रहे होते| हीरा
ईरानी के क़त्ल के पीछे क्या ब्लैकमेल ही कारण था या और भी कई कारण थे| इसको आप खोज
निकालिए और पढ़ डालिए “क़त्ल का सुराग”|
आभार
राजीव रोशन
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