समीक्षा -
पुस्तक - A Golden Age
लेखिका - तहमीमा अनाम
तीन बार मेरे साथ ऐसा हो चूका है की जब में किसी काम से जा रहा होता हूँ मुझे रास्ते में फूटपाथ पर किताब की दूकान नज़र आती है और एक मैं एक पुस्तक उठा लेता हूँ और वह पुस्तक पढने के बाद एक शानदार पुस्तक बन जाती है।
पहली बार - द वाइट टाइगर (अरविन्द अडिगा)
दूसरी बार - वर्जिल एंड बीट्राइस (यान मार्टेल)
तीसरी बार - अ गोल्डन ऐज (तहमीमा अनाम )
मैं आज आप लोगो के साथ "अ गोल्डन ऐज" की समीक्षा और अपना अनुभव साझा करूंगा जो इस पुस्तक द्वारा मिला।
देश - धर्म- कर्त्तव्य- निष्ठा - प्रेम- बलिदान - मातृत्व - सुख - दुःख - मिलना - बिछुड़ना - तानाशाही - युद्ध - भयानकता - डर- संघर्ष
मैं इन शब्दों एक क्रमबद्ध रूप में व्यवस्थित नहीं कर पाया हूँ। कैसे करूँ समझ नहीं आता। इसलिए जैसे दिमाग में आया वैसे ही लिख दिया है।
कहानी की पृष्ठभूमि पूर्वी पाकिस्तान है या हम उसे अब "बांग्लादेश" के नाम से जानते हैं।
कहानी एक मुस्लिम विधवा "रेहाना" की है जो अपने बेटे और बेटी को कोर्ट ट्रायल के दौरान खो देती है। यहाँ खो देने का अर्थ है की कोर्ट रेहाना के बच्चों की कस्टडी रेहाना के पति के भाई यानि रेहाना के देवर "फैज़" को दे देती है।
आपको मैं कारण बताऊँ की किस आधार पर रेहाना से उसके बच्चो की कस्टडी उनके देवर को दे दी गयी, बस एक कारण की रेहाना ने अपने बच्चो को एक "इंग्लिश" फिल्म दिखाया था।
{ है ना असमंजस वाली बात । फिलहाल इस बात पर रौशनी डालने के लिए मैं अभी सक्षम नहीं हूँ क्यूंकि मैंने मुस्लिम धर्म को उतना पढ़ा नहीं है। }
लेकिन रेहाना बहुत कोशिश करती है और लगातार संघर्ष के बाद वो अपने बच्चो को वापिस पा लेती है। अपने बच्चो को वापिस पाने में वो कोर्ट केस में अपने गहने, कपडे, बर्तन, घर की सजावटी चीजे और अपनी पति की प्यारी "कार" भी बेच देती है। अपने बच्चो की कस्टडी पाने के लिए रेहाना को न्यायाधीश को घूस भी देना पड़ता है।
अब लेखिका कहानी ले जाती उन पन्नो पर जब समय की दीवार से आगे निकल कर रेहाना के बच्चे सोहेल और माया बड़े हो जाते हैं । सोहेल और माया "पूर्वी पाकिस्तान" के आजादी के आन्दोलन में शरीक हो जाते हैं। पूरा "पूर्वी पाकिस्तान" एक नया देश - एक नया मुल्क चाहता है जो पकिस्तान से अलग अपना नया देश "बांग्लादेश" बनाना चाहता हैं। उस आन्दोलन में सोहेल और माया शांतिपूर्वक अपना देश पाना चाहते हैं । रेहाना जानती है की सोहेल सिल्वी से प्रेम करता है । सिल्वी , रेहाना के घर के सामने रहने वाली और पडोसी श्रीमती चौधरी की पुत्री है। लेकिन श्रीमती चौधरी सिल्वी का निकाह एक मेजर से करने की बात रेहाना को बताती है । ऐसे में जब खबर सोहेल को पता लगती है तो थोड़े से समय के लिए वह टूट सा जाता है। जिस रात सिल्वी और मेजर की सगाई का दिन रखा जाता है उसी रात पकिस्तान सरकार "पूर्वी पाकिस्तान" में सेना का शासन लागू कर देती है। अब सोहेल के पास अपनी देश की सेवा करना का मौका चला जाता दीखता है ऐसे में सोहेल अपने कुछ दोस्तों की मदद से हिंसा में कूद पड़ता है और अपनी माँ से दूर गुर्रिल्ला ट्रेनिंग के लिए चला जाता है। लेखिका ने उस समय के "पूर्वी पाकिस्तान" के उन दुखदायी दृश्यों का सुन्दरता और भावनाओ के साथ वर्णन किया है जब पाकिस्तानी सेना अपनी बर्बरता का प्रदर्शन करते हुए अपने सामने आने वाली हर दीवार, हर चौराहे, हर गली , हर मकान को खून से सनती हुई गोलियों से भूनती हुई आजादी के विद्रोह को दबाने की भरषक कोशिस करती है। रेहाना भी अपने कुछ सहेलियों के साथ मिलकर उन बांग्लादेशी शरणार्थियों की मदद करती है जिन्होंने इस बर्बरता के सदके अपने घर, अपने बच्चे, अपने परिवार को खो दिया।
सोहेल गोर्रिल्ला युद्ध सीख कर अपनी माँ के पास वापिस आता है और अपने घर के पीछे जो नया घर (उसकी कहानी भी बहुत सुन्दरता से लेखिका ने पेश किया है) बनाया गया था उसमे वो नौजवान लडको को गुर्रिल्ला युद्ध सिखाने के लिए प्रशिक्षण देना शुरू करता है। उसी दौरान रेहाना की मुलाक़ात उन्ही के साथ के एक मेजर से होती है। एक रात पाकिस्तानी फौज से लड़ने के दौरान मेजर घायल हो जाता है। सोहेल मेजर को अपनी माँ की देखभाल में छोड़कर "अगरतल्ला" चला जाता है। रेहाना रोजाना मेजर का ख्याल रखती है और उसका पूरी तरह से देखभाल करती है। वो मेजर को अपने जीवन के बारे में बताती है । और इसी दौरान रेहाना को मेजर से प्रेम हो जाता है।
लेखिका पूरी कहानी को रेहाना के सन्दर्भ से दिखाती है। एक विधवा, एक माँ, एक दोस्त, एक सच्ची देशभक्त किस प्रकार अपने बेटे और बेटी के साथ मिलकर देश की आज़ादी के आन्दोलन में अपना योगदान भी देती है अपना मातृत्व प्रेम के अनुरूप अपने बच्चो की रक्षा भी करती है।
देश - धर्म- कर्त्तव्य- निष्ठा - प्रेम- बलिदान - मातृत्व - सुख - दुःख - मिलना - बिछुड़ना - तानाशाही - युद्ध - भयानकता - डर- संघर्ष
ऊपर लिखे गए सभी शब्दों का संगम है इस कहानी में। जब आप इसे पढेंगे तो एक औरत के संघर्ष की कहानी पूरी तरह से नज़र आएगी इसमें। आप इस कहानी डर-खौफ-तानाशाही को पूरी तरह से देख पायेंगे जब सिल्वी के पति मेजर (जिसका नाम मुझे याद नहीं आ रहा है) को पकिस्तान सेना द्वारा पकड़ लिया जाता है और प्रतारित किया जाता है । मेजर के नाखून पुरे जड़ से निकाल दिए जाते हैं, उसे अँधेरे कमरे में रखा जाता है, उसे नमक का पानी तब तक पीने को दिया जाता है जब तक उसके होठ फटने न लग गया।
तानाशाही का मंजर तब देखने को मिलेगा जब माया की एक सहेली के साथ पाकिस्तानी सेना के अफसर "टिक्का खान" द्वारा मानमर्दन होता है जिसकी खबर सुनते ही "माया" बांग्लादेश छोड़ कर कलकत्ता चली जाती है और वहाँ बांग्लादेशी शरणार्थियों की सेवा करती है।
यह उपन्यास एक "सामाजिक" श्रेणी के अंतर्गत आता है जिसे की मैं बहुत कम पसंद करता हूँ लेकिन सच, एक पन्ना ख़तम होने को होता था की मेरा हाथ दुसरे पन्ने पर खिसक जाता था।
"अ गोल्डन ऐज" अर्थार्थ "एक सुनहरा युग"
यह सुनहरा युग शुरू होता है भारत के दो टुकड़े होने के पश्चात जब हिंदुस्तान और पाकिस्तान बना। जब पाकिस्तान किसी एक क्षेत्र का नाम नहीं बल्कि दो क्षेत्रो को मिलाकर बोला जाता था पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान। इन दोनों पाकिस्तान के बीच में था भारत।
यह सुनहरा युग है "पूर्वी पाकिस्तान" का "बांग्लादेश" में परिवर्तन का।
यह सुनहरा युग है उन मुस्लिम भाइयों का जो बांग्लादेश से पाकिस्तान चले गए थे लेकिन फिर भी बांग्लादेश को अपना अंग नहीं मानते थे।
जो मुस्लिम बंगला बोलते थे उन्हें तिरीस्कृत एवं हिकारत भरी नज़रों से देखा जाता था, उन्हें गंवार समझा जाता था क्यूंकि उन्हें उर्दू बोलना नहीं आता था।
जो उर्दू बोलते थे वो पाकिस्तानी कहलाये, उनको सम्मान दिया गया, उनको ऊँचे व्यवसाय करने को सरकार द्वारा सहायता दी गयी।
यह सुनहरा युग है दो भाषाओं "उर्दू" और "बंगला" के युद्ध का ।
यह सुनहरा युग है एक स्त्री का जिसने विपरीत परिस्थितयों में भी संघर्ष करते हुए अपने आपको निराश नहीं होने दिया।
यह सुनहरा युग है एक विधवा का जिसने कई कठनाइयों के बाद भी अपने आप को स्थापित किया।
यह सुनहरा युग है एक माँ का जिसने अपने बच्चो को खोकर भी निराश नहीं हुई और संघर्ष करते हुए उन्हें वापिस पाया और इस काबिल बनाया की देश की आज़ादी में हिस्सा ले सके।
यह सुनहरा युग है एक पत्नी का जिसने अपने स्वर्गीय पति से हमेशा प्रेम किया लेकिन उसे फिर दुबारा प्रेम हुआ जिसका इज़हार उसने कभी नहीं किया।
यह सुनहरा युग है एक सहेली का जिसने विषम परिस्थितयों के होते हुए भी अपने दोस्तों का साथ दिया।
यह सुनहरा युग है एक ऐसी सरकार का जो अपने अंग को ही अपना अंग मानने से इनकार कर देती है।
यह सुनहरा युग है एक देश का जिसका झंडा तो है लेकिन देश नहीं और उसी देश को बनाने का यह सुनहरा युग है।
यह एक कहानी है एक परिवार की एक देश के लिए दिए गए योगदान की और एक देश के खिलाफ किये गए विद्रोह की।
मैंने नेट पर पढ़ा है की लेखिका के माता-पिता दोनों फ्रीडम फाइटर थे जिनसे प्रेरणा लेकर लेखिका ने इस विषय पर यह कहानी लिखी। लेखिका ने अपने शोध के लिए लगभग २ वर्ष बांग्लादेश में रही और २०० से अधिक फ्रीडम फाइटर का इंटरव्यू लिया।
इतने शोध के पश्चात इतनी सुन्दर कहानी लिखना आसान नहीं होता आपको कल्पना के साथ साथ इतिहास के साथ न्याय भी करना होता है। मैंने बांग्लादेश का इत्निहास नहीं पढ़ा फिर भी इस उपन्यास को पढने के बाद मुझे लगता है की मुझे इस विषय पर भी कुछ पढना चाहिए।
मैं आशा करता हूँ की जब आप इस पुस्तक को पढेंगे तो उतना ही आनंद उठाएंगे जितना मैंने उठाया।
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विनीत
राजीव रोशन
बेहतरीन, समीक्षा राजीव भाई । आपकी समीक्षा पढने के बाद मेरे मन में भी इस पुस्तक को पढने की चाह जगी है । ऐसी खूबसूरत और रोचक समीक्षा लिखने के लिए धन्यवाद ।
ReplyDeleteविकास भाई.. जरूर पढ़िए.. आपको पसंद आएगी|
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