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फिल्म - स्वदेश, एक समीक्षा - एक नज़र - एक असर - एक सन्देश


एक समीक्षा - एक नज़र - एक असर - एक सन्देश

फिल्म - स्वदेश 



स्वदेश मतलब अपना देश ।

Hesitating to act because the whole vision might not be achieved, or because others do not yet share it, is an attitude that only hinders progress.
---स्वर्गीय महात्मा गाँधी जी

स्वदेश कहानी है एक भारतीय नवयुवक "मोहन" की जो भारत से कोसों दूर, मीलों दूर, सात समुद्र पार अमेरिका में रहकर पढाई कर रहा है और नासा में एक प्रोजेक्ट पर काम भी कर रहा है। १२ साल अमेरिका में रहने के बाद "मोहन", भारत वापिस आता है ताकि अपनी दादी "कावेरी अम्मा" को अपने साथ अमेरिका ले जा सके। "कावेरी अम्मा" "गीता" और "चीकू" के साथ चरणपुर नाम के गाँव में रहती है। "मोहन" जब चरणपुर गाँव पहुँचता है तो उसे पता चलता है "भारत" के गाँव में वह आधुनिक भारत नहीं बसता जिसे उसने दिल्ली जैसे सहर में देखा था। "मोहन" गाँव के पोस्टमॉस्टर से मिलता है जिसने पहली बार ईमेल और इन्टरनेट के बारे में मोहन के मुह से सुना है। पोस्टमॉस्टर ईमेल और इन्टरनेट के बारे में बहुत कुछ जानना चाहता है।

मोहन को धीरे धीरे गाँव के उन बातों से भी सामना होता है जिससे उसे बहुत चोट पहुँचता है। जिनमे से कुछ हैं गरीबी, छुआछूत, बाल विवाह, निरक्षरता एवं बाल श्रम। गाँव में ही एक स्वतंत्रता सेनानी एक विद्यालय चलते हैं जिसमे गीता भी एक शिक्षिका है। लेकिन विद्यालय में विद्यार्थी भी कम हैं। गीता यह बात कावेरी आम्मा को बताती है। और कावेरी अम्मा यह बात मोहन को बताती है। मोहन को क्यूंकि कावेरी आम्मा को साथ ले कर जाना है इसलिए मोहन विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने की कोशिश करता है। गाँव के ऊँची जाती के लोग नहीं चाहते की छोटी जाती के लोग उसी कक्षा में पढ़े जिसमे उनके बच्चे पढ़ते हैं। ऐसे में मोहन उनको शिक्षा का महत्व समझाता है और उंच-नीच को छोड़ने की बात कहता है। वह उनको बताता है की उन्हें लड़कियों को भी स्कूल भेजे ताकि वो आत्मनिर्भर हो सके। मुश्किल तो तब आती है जब उसे कई छोटी जाती के लोगो के पास जा जा कर उनसे मिलकर शिक्षा का महत्व समझाना पड़ता है। लेकिन फिर भी कुछ लोग इस बात के लिए मन कर देते हैं। वे गरीब है इसलिए वे अपने बच्चो को विद्यालय भेजने के बजाय उनको काम पर लगाना चाहते हैं । कुछ लोग ऊँची जाती के लोगो से डरते हैं इसलिए वे अपने बच्चो को विद्यालय पढने को नहीं भेजते। लेकिन "मोहन" की मेहनत रंग लाती है और बच्चे पढने के लिए आना शुरू कर देते हैं। "दशहरे" के अवसर पर सभी बच्चो को नए ड्रेस और किताबें दी जाती है। गीता "मोहन" के इस काम से बहुत खुश होती है।

एक दिन कावेरी अम्मा, मोहन को एक गाँव कोडी भेजती है ताकि वहां के एक किसान हरिदास से किराया ले के आये । हरिदास ने कावेरी आम्मा की जमीन खेती के लिए किराये पर लिया था। मोहन चरणपुर से कोडी गाँव के पुरे रास्ते में उन्ही समस्यों को देखता है जो चरणपुर गाँव की है। कोडी गाँव पहुँच कर वह हरिदास से मिलता है । रात के खाने पर हरिदास मोहन को बताता है की उसके पास किराये के लिए क्या , खाने तक के लिए पैसे नहीं है। मोहन कारण पूछता है तो हरिदास बताता है की चूंकि वह एक बुनकर था और अब वह किसान बन गया है तो कोई भी गाँव वाले उसके साथ नहीं देता।

मोहन जब खाली हाथ गाँव वापिस लौटता है तो वह पूरी तरह बदल चूका होता है। जो बदलाव मोहन की जिन्दगी में आये उससे उसके जीवन पर क्या फर्क पड़ा इसके लिए आप यह फिल्म जरूर देखे। वैसे आप सभी ने जरूर यह फिल्म देखी होगी। तो क्या आपके जीवन में कोई बदलाव आया। क्या इस फिल्म के सन्देश को आप समझ पाए। और अगर समझ पाए तो क्या था वह सन्देश मुझे जरूर बताये। क्या इस फिल्म ने आप पर कोई असर डाला। क्या आपने अपने देश को किसी दुसरे नजरिये से देखने की कोशिश शुरू कर दी है।

मैं अपना के अनुभव आप लोगो के साथ साझा करना चाहूँगा :-
जब मैं बारहवी कक्षा में पढता था तो मेरा सपना था की मैं एक "एस्ट्रोनॉट" बनू । चूंकि इस फिल्म में भी एक एस्ट्रोनॉट की कहानी और नासा के दृश्यों को पहली बार दर्शाया गया था इसलिए मेरे मन में इस फिल्म को देखने की बड़ी तमन्ना थी। मैंने दोस्तों से बात की लेकिन कोई जाने को तैयार नहीं था क्यूंकि प्री - बोर्ड के पेपर चल रहे थे। लेकिन फिर भी फिल्म रिलीज़ हुई और जिस दिन रिलीज़ हुई उस दिन मेरा प्री-बोर्ड का इंग्लिश का पेपर था। मैंने पेपर जल्दी से जल्दी किया और भागता हुआ गया पास के सिनेमा हाल पर और एक टिकेट ले ली। सिनेमा हाल पर कोई भीड़ नहीं थी। मैंने लगभग २ घंटे पहले टिकेट ले लिया था। और मेरे दो घंटे के इंतज़ार के बाद मैं हाल में घुसा। हाल लगभग खाली पड़ा हुआ था ।इक्के दुक्के लोग बैठे थे। लेकिन मैं फिल्म देखने में लगा हुआ था। कई दृश्यों में मेरे आँखों से आंसू भी आये। जो की अच्छा था की कोई आस पास नहीं बैठा था नहीं तो क्या सोचता। अब भी जब भी यह फिल्म टी.वी. पर आती है तो मैं जरूर देखता हूँ।


"बाजीगर" फिल्म के बाद मुझे शाहरुख़ खान की यह फिल्म ऐसी लगी जिसमे इन्होने बहुत ही शानदार अभिनय किया था। फिल्म का निर्देशन बहुत ही अच्छा था। आशुतोष गोवारिकर जी फिल्म में कही भी ढील नहीं दी। लेकिन ऐसी स्टार कास्ट के होने के बावजूद यह फिल्म नहीं चली। ए.आर. रहमान का संगीत बहुत ही सुन्दर लगा। फिल्म के शीर्षक गीत ने बहुत प्रभावित किया ।
फिल्म का गीत "ये तारा वो तारा " बच्चो के लिए उस दुनिया का दरवाजा खोलता है जो शिक्षा के द्वारा ही पाया जा सकता है।यह गाना हमें उंच - नीच के भेदभाव को ख़त्म करने करने का भी सन्देश देता है।

फिल्म की प्रेरणा २ NRI व्यक्तियों की कहानी से ली गयी है। इन दोनों व्यक्तियों के नाम हैं अरविन्द पिल्लालामार्री और रवि कुचिमंची । इन दोनों व्यक्तियों ने गाँव के स्कूल में बिजली लाने के लिए एक जनरेटर का निर्माण किया।



मैंने आज इस फिल्म को ही क्यूँ चुना समीक्षा के लिए?
इसका उत्तर है की बीते रविवार रात इस फिल्म की मुझे याद आ गयी थी। ऐसा किया हुआ था बीते रविवार रात को?
मैं "कौन बनेगा करोड़पति" देख रहा था। एक स्पेशल एपिसोड के अंतर्गत आज फिल्म अभिनेता "मनोज वाजपाई" जी पधारे थे। लेकिन मनोज जी आये थे इसलिए यह एपिसोड स्पेशल नहीं था बल्कि एक और मनोज के कारण यह एपिसोड स्पेशल था। मनोज वाजपई जी के साथ एक ११वि कक्षा में पढने वाला लड़का भी आया हुआ था जिसका नाम मनोज कुमार था। मनोज पटना से २० की.मी. दूर स्थित एक गाँव का रहने वाला था। मनोज एक ऐसी प्रजाति से आता था जिसे "मुशहर" कहते हैं। ऐसा तो नहीं लग रहा आपको की मैं भी बिहार का रहने वाला हूँ तो मैं इस प्रजाति के बारे में जानता हो सकता हूँ । नहीं, मैं इस प्रजाति के बारे में गत रविवार तक कुछ नहीं जानता था। इस एपिसोड में मनोज वाजपई जी ने बताया की "मुशहर" इस प्रजाति का नाम इसलिए पड़ा क्यूंकि ये "मुश" मतलब " चूहे" खाते थे। जैसे जैसे समाज बांटता गया वैसे वैसे गरीब और गरीब होते गए। उसी मैं ऐसी कुछ प्रजातियाँ भी बाहर आई जिनके पास खेती करने के लिए कुछ नहीं था, खाने के लिए कुछ नहीं था, जीविका कमाने के लिए कुछ नहीं था। तो उन्होंने आहार के रूप में "मुश" को खाना शुरू कर दिया। निरक्षरता के कारण इन्हें हर जगह हिकारत की नज़रों से देखा जाने लगा। मैंने तो सुना है इन्हें आँगन में घुसने नहीं दिया जाता था अगर ये आँगन में घुस जाए तो जहाँ जहाँ इनकी छाया और पैर जाते थे वहां वहां पानी दल जाता था।
अब मैं मनोज कुमार की बात करूँ जो एक मुशहर प्रजाति के होते हुए भी ११वी कक्षा में पढाई कर रहे हैं और इनकी पढाई में योगदान दे रही हैं एक संस्था "शोषित सेवा संस्थान" (नाम सही से याद नहीं है) । यहाँ मुझे एक संस्था के रूप में स्वदेश का "मोहन" नजर आया यही कारण था की मैंने "स्वदेश" फिल्म की समीक्षा लिखी और आप सभी के साथ साझा किया।
मैं "कौन बनेगा करोड़पति" के १३ जनवरी के एपिसोड के लिंक को आप सभी को नीचे दे रहा हूँ, आप सभी जरूर देखे.....

https://www.youtube.com/watch?v=YZLSkjx-T8U

वैसे तो इस विषय पर लिखने को और मनन करने को बहुत कुछ है। मैं आशा करता हूँ की जो दीया मैंने जलाया है उससे प्रकाश करने में आप लोग भी मेरे हाथ से हाथ मिलायेंगे और अपने विचार प्रस्तुत करेंगे। मुझे आप सभी के विचारों का बेसब्री से इंतज़ार है।


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विनीत
राजीव रोशन

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