साहेबान, मेहरबान, कदरदान और आये हुए सभी मेहमान, आप सभी का मैं, इस्तकबाल करता हूँ इस जादूगरी के शो में – जहाँ मैं वह कारनामा करके दिखाउंगा जिसे देखने के बाद आप अपने दांतों तले ऊँगली दबा लेंगे। साहब, आपका खादिम कोई जाना-माना और प्रशिक्षित जादूगर नहीं है, लेकिन आपका खादिम जेल तोड़ कर भाग जाने एवं एक हत्या करने में कामयाब हुआ था, तो ऐसे में कुछ तो बात होगी मुझमें। मैं विश्वास दिलाता हूँ कि मैं इस एक्ट के द्वारा आपको रहस्य और रोमांच से भर दूंगा। चलिए अच्छा है, आप सभी तैयार नज़र आ रहे हैं, इसलिए मैं पहले अपने इस एक्ट के बारे में आपको बता दूँ। तो तो साहेबान मैं आप सभी के सामने, ये जो इंस्पेक्टर साहब आये हैं, ये जो रिपोर्टर साहब आये हैं और इतने मेहमानों के बीच, भारत के प्रसिद्ध जादूगर ‘एस.एस. सरकार जूनियर’ का क़त्ल कर दूंगा और गायब हो जाऊँगा। भाइयों एवं बहनों ‘कातिल एक कलाकार होता है और क़त्ल करना उसकी कला होती है। एन वैसे ही जैसे जादूगर एक कलाकार होता है और जादूगरी उसकी कला होती है। जादूगर असल में क्या करता है! हाथ की सफाई दिखाता है। वो अपने दर्शकों की तवज्जो अपने एक हाथ की तरफ करता है और दुसरे हाथ से कुछ कर गुजरता है। किसी को कुछ पता नहीं चलता। जब कि वो अपने दोनों हाथों के साथ अपने दर्शकों के सामने होता है। कातिल भी यही करता है। इसी बात को मैं क़त्ल करने में अमल लाऊंगा और पूरी तरह से कामयाब होकर दिखाऊंगा। कोई नहीं जान पायेगा कि मैंने क्या किया, कब किया, कैसे किया।
बहुत ही फ़िल्मी और उपन्यासों की लाइन हो गयी न, लेकिन फ़िल्मी तो कतई नहीं है, हाँ एक उपन्यास से जरूर जुड़ी हुई है, जिसके बारे में अगली पंक्ति में मैं बात करूँगा। ‘मकड़जाल एवं ग्रैंडमास्टर’ उपन्यास की समीक्षा के दौरान मैंने ‘प्रेस्टीज’ के बारे में बताया था। प्रेस्टीज एक बेहतरीन मूवी तो है ही, साथ ही, यह जादूगरी की दुनिया का विशेष टर्म भी है। ‘जो दिखाई देता है, जरूरी नहीं कि वह सच हो और जो सच है जरूरी नहीं कि वह दिखाई दे जाए।’ जादूगरी की दुनिया में ये शब्द उतना ही सत्य है जितना कि सूर्य पूर्व से उदय होता है। उपरोक्त पंक्ति को एक अलग ही रूप से देखिये जिसमे प्रेस्टीज का उदाहरण साफ़-साफ़ मिलता है – क़ातिल ऐलान करता है कि वह अमुक इंसान की हत्या करेगा। अमुक इंसान को भी जानकारी है कि उसका क़त्ल होना है। वह पुलिस से सुरक्षा भी हासिल कर लेता है। उसके जाननेवालों एवं करीबियों को भी इस ‘धमकी’ की खबर है। क्या ऐसे में क़ातिल उस अमुक इंसान की हत्या कर पायेगा। हाँ, क़ातिल उस अमुक इंसान की हत्या कर देता है। एक बंद कमरे में, जिसके दरवाजे के बाहर पुलिस सुरक्षा के लिए खड़ी है, उस व्यक्ति की हत्या सैंकड़ों लोगों के बीच हो जाती है। उस कमरे में मकतूल के सिवा कोई गया नहीं और न ही कोई बाहर निकला। हत्या भी कोई मामूली तरीके से नहीं बल्कि तलवार द्वारा सिर धड़ से अलग करके की गई। जब पुलिस कमरे में पहुंची तो क़ातिल हवा में गायब हो चुका था जैसे कपूर जलने के बाद गायब हो जाता है। इतना सख्त बंदोबस्त होने के बाद भी क़ातिल द्वारा अपनी धमकी पर खड़ा उतरना ही ‘प्रेस्टिज’ कहलाता है।
एक इंसान को जिंदा जमीन में दबा दिया गया, लेकिन वह सुरक्षित बाहर निकल कर आ गया। ऐसा कारनामा उसने एक बार नहीं, तीन बार किया। 1000 लोगों के सामने, हाथों एवं पैरों को अनेकानेक हथकड़ियों से बांध कर, पानी से भरे, शीशे के बॉक्स में एक इंसान को बंद कर दिया जाए और वह अपनी सभी हथकड़ियां खोल कर सुरक्षित शीशे के बॉक्स से बाहर आ जाता है। ऐसे ही कई कारनामे उस इंसान के नाम थे जिसे दुनिया हैरी हुडिनी ‘द हैंडकफ्फ किंग’ या ‘द ग्रेट एस्केपिस्ट’ के नाम से जानती है। हुडिनी को जादूगर के रूप में दुनिया जानती है। हुडिनी एक दौर में ‘अमेरिकी मैजिशियन आर्गेनाईजेशन’ का प्रेजिडेंट भी रह चुके थे। जिन्होंने कभी ‘पल्प-फिक्शन’ या ‘पॉपुलर साहित्य’ या ब्ला ब्ला टाइप के नाम से जाने जानेवाले उपन्यासों में सर सुरेंद्र मोहन पाठक जी द्वारा लिखित ‘धमकी’ नाम का उपन्यास नहीं पढ़ा, वो जरूर इस जानकारी से मरहूम होंगे और मुझे उनकी इस अज्ञानता पर सहानुभूति के अलावा कुछ अलग एहसास नहीं हो पाता है। अगर आप परिपक्व हैं, आपके अंदर गर ज्ञान की भूख है, आप कुछ नया जानना चाहते हैं तो हर प्रकार की किताब में आपके सीखने के लिए बहुत कुछ है। ‘हुडिनी’ के अलावा मुझे इस उपन्यास में ‘एम्बल्मिंग फ्लूइड’ के बारे में भी जानकारी मिली, क्या आपको इसके बारे में नहीं पता, तो फिर या तो इस नावेल को पढ़िए या फिर गूगल कीजिये।
हैरी हुडिनी को ‘द ग्रेट एस्केपिस्ट’ उनके जादूई कला के आधार पर कहा जाता है। लेकिन हम पहले और दुसरे पंक्ति में दिए गए प्रसंग में उल्लेखित अपराधी को क्या कहेंगे। ऐसे अपराधियों को ‘एस्केपिस्ट’ कह सकते हैं, जिन्होंने इंवेस्टिगेटर्स के सामने ‘लॉक्ड रूम मर्डर मिस्ट्री’ जैसी गुत्थी को बुन दिया। जब भी बेहतरीन ‘लॉक्ड रूम मर्डर मिस्ट्री’ की बात की जाएगी, तब-तब ‘धमकी’ उपन्यास का नाम जरूर लिया जाएगा। उपरोक्त पंक्ति में मैंने जिस प्रेस्टीज के बारे में लिखा है, वह कहीं और का नहीं, बल्कि ‘धमकी’ उपन्यास का ही मुख्य प्लाट एवं आकर्षण है। खोजी पत्रकार अर्थात इनवेस्टिगेटिव जर्नेलिस्ट, सुनील कुमार चक्रवर्ती का यह 109 वाँ कारनामा है जिसमें जुगलबंदी की है, इस सीरीज के स्थापित किरदार इंस्पेक्टर प्रभुदयाल और रमाकांत मल्होत्रा ने। हालांकि, उपन्यास पूरा पढ़ लेने के बाद, इस उपन्यास को सिर्फ सुनील सीरीज का कहना, इस उपन्यास के दूसरे किरदार ‘प्रभुदयाल’ के साथ नाइंसाफी होगी, क्योंकि जितनी मेहनत सुनील करता हुआ नजर आता है, लगभग उतनी ही मेहनत प्रभुदयाल भी करता हुआ नजर आता है।
जैसा कि मैंने पिछली दफा कहा था, मुझे रिव्यु-सिव्यू नहीं लिखना आता, वो तो लिखने की भूख और किताब पढ़ते रहने के दौरान, मन में आये विचार हैं जिन्हें मैं अपने शब्दों में ढाल कर आप सभी के सामने प्रस्तुत कर देता हुँ। अभी कुछ दिनों पहले पता चला कि उत्तर प्रदेश के कई पेट्रोल पंप पर चिप लगाकर पेट्रोल का घोटाला किया जाता था। संभव सी बात है, पेट्रोल पंप का मालिक जादूगर होता है और आम जनता दर्शक, इसलिये आम जनता को पता ही नहीं चलता कि 1 लीटर पेट्रोल के स्थान पर जादू से 900 ml पेट्रोल ही उसके टंकी में आई। लेकिन, कभी कभी ऐसा भी होता है कि आप जादुगर की ट्रिक को समझ जाते हैं, कुछ वैसा ही हुआ जब पेट्रोल पंप पर छापों के दौरान इन जादूगरों के ट्रिक का पर्दा फाश हुआ।
ये ‘धमकी’ में जो जादूगरी हुई – अर्थात क़त्ल हुआ और क़ातिल गायब हो गया – उसके ट्रिक को समझने के लिये सदा एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन, सुनील और प्रभुदयाल एक हो जाते हैं और क़ातिल का पर्दाफाश कर देते हैं। बताना चाहूंगा कि जिस घटना का जिक्र ऊपर किया गया है, वह इस उपन्यास में ‘गोल्डन गेट’ कैसिनो में घटता है। पता नहीं, भारत में कभी ‘कैसिनो’ का चलन हुआ है भी की नहीं, लेकिन इस कहानी की पृष्ठभूमि काल्पनिक शहर ‘राजनगर’ में है तो पाठक साहब द्वारा दिखाया जाना सही भी लगता है। उपन्यास का आरंभ ‘गोल्डन गेट’ कैसिनो से होता है और अंत भी यहीं होता है। उपन्यास के आरंभ का 40% हिस्से को इसी लोकेशन पर दर्शाया गया है। इस हिस्से में, घटना और घटना के बाद की तफ्तीश को कवर किया गया है। सर सुरेंद्र मोहन पाठक साहब के प्रशंसकों को खास जानकारी है कि किसी उपन्यास में, पहली दफा, जहां सुनील पहुंचता है, वहां क़त्ल होकर ही हटता है। लेकिन इस उपन्यास के पहले प्रसंग में ही सुनील और प्रभुदयाल आमने-सामने होते हैं, लेकिन दोस्ताना माहौल में, वो दोस्ताना मत समझ लीजियेगा - ‘अभिषेक और जॉन’ वाला। सुनील के साथ रमाकांत भी पहले सीन में इंट्रोड्यूस हो जाये तो -मौजा ही मौजा। उदाहरण इस कोट के द्वारा देखिए :-
"पैग दो पैग का साथ हमारा, लैग दो लैग की यारी, आज नहीं तो कल कर देंगे जाने की तैयारी।" - रमाकांत उवाचः
इस उपन्यास में क़त्ल एक जादूगर का होता है और ऐसे जादूई तरीके से होता है कि सभी अपना माथा पीटते रह जाते हैं। ‘लॉक्ड रूम मर्डर मिस्ट्री’ में इस बात पर ज्यादा जोर नहीं होता कि अपराधी कौन है, बल्कि इस बात पर ज्यादा जोर होता है कि ‘अपराध’ हुआ कैसे है। रहस्य की इस गुत्थी को पाठक साहब ने इस तरह से बुना कि कई पाठकों की भरपूर दिमागी कसरत हो जाए एवं खुराक मिल जाए। ऐसी रहस्य कथाएं ही सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के कद को ‘अंतरष्ट्रीय स्तर’ पर ला खड़ा कर देती हैं। विश्वास जानिये, कातिल को पहचानना एवं क़त्ल के तरीके को समझना बहुत ही दुरूह कार्य हो जाता है इस उपन्यास में। जिस सस्पेंस, रहस्य एवं रोमांच की आशा आप किसी उपन्यास से रखते हैं, वह जरूर धमकी ही है जो तीनों ही चीजें पूर्ण से आपके सामने परोसती है।
इस उपन्यास में दो ऐसे किरदार हैं जिनका सिर्फ नाम ही इस्तेमाल हुआ – ‘एस.एस. सरकार जूनियर अर्थात सचिन सरकार एवं अविनाश शेरगिल। सचिन सरकार के चरित्र चित्रण की बात करूँ तो उसे कर्मठ और व्यस्त इंसान के तौर पर चित्रित किया गया है। वहीँ, अविनाश शेरगिल का चरित्र चित्रण एक दीवाना, एक पागल के रूप में किया गया है जो अपनी पत्नी की हत्या करना चाहता था लेकिन सफल नहीं पाया जिसके कारण उसे सजा मिली। अविनाश शेरगिल का चित्रण एक विक्षिप्त हत्यारे के तौर पर किया गया है जिसके दिमाग का कोई स्क्रू ढीला है जिसके कारण उसे ‘खून’ देखना पसंद है। अविनाश शेरगिल के किरदार के चित्रण की यह बानगी देखिये – “ कहता था खून देखकर उसे बहुत ख़ुशी होती थी। सुर्ख, ताजा, फव्वारे की तरह उफनते खून की कल्पना से ही उसे उस परमानन्द की प्राप्ति होती ही जो कि आम लोगों को रतिक्रिया के संपन्न होने से होती है।”
वर्तिका शेरगिल, जो कि अविनाश शेरगिल कि पूर्व पत्नी एवं सचिन सरकार की वर्तमान पत्नी है, के किरदार को पाठक साहब ने एक हायर क्लास महिला के रूप में पेश किया है, इसका सबूत यह है कि वह चरस का कश लगाती है। वो पाठक साहब कहते हैं न कि ‘अच्छी औरतों की कोई कहानी नहीं होती।’ – बिल्कुल उसी बात को चरितार्थ करते हुए उन्होंने ‘वर्तिका शेरगिल’ के किरदार का चित्रण किया है। वहीँ इस उपन्यास की दूसरी महिला किरदार – शर्मिष्ठा सेन – का चित्रण भी इसी स्तर पर किया गया है जो कि सचिन सरकार के दोस्त मुकेश माथुर की माशूक है जबकि उसका सम्बन्ध सचिन सरकार से भी है। मुकेश माथुर और जोस मरियानो दो अन्य किरदार भी हैं, जिनका इस उपन्यास में महत्वपूर्ण रोल है। मुकेश माथुर का किरदार, एक औरतखोरा के रूप में है वहीँ जोस मरियानो का किरदार ‘गोल्डन गेट’ कैसिनो के मालिक एवं वहां ऑपरेट हो रहे ड्रग के धंधे के सरगना के रूप में है। अगर सचिन सरकार एवं उसके असिस्टेंट भौमिक के किरदार को छोड़ दिया जाए तो दुसरे किरदार आप भिन्न-भिन्न अपराधियों की श्रेणी में रख सकते हैं।
उपन्यास में कुछ अन्य किरदार को भी देख सकते हैं, जैसे पहले ‘भैरवदत्त खनाल’, जिसका किरदार उपन्यास के रहस्य को खोलने में बहुत सहायक है लेकिन यह किरदार भी अव्वल दर्जे का शराबी और औरत को ‘शरीर’ के नज़र से देखने वाला इंसान है। दुसरे किरदारों में – गोल्डन गेट कैसिनो के वेटर एवं प्रभुदयाल के सहकर्मी।
उपन्यास के आरम्भ में यह मोटिव स्पष्ट हो जाता है कि क्यूँ अविनाश शेरगिल ‘सचिन सरकार’ की हत्या करना चाहता है। इसके पीछे का कारण अविनाश शेरगिल की पत्नी ‘वर्तिका शेरगिल’ होती है, जिसने अविनाश शेरगिल को पहले जेल फिर पागलखाने के दर्शन करा दिए थे, जिससे वह बदला लेना चाहता है। बड़े-बूढ़े कह गए थे कि ‘जर, जोरू और जमीन’ – ही अपराध के सबसे बड़े कारण हैं। एपिक कहानियां एवं कई किस्से, जिसमें अपराध एवं युद्ध का जिक्र है, वो साफ तौर पर इन्हीं कारणों से हुए हैं। इस उपन्यास में भी इस मुहावरे का पूरा दखल है।
इस उपन्यास में, एक शब्द के इस्तेमाल को लेकर मैं बड़े अचरज में था। सुनील ने प्रभुदयाल के लिए ‘कारोबार’ शब्द का इस्तेमाल किया जबकि मेरा सोचना है कि वह ‘कर्तव्य/ड्यूटी’ होना चाहिए। सुनील जैसे आदर्शवादी इंसान के मुख से प्रभुदयाल जैसे ईमानदार इंस्पेक्टर के लिए इस प्रकार की शब्दावली का इस्तेमाल – मैं इस बात की आलोचना करता हुँ। इस तरह तो पाठक साहब ने प्रभुदयाल को उन पुलिसकर्मियों की श्रेणी में खड़ा कर दिया जो पुलिस की सेवा को कारोबार बनाने पर तुले हैं।
"आदमी का बच्चा सैड करे तो वैल सैड करे, न तो न करे।" – जिन मित्रों ने सुधीर सीरीज पढ़ा है, उन्हें साफ-साफ इस कोट पर सुधीर सीरीज के डायलाग का असर दिखाई देगा। ऐसा लेखकों के साथ होता है कि किसी और किरदार का असर दूसरे उपन्यास के प्रसंगों में आ ही जाता है। वहीं यह सुनील सीरीज का 109 वाँ उपन्यास है लेकिन कई जगह संवाद भटकते हुए नज़र आते हैं। ऐसा लगता ही नहीं कि वे पाठक साहब द्वारा डाले गए हैं। हो सकता है कि यह प्रूफ एवं एडिटर की गलती हो, जबकि उनका काम ही इन कमियों को सुधारना होता है।
इस उपन्यास को पढ़ने के दौरान एक छोटी से गलती को जाना। पाठक साहब ने 'मुजफ्फरपुर' को उत्तरप्रदेश में बताया है जबकि 'मुजफ्फरपुर' बिहार में स्थित है। उत्तरप्रदेश में तो ‘मुजफ्फर नगर’ है। यह फ़क्चुअल गलती अनजाने में हुई, भ्रम में हुई, जाने कैसे हुई लेकिन हुई जिसे की बाद के रीप्रिंट वर्शन में ठीक नहीं किया गया। वहीँ इस गलती को ‘डेली-हंट’ के वर्शन में भी ठीक नहीं किया गया। शायद आप इस बात के लिए ‘च च च...’ कर सकते हैं पर मैं इस बात पर हंसना चाहूँगा। वहीँ उपन्यास के क्लाइमेक्स में भी एक खामी पकड़ में आई जिसका जिक्र यहाँ करना नये पाठकों को पसंद नहीं आएगा।
सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी कि चिर-परिचित भाषा-शैली, इस उपन्यास में अपने जलाल पर है जिसके कारण यह उपन्यास पठनीय से बढ़कर, बारम्बार पठनीय बन जाता है। वहीँ सुनील सीरीज के उपन्यासों में जिस ‘ह्यूमर’ और ‘कॉमिक सेन्स’ को कई पाठकों ने चखा है, उसे वे इस उपन्यास में भी ‘रमाकांत’ के जरिये भली-भांति चख सकते हैं। रमाकांत को पाठक साहब ने उपन्यास में अन्य उपन्यासों की तुलना में नेक्स्ट लेवल पर रखा है, जो अपनी हिंदी-पंजाबी-अंग्रेजी-उर्दू मिक्स जुबान में आपको गुदगुदाता नज़र आता है। जब हम कहानी के बहाव की बात करते हैं तो पाते हैं कि पाठक साहब ने कहानी के हर हिस्से को बड़ी ही खूबसूरती से जोड़ा है और उसे प्रस्तुत किया है, जिसके कारण कहानी फ्लो में कहीं कोई कमी नज़र नहीं आती है। कहानी में इंटेंस घटनाएं कम हैं लेकिन सस्पेंस पर पकड़ लाजवाब है, जिसका अर्थ यह है कि आप अगर एक बार पढने के लिए बैठ गए और शुरूआती ५०-६० पन्ने पढ़ गए तो उपन्यास को छोड़ नहीं सकते हैं।
अगर मैं, उपन्यास के भावनात्मक पहलु की बात करूँ तो एक जगह पर वर्तिका शेरगिल द्वारा पेश किया गया इमोशन पाठक को झकझोरने के लिए काफी है। इसके अलावा ‘इमोशनल सीन’ बहुत कमी भी है और एक क्राइम-फिक्शन नावेल जो, तेज-रफ़्तार तरीके से आगे बढ़ रही हो, इस कमी का होना भी न के बराबर है। मैंने सामाजिक दृष्टिकोण से भी इस उपन्यास को देखने की कोशिश कर रहा था, जिसमे मुझे यह लगा कि ‘महिलाओं के शोषण’ एवं उसके खिलाफ आवाज उठाने के बारे में इस उपन्यास में मुख्य रूप से जिक्र है।
मैं आप सभी को रेकमेंड करना चाहूँगा कि इस उपन्यास को एक बार जरूर पढ़ें।
जैसा कि मैंने अपने पिछले रिव्यु में लिखा था, अगर किसी भाई-बंधु को मेरे किसी विचार से असहमति हो तो कृपया जरूर प्रकट करें, कोशिश करूंगा कि मैं उन्हें अपने 'एक्सटेंडेड' विचारों से सहमत कर पाऊं। फिर भी असहमति बनी रही तो मैं उनकी असहमति का सम्मान करते हुए, उनकी असहमति से सहमत रहूंगा। बाकी फिर भी किसी को लगता है, कि जिस बात से मैं असहमत हुँ, उससे सहमत हो जाऊं तो सीधा कहता हूं मैं 'घंटा'।
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