Skip to main content

न भूतो न भविष्यति - विमल (एक अमर किरदार)


आज मैं भी एक किरदार के बारे में बात करना चाहूँगा| सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल उर्फ़ विमल, सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा रचा गया यह किरदार क्यूँ खास है इसके बारे में इस सीरीज की टैग लाइन ही बताती है| “न भूतो न भविष्यति” – न पहले कभी हुआ था और न भविष्य में कभी होगा| विमल का किरदार ऐसा ही है या यूँ कहूँ पूरी विमल सीरीज को ही “न भूतो न भविष्यति” की श्रेणी में रखा जा सकता है| सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के पाठकगण इस सीरीज से कितने मुतमुइन हैं, यह इस बात से ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है की “न भूतो न भविष्यति” लाइन का सबसे पहले प्रयोग एक पाठक ने ही किया था और पाठक साहब को इसका इस्तेमाल करने का सलाह भी दिया था|

“विमल सीरीज” को पढने वाले पाठक विमल के किरदार को “लार्जर देन लाइफ” कहते हैं|

क्या ऐसा किरदार है सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल उर्फ़ विमल का?

प्रश्न वाजिब है| क्यूँ एक नया पाठक इस सीरीज पढने लग जाए क्यूंकि उसके मित्र ने बस यह कह दिया की यह शानदार किरदार का शानदार उपन्यास है|

सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल उर्फ़ विमल एक कुख्यात अपराधी है जिसकी तलाश सात राज्यों की पुलिस कर रही जिस पर सरकार ने इनाम रखा हुआ है| क्यूँ ऐसा मुजरिम सभी पाठकों का चहेता बन गया? विमल की कहानी वहां से शुरू होती है जब वह इलाहबाद जेल से भाग जाता है और वांटेड मुजरिम बन जाता है| आगे मुंबई में,वह मजबूरी में लेडी शांतागोकुलदास का खून करता है और वहां से मद्रास पहुँचता है| मद्रास में वह पुनः कुछ अवांछित तत्वों द्वारा मजबूर किया जाता है और एक स्टेडियम में होने वाले शो से इकट्ठे किये गए पैसों को लूटता है| उसके साथी उसे धोखा देते हैं, लेकिन वह उनसे बदला लेता है| ऐसी ही जिन्दगी उसकी बीतती जाती है| एक शहर से दुसरे शहर में वह भटकता है| हर जगह वह किन्हीं अवांछित तत्वों द्वारा ब्लैकमेल किया जाता है और अपराध दर अपराध करता जाता है| नोट किया जाए की वह अपराध मजबूरी में करता है क्यूंकि उसे यह कहकर मजबूर किया जाता है की अगर उसने उनका साथ नहीं दिया तो पुलिस को उसकी खबर कर दी जाएगी|

लेकिन सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल जब नीलम नाम की लड़की से मिलता है तो उसके अन्दर बदलाव आते हैं| वह ठहराव की जिन्दगी की तलाश करता है| लेकिन उसका भूत उसका पीछा नहीं छोड़ता| ऐसे में वह अपना चेहरा प्लास्टिक सर्जरी से बदलवाने की कोशिश करता है| प्लास्टिक सर्जरी के लिए दरकार फीस को इकठ्ठा करने के लिए पहली बार मर्जी से वह अपराध करता है| इस अपराध में उसकी जान जाते-जाते बचती है| विमल तब अपने सभी पाठकों के सामने अपने भूतकाल का वह लेखा खोलता है जिसको सुनकर सभी पाठकों के दिल में उसके लिए प्रेम उमड़ पड़ता है| विमल के भूतकाल से हमें पता चलता है की उसकी पत्नी ने जिसे वह बहुत प्यार किया करता था, उसने विमल को धोखा दिया और उसे जेल भिजवाने में डोगरा नामक व्यक्ति का साथ दिया|

दोस्तों, विमल का जलाल तब खुल कर और बाहर आता है जब वह अपने ऊपर किये गए इस सितम का बदला पहले अपनी बेवफा बीवी से लेता है फिर ज्ञानप्रकाश डोगरा से| डोगरा से लिए गए बदले से जो चिंगारी लगती है वह मुंबई के अंडरवर्ल्ड के बेताज बादशाह राजबहादुर सिंह बखिया उर्फ़ काला पहाड़ के पूरी “कंपनी” के खात्मे से समाप्त होती| विमल आगे मुंबई और दिल्ली में चल रहे ड्रग्स के धंधे को पूरी तरह समाप्त करने की कसम खाता है| सोचने वाली बात है की क्यूँ एक अपराधी भारत से ड्रग लॉर्ड्स और स्मगलर्स का नामोनिशान मिटा देना चाहता है| क्यूंकि इस अपराधी के दिल के कोने में कहीं एक इंसान अब भी मौजूद था जो उसे जुर्म के खिलाफ लड़ने की चेतना प्रदान करता है| विमल भारत से ड्रग लॉर्ड्स और स्मगलर्स का सफाया कर देता है ताकीद करता है की आगे से जो भी यह धंधा करेगा उसकी हस्ती मिटा दी जाएगी|

विमल, सात राज्यों में घोषित इश्तहारी मुजरिम, जिसने भारत से जुर्म का सफाया करने की कसम खायी थी आगे “चेम्बूर का दाता” बन जाता है| “चेम्बूर का दाता” – जिसके दर पर अगर कोई फ़रियाद लेकर आता था या न्याय मांगने आता था या इन्साफ मांगने आता था, तो उसकी फ़रियाद सुनी जाती थी, उसके साथ न्याय होता था, उसे इन्साफ मिलता था|

यह विमल का एक “अपराधी” से “चेम्बूर के दाता” तक का सफ़र जिसे सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी ने विमल सीरीज के ४१ उपन्यासों में वृहद् कथानक और भिन्न-भिन्न कहानियों के साथ रचा है| “मौत का खेल” से शुरू हुई कहानी “सदा नगारा कूच का” तक चलती है,लेकिन खत्म नहीं होती| “सदा नगारा कूच में” में एशिया के सभी ड्रग लॉर्ड्स का खात्मा करने के बाद विमल परहित-अभिलाषी कार्यों में लिप्त होना चाहता है| “चेम्बूर के दाता” की कहानी आपको आगे पढने को मिलेगी सर सुरेन्द्र मोहन पाठक के अगले उपन्यास “जो लरै दीन के हेत” में|

कैसे एक अपराधी का एक समाजसेवक के रूप में बदलाव होता है, यह जानना उतना ही जरूरी है जितना आप सभी जानते हैं की अंगुलीमाल डाकू का कैसे महर्षि बाल्मीकि में रूपांतरण हुआ|

कई बैंक डकैतियों के लिए जिम्मेदार, फिर भी गुनाह के अंधड में खूंटे से उखड़ा!

कई हत्याओ के लिए जिम्मेदार नृशंस हत्यारा, फिर भी खुद अपनी सलामती के लिए पनाह मांगता|

दुश्मनों का पुर्जा-पुर्जा काट डालने वाला जालिम, फिर भी दीन के हित में लड़ने वाला, मजलूम का मुहाफिज|

अपनी सैलाब जैसी जिंदगी में ठहराव तलाशता ऐसा शख्स सृष्टि में एक ही हो सकता है :सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल उर्फ विमल!

विमल - बहादुरी ,जांबाजी ,सरफरोशी की ऐसी दास्तान है ,जो खून से लबरेज खंजर से वक़्त की दीवार पर लिखी गयी है| ओर्गेंईज क्राइम को खत्म करने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध|

हरदिल अजीज सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल उर्फ जेल ब्रेकर उर्फ विमल कुमार खन्ना डोमेस्टिक सर्वेंट उर्फ गिरिस माथुर मर्डर सस्पेक्ट उर्फ बनवारी लाल तांगेवाला उर्फ कैलाश मल्होत्रा कैसीनो क्लर्क उर्फ रमेश कुमार शर्मा कार ड्राईवर उर्फ बसंत कुमार मोटर मेकेनिक उर्फ नितिन मेहता रिसर्च स्कोलेर उर्फ कालीचरण मावली उर्फ पी एन घडिवाला सौदागर उर्फ अरविन्द कॉल व्हाईट कोल्लर एम्प्लाई राजा गजेन्द्र सिंह एन .आर .आई .उर्फ अन्थोनी कालिया अंडर वर्ल्ड बोस| एक किरदार और नाम अनेक| एक इंसान जिसके दुश्मन उसे मायावी कहते हैं| जो विमल के अजीज़ हैं वो उसे फ़रिश्ता कहते हैं| एक बहुरुपिया, जिसके नाम कई है लेकिन मिशन एक – आर्गनाइज्ड जुर्म का नामोनिशान मिटाना| जिस प्रकार से जहर को जहर ही काटता है उसी तरह यह किरदार जुर्म का जवाब हिंसात्मक क्रिया द्वारा ही देता है|

विमल सीरीज एक ऐसा करिश्मा है जो सालो साल इंतज़ार के बाद कभी एक बार वाकया होता है| गैर मामूली किरदार, नाकाबिलेबर्दाश्त सस्पेंस, करिश्माई वाक्यात और मिक्नातिशी किरदारनिगारी की जुगलबंदी से पैदा होने वाले हैरतबरपा अहसास का नाम "विमल सीरीज " है जिसके जोशो जलाल से बच पाना नामुमकिन है|

तो क्या आप भी समझते हैं की हिंदी में क्राइम फिक्शन अच्छा नहीं लिखा जाता तो अपनी सोच को बदलिए| मैं इस लेख का उल्लेख इसलिए कर रहा हूँ क्यूंकि लोग अंग्रेजी क्राइम फिक्शन के पीछे बहुत भागते हैं जिससे हिंदी में लिखने वाले लेखकों को वह स्थान नहीं मिल पाता जिसके वे हक़दार हैं| धीरे-धीरे इसी प्रकार के हतोत्साहन से कई लेखकों ने लिखना बंद कर दिया| खैर, मेरा मानना है की सर सुरेन्द्र मोहन पाठक साहब से बढ़िया क्राइम फिक्शन हिंदी में कोई नहीं लिख पाते हैं| काश हिंदी में लिखनेवाले और लेखक आयें और मेरे इस घमंड को तोड़ दिखाएँ|

आप “जो लरै दीन के हेत” की प्रति निम्न ऑनलाइन वेबसाइट से मंगवा सकते हैं:-




आभार

राजीव रोशन 

Comments

Popular posts from this blog

कोहबर की शर्त (लेखक - केशव प्रसाद मिश्र)

कोहबर की शर्त   लेखक - केशव प्रसाद मिश्र वर्षों पहले जब “हम आपके हैं कौन” देखा था तो मुझे खबर भी नहीं था की उस फिल्म की कहानी केशव प्रसाद मिश्र की उपन्यास “कोहबर की शर्त” से ली गयी है। लोग यही कहते थे की कहानी राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म “नदिया के पार” का रीमेक है। बाद में “नदिया के पार” भी देखने का मौका मिला और मुझे “नदिया के पार” फिल्म “हम आपके हैं कौन” से ज्यादा पसंद आया। जहाँ “नदिया के पार” की पृष्ठभूमि में भारत के गाँव थे वहीँ “हम आपके हैं कौन” की पृष्ठभूमि में भारत के शहर। मुझे कई वर्षों बाद पता चला की “नदिया के पार” फिल्म हिंदी उपन्यास “कोहबर की शर्त” की कहानी पर आधारित है। तभी से मन में ललक और इच्छा थी की इस उपन्यास को पढ़ा जाए। वैसे भी कहा जाता है की उपन्यास की कहानी और फिल्म की कहानी में बहुत असमानताएं होती हैं। वहीँ यह भी कहा जाता है की फिल्म को देखकर आप उसके मूल उपन्यास या कहानी को जज नहीं कर सकते। हाल ही में मुझे “कोहबर की शर्त” उपन्यास को पढने का मौका मिला। मैं अपने विवाह पर जब गाँव जा रहा था तो आदतन कुछ किताबें ही ले गया था क्यूंकि मुझे साफ़-साफ़ बताया ग...

विषकन्या (समीक्षा)

विषकन्या पुस्तक - विषकन्या लेखक - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक सीरीज - सुनील कुमार चक्रवर्ती (क्राइम रिपोर्टर) ------------------------------------------------------------------------------------------------------------ नेशनल बैंक में पिछले दिनों डाली गयी एक सनसनीखेज डाके के रहस्यों का खुलाशा हो गया। गौरतलब है की एक नए शौपिंग मॉल के उदघाटन के समारोह के दौरान उस मॉल के अन्दर स्थित नेशनल बैंक की नयी शाखा में रूपये डालने आई बैंक की गाडी को हजारों लोगों के सामने लूट लिया गया था। उस दिन शोपिंग मॉल के उदघाटन का दिन था , मॉल प्रबंधन ने इस दिन मॉल में एक कार्निवाल का आयोजन रखा था। कार्निवाल का जिम्मा फ्रेडरिको नामक व्यक्ति को दिया गया था। कार्निवाल बहुत ही सुन्दरता से चल रहा था और बच्चे और उनके माता पिता भी खुश थे। चश्मदीद  गवाहों का कहना था की जब यह कार्निवाल अपने जोरों पर था , उसी समय बैंक की गाड़ी पैसे लेकर आई। गाड़ी में दो गार्ड   रमेश और उमेश सक्सेना दो भाई थे और एक ड्राईवर मोहर सिंह था। उमेश सक्सेना ने बैंक के पिछले हिस्से में जाकर पैसों का थैला उठाया औ...

दुर्गेश नंदिनी - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय

दुर्गेश नंदिनी  लेखक - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय उपन्यास के बारे में कुछ तथ्य ------------------------------ --------- बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखा गया उनके जीवन का पहला उपन्यास था। इसका पहला संस्करण १८६५ में बंगाली में आया। दुर्गेशनंदिनी की समकालीन विद्वानों और समाचार पत्रों के द्वारा अत्यधिक सराहना की गई थी. बंकिम दा के जीवन काल के दौरान इस उपन्यास के चौदह सस्करण छपे। इस उपन्यास का अंग्रेजी संस्करण १८८२ में आया। हिंदी संस्करण १८८५ में आया। इस उपन्यस को पहली बार सन १८७३ में नाटक लिए चुना गया।  ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ यह मुझे कैसे प्राप्त हुआ - मैं अपने दोस्त और सहपाठी मुबारक अली जी को दिल से धन्यवाद् कहना चाहता हूँ की उन्होंने यह पुस्तक पढने के लिए दी। मैंने परसों उन्हें बताया की मेरे पास कोई पुस्तक नहीं है पढने के लिए तो उन्होंने यह नाम सुझाया। सच बताऊ दोस्तों नाम सुनते ही मैं अपनी कुर्सी से उछल पड़ा। मैं बहुत खुश हुआ और अगले दिन अर्थात बीते हुए कल को पुस्तक लाने को ...