Skip to main content

THE SILVER DONKEY - A BOOK FOR EVERYONE - MUST READ

The Silver Donkey:-

दोस्तों वैसे तो सामाजिक पुस्तकें मैं हिंदी में ही पढता हूँ पर इस बार ऐसा मौका लगा की मुझे एक अंग्रेजी की सामाजिक पुस्तक पढनी पड़ी। तकरीबन ६-७ महीने से मेरे लाइब्रेरी के “पढने के लिए” वाले खाने में पड़ी रही या जब दूसरी किताबों को निकालता था तो इधर उधर होती रहती थी। किताब का शीर्षक और इसका संक्षिप्त सारांश मुझे इतना पसंद आया था की इसे मैंने झट से खरीद लिया था। वही जिज्ञासा पिछले सप्ताह तक भी कायम रही और मैंने इस पुस्तक को उठा कर पढना शुरू कर दिया।
लेखक के बारे में:- सोन्या हार्टनेट मूल रूप से ऑस्ट्रेलियाई लेखिका हैं। १३ वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना प्रथम उपन्यास लिखा था और १५ वर्ष की उम्र में उनका पहला उपन्यास (Trouble All the Way ) प्रकाशित हुआ था। मुख्यतः उनकी कहानी और उपन्यासों को पढने वाला वर्ग युवा या बच्चे होते हैं। उन्होंने कई प्रकार के पुरस्कारों से नवाजा भी गया। उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तक Sleeping Dogs" (1995) विवादों के घेरे में रही और उन्हें आलोचनाओं को सहना पड़ा। उपरोक्त पुस्तक के लिए लेखिका को वर्ष २००५ का   Courier Mail  और CBC Book of the Year पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
पुस्तक का सारांश:- प्रथम विश्वयुद्ध का समय। फ़्रांस के किसी गाँव में, दो बहने कोको और मार्सले एक दिन खेलते-खेलते जंगले में पहुँचते हैं जहाँ उन्हें एक व्यक्ति लेटा हुआ नज़र आता है। पहले तो दोनों बच्चे डर जाते हैं की कहीं यह अमुक व्यक्ति मारा हुआ तो नहीं है। वे झाड़ियों में छुपकर सभी संभावनाओं पर विचार-विमर्श कर रहे होते हैं की अमुक व्यक्ति जो लेता हुआ था आवाज देता है। कोको और मार्सले आगे आके अपना परिचय देते हैं और व्यक्ति से उसका परिचय पूछते हैं। व्यक्ति अपना परिचय एक सैनिक के रूप में देता है युद्ध छोड़ कर भाग आया है और अपना नाम लेफ्टिनेंट शेफर्ड बताता है जो अस्थायी रूप से अँधा है। वो बताता है की उसका भाई बीमार है और उसके टीम के सभी सदस्य मारे जा चुके हैं इसलिए वह अपने घर जाना चाहता है जो इस गाँव से लगे समुद्र के उस पार है। वह अपनी यह व्यथा भी सुनाता है की वह गाँव वालों के नज़रों में नहीं आना चाहता क्यूंकि युद्ध छोड़ कर जाने वाले सैनिक को मृत्यु-दंड दिया जाता है।
कोको और मार्सले को सैनिक पर बहुत दया आती है। कोको को सैनिक के हाथ में एक सुनहरी सी, छोटी सी, चांदी की गधे की मूर्ति दिखाई देती है। सैनिक उन्हें बताता है की यह सिल्वर डंकी उसका लकी चार्म (यानी भाग्यशाली मूर्ति) है। सैनिक उन्हें एक ऐसी कथा सुनाता है जहाँ एक बूढी डंकी (जिसे अंग्रेजी में जेनी कहा जाता है) एक पति-पत्नी की सहायता करती है। बूढी डंकी, गर्भवती पत्नी को एक दूर शहर में ले जाती है और वहां से फिर सुरक्षित वापिस भी ले आती है।
सैनिक ३ दिन उसी जंगल में रहता है जिसके दौरान दुसरे दिन कोको और मार्सले उसकी मुलाक़ात अपने भाई पास्कल से भी कराते हैं। कोको और मार्सले ऐसा नहीं करना चाहते थे पर उनके अनुसार उनका भाई पास्कल बुद्धिमान था इसलिए वह सैनिक को समुद्र पार भेजने के लिए कोई न कोई रास्ता निकाल सकता था। सैनिक ने इन ३ दिनों में ३ कहानियां सुनाई जिसमे गधे को एक ऐसा अतिविश्वस्निय पशु दिखाया गया है। कहानी बहुत ही सुन्दर तरीके से प्रस्तुत की गयी है और गधों के ऊपर कहाँनी सुनने में बड़ा ही मजा आता है।
कोको, मार्सले, पास्कल और उनका एक दोस्त सैनिक की भरपूर सहायता करते हैं। भोजन से लेकर कपडे तक। जब-जब कोको और मार्सले सैनिक के साथ नहीं होते हैं तो उसके बारे में ही सोचते हैं। वे अपने माता-पिता से भी इसके बारे में नहीं बताते हैं। कोको की चाह है की उसे सैनिक का सिल्वर डंकी मिल जाए। वे कोशिश करते हैं की किसी भी तरीके से वे सैनिक को समुद्र पार करवा दे ताकि वह अपनी भाई से मिल सके।
लेकिन, दोस्तों इन कहानियों से चारों बच्चों के अन्दर कई तब्दीलियाँ आ जाती हैं। वे अपना लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं। ये कहानिया उनके अन्दर के इंसान को जगा देती हैं। ये कहानियां उन्हें बहादुरी, त्याग, आत्मनिर्भरता, प्रेम, सेवा आदि जैसे मूल्यों को बड़ी ही ख़ूबसूरती से इन बच्चों के अन्दर उतार देती हैं।

विश्लेषण:- दोस्तों, कहानी की शुरुआत बड़े ही रोमांच के साथ होता है। दोनों ही लड़कियों के द्वारा अनजान सैनिक को खोजा जाना बड़े ही रहस्यमयी रूप में दिखाई देता है। इस उपन्यास में खोजने लायक बहुत कुछ है और इसकी भाषा भी बहुत साधारण है जिससे इसको किसी भी विद्यार्थी को पढने के लिए दिया जा सकता है। बच्चे इस उपन्यास से बहुत सी बातें सीख सकते हैं। वैसे ऐसा नहीं है की यह उपन्यास सिर्फ विद्यार्थियों के लिए ही है, युवा वर्ग भी इससे बहुत कुछ सीख सकता है। इस कहानी को एक व्यस्क के नज़रिए से भी देख सकते हैं और एक बच्चे के मासूमियत से भी।
सैनिक उस चांदी के गधे में भाग्य, आशा और प्रेरणा को देखता है और कहानियों के द्वारा इन सभी नैतिक मूल्यों को बच्चों में बाँट देता है। सैनिक बच्चों को गधे की कहानियों के द्वारा यह दर्शाता है की ऐसा पशु जिसको सब तिरस्कृत नज़रों से देखते हैं वे मानव के प्रति कितने वफादार और बहादुर होते हैं। यद्दपि ये कहानिया काल्पनिक होती हैं पर बच्चे सहज ही उसे सच मान कर उसके नैतिक मूल्य को अपने मन में बैठना शुरू कर देते हैं। प्रत्येक कहानी धीरज, संयम, विश्वसनीयता, बहादुरी, प्रेम और सेवा का विशाल और सरल परिचय देता है।
एक ऐसे समय जब पास्कल; कोको और मार्सले का भाई, सैनिक से जंग की कहानी सुनाने के लिए कहता है तो सैनिक एक जंग की कहानी सुनाता है जहाँ घायल लोगों को इलाज़ के लिए डॉक्टर के पास भेजने के लिए गधे का प्रयोग किया जाता है। इतिहास में कई बार इस प्रकार का प्रयोग किया गया है। प्रथम विश्व युद्ध में एक ब्रिटिश सैनिक ने युद्धभूमि से घायलों को उपचार शिविर तक ले जाने के लिए गधों का प्रयोग किया था। अफगानिस्तान युद्ध में गधों का इस्तेमाल विस्फोटकों को धोने के लिए किया जाता था। सामान्यतया गधे मूल रूप से पालतू जानवर होते हैं जिनका इस्तेमाल मुख्यतः बोझा ढोने के लिए किया जाता है। चीन और इटली में तो इस पशु के मांस को भी लोग बड़े चाव से खाते हैं। वहीँ ऑस्ट्रेलिया और कई देशों में ऐसी संस्थायें हैं जो गधों के सरक्षण के लिए कार्य कर रही हैं। जब आप इस पुस्तक को पढेंगे तो आपको चीन और इटली के लोगो से घृणा सी हो जायेगी जो इस मासूम पशु का मांस खाते हैं।
कोको के किरदार को समझे तो वह शुरू से लेकर अंत तक एक मासूम लड़की की भूमिका अच्छी निभाती जान पड़ती है। चूँकि उसकी उम्र लगभग ८ वर्ष बताई गयी है तो इस चरित्र चित्रण में कोई संदेह नहीं। वह नहीं चाहती है की सैनिक अपने गाँव जाए क्यूंकि उसे सिल्वर डंकी बहुत पसंद है। वहीँ, मार्सले को एक समझदार लड़की के रूप में दर्शाया गया है जो सैनिक का ख़याल रखने में सहायता करती है। पास्कल को एक चालाक औद अक्लमंद लड़के के रूप में प्रस्तुत किया गया है इसलिए वह सैनिक को समुद्र पार करवाने में सहायता करने को मान भी जाता है और वह युद्ध के किस्से भी सुनना चाहता है जबकि उसकी उम्र सिर्फ १३ वर्ष बताई गयी है। इससे यह झलकता है की वह परिपक्वता की और बढ़ रहा है। कहानी के मुख्य किरदार सैनिक को बहादुर, संघर्षशील, आत्मस्मानित व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया गया है। वो सभी बच्चों का आदर करता है और उनका गलत फायदा नहीं उठाता है।
हार्नेट ने स्थानों के साथ साथ अर्थपूर्ण शब्दों का भी सुन्दर प्रयोग किया है। उनकी कहानी में जटिल विषयों का अंश देखने को मिलता है जिसे उन्होंने से बिना किसी गंभीरता के साथ प्रस्तुत किया है। प्रत्येक किरदार नया गढ़ा हुआ लगता है और ऐसा लगता है की अपनी कल्पना में उन्होंने साफ़ ब्रश का प्रयोग करके प्रकाशमान चित्र उकेर दिया हो। लेखिका ने बहुत ही करीबी से और गहराई से प्रत्येक किरदार का चरित्र चित्रण किया है। लेखिका ने फ़्रांसिसी गावों का बहुत ही मनोरम दृश्य अपने शब्दों में उकेरा है।
ऐसा लगता है की लेखिका कुछ सबक सिखाने की कोशिश कर रही है लेकिन पूर्ण रूप से यहाँ नैतिक और अध्यात्मिक मूल्यों का उपदेशवाद दिखाई पड़ता है। उपन्यास में युद्ध के विरोधाभाषों को बड़े मार्मिक रूप में दर्शाया गया है वहीँ कठनाई और संघर्ष के समय लोगों द्वारा मानवता और साहस प्रकट करने की भावना द्वारा एक दुसरे की सहायता करना दिल को झकझोर कर रख देता है। प्रत्येक कहानी एक अर्थ के साथ लिखी गयी है जो पाठक को इससे पढने के लिए प्रोत्साहित करती है।
पुस्तक का आवरण पृष्ठ अत्यंत सुन्दर है जिस पर एक सुन्दर गधा  बना है जो चमकीला सा नज़र आता है। पन्नो पर अति सुन्दर लिखाई के लिए पेंगुइन प्रकाशन को धन्यवाद करना चाहूँगा जिन्होंने पाठक के रूचि को ध्यान में रखा। लेखिका ने शब्दों के साथ साथ चित्रों का भी प्रयोग किया है जिससे की कहानी को अच्छी तरह से समझाया जा सके।
तो दोस्तों देखते हैं की आप कब इस पुस्तक को उठा कर पढना शुरू करते हैं।

पढ़ते रहें....
विनीत
राजीव रोशन

Comments

Popular posts from this blog

कोहबर की शर्त (लेखक - केशव प्रसाद मिश्र)

कोहबर की शर्त   लेखक - केशव प्रसाद मिश्र वर्षों पहले जब “हम आपके हैं कौन” देखा था तो मुझे खबर भी नहीं था की उस फिल्म की कहानी केशव प्रसाद मिश्र की उपन्यास “कोहबर की शर्त” से ली गयी है। लोग यही कहते थे की कहानी राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म “नदिया के पार” का रीमेक है। बाद में “नदिया के पार” भी देखने का मौका मिला और मुझे “नदिया के पार” फिल्म “हम आपके हैं कौन” से ज्यादा पसंद आया। जहाँ “नदिया के पार” की पृष्ठभूमि में भारत के गाँव थे वहीँ “हम आपके हैं कौन” की पृष्ठभूमि में भारत के शहर। मुझे कई वर्षों बाद पता चला की “नदिया के पार” फिल्म हिंदी उपन्यास “कोहबर की शर्त” की कहानी पर आधारित है। तभी से मन में ललक और इच्छा थी की इस उपन्यास को पढ़ा जाए। वैसे भी कहा जाता है की उपन्यास की कहानी और फिल्म की कहानी में बहुत असमानताएं होती हैं। वहीँ यह भी कहा जाता है की फिल्म को देखकर आप उसके मूल उपन्यास या कहानी को जज नहीं कर सकते। हाल ही में मुझे “कोहबर की शर्त” उपन्यास को पढने का मौका मिला। मैं अपने विवाह पर जब गाँव जा रहा था तो आदतन कुछ किताबें ही ले गया था क्यूंकि मुझे साफ़-साफ़ बताया ग...

विषकन्या (समीक्षा)

विषकन्या पुस्तक - विषकन्या लेखक - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक सीरीज - सुनील कुमार चक्रवर्ती (क्राइम रिपोर्टर) ------------------------------------------------------------------------------------------------------------ नेशनल बैंक में पिछले दिनों डाली गयी एक सनसनीखेज डाके के रहस्यों का खुलाशा हो गया। गौरतलब है की एक नए शौपिंग मॉल के उदघाटन के समारोह के दौरान उस मॉल के अन्दर स्थित नेशनल बैंक की नयी शाखा में रूपये डालने आई बैंक की गाडी को हजारों लोगों के सामने लूट लिया गया था। उस दिन शोपिंग मॉल के उदघाटन का दिन था , मॉल प्रबंधन ने इस दिन मॉल में एक कार्निवाल का आयोजन रखा था। कार्निवाल का जिम्मा फ्रेडरिको नामक व्यक्ति को दिया गया था। कार्निवाल बहुत ही सुन्दरता से चल रहा था और बच्चे और उनके माता पिता भी खुश थे। चश्मदीद  गवाहों का कहना था की जब यह कार्निवाल अपने जोरों पर था , उसी समय बैंक की गाड़ी पैसे लेकर आई। गाड़ी में दो गार्ड   रमेश और उमेश सक्सेना दो भाई थे और एक ड्राईवर मोहर सिंह था। उमेश सक्सेना ने बैंक के पिछले हिस्से में जाकर पैसों का थैला उठाया औ...

दुर्गेश नंदिनी - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय

दुर्गेश नंदिनी  लेखक - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय उपन्यास के बारे में कुछ तथ्य ------------------------------ --------- बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखा गया उनके जीवन का पहला उपन्यास था। इसका पहला संस्करण १८६५ में बंगाली में आया। दुर्गेशनंदिनी की समकालीन विद्वानों और समाचार पत्रों के द्वारा अत्यधिक सराहना की गई थी. बंकिम दा के जीवन काल के दौरान इस उपन्यास के चौदह सस्करण छपे। इस उपन्यास का अंग्रेजी संस्करण १८८२ में आया। हिंदी संस्करण १८८५ में आया। इस उपन्यस को पहली बार सन १८७३ में नाटक लिए चुना गया।  ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ यह मुझे कैसे प्राप्त हुआ - मैं अपने दोस्त और सहपाठी मुबारक अली जी को दिल से धन्यवाद् कहना चाहता हूँ की उन्होंने यह पुस्तक पढने के लिए दी। मैंने परसों उन्हें बताया की मेरे पास कोई पुस्तक नहीं है पढने के लिए तो उन्होंने यह नाम सुझाया। सच बताऊ दोस्तों नाम सुनते ही मैं अपनी कुर्सी से उछल पड़ा। मैं बहुत खुश हुआ और अगले दिन अर्थात बीते हुए कल को पुस्तक लाने को ...