समीक्षा - सन्देश- असर- प्रेरणा- कटाक्ष ---------------------------------------------------------------------- पुस्तक - ओस की बूँद (उपन्यास) लेखक - राही मासूम रज़ा जब हम सुबह सुबह उठते हैं तो अपनी छत की मुंडेर से लगे नीम के पेड़ के पत्तों पर कुछ बूंदे देखते हैं, जब पार्क में घुमने जाते हैं तो घासों और फूलों के ऊपर बूंदे देखते हैं जिन्हें ओस की बूँद कहा जाता है। लेकिन ये ओस की बूंदे सूरज की गर्मी से धीरे धीरे भाप बन कर उड़ जाती है। ये ओस की बूँद हमें सुबह तो दिखाई देती हैं लेकिन शाम होते होते इनका कोई नामोनिशान नहीं होता। आज हमारा समाज कई प्रकार की कुरीतियों, बुराइयों, भ्रस्टाचारों से भरा हुआ है। ये कुरीतियाँ, ये बुराइयाँ ओस की बूंदों की तरह हैं । जब हम सुबह उठते हैं तो समाचार पत्रों द्वारा, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा इस प्रकार की कई ओस की बूंदों को देखते हैं। ये ओस की बूंदे सुबह सवेरे हमारे मानस पटल पर छप जाती हैं लेकिन शाम होते होते हम इन ख़बरों को भूल जाते हैं। ओस की बूँद हमें दर्शाता है की किस प्रकार एक कहानी की शुरुआत तो होती है, हम उसे पढ़ते भी हैं,...
This blog is totally dedicated to the novels written by Sir Surender Mohan Pathak, Crime investigation, Indian Literature, book reading etc.