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Showing posts from May, 2017

धमकी (सुनील सीरीज)

साहेबान, मेहरबान, कदरदान और आये हुए सभी मेहमान, आप सभी का मैं, इस्तकबाल करता हूँ इस जादूगरी के शो में – जहाँ मैं वह कारनामा करके दिखाउंगा जिसे देखने के बाद आप अपने दांतों तले ऊँगली दबा लेंगे। साहब, आपका खादिम कोई जाना-माना और प्रशिक्षित जादूगर नहीं है, लेकिन आपका खादिम जेल तोड़ कर भाग जाने एवं एक हत्या करने में कामयाब हुआ था, तो ऐसे में कुछ तो बात होगी मुझमें। मैं विश्वास दिलाता हूँ कि मैं इस एक्ट के द्वारा आपको रहस्य और रोमांच से भर दूंगा। चलिए अच्छा है, आप सभी तैयार नज़र आ रहे हैं, इसलिए मैं पहले अपने इस एक्ट के बारे में आपको बता दूँ। तो तो साहेबान मैं आप सभी के सामने, ये जो इंस्पेक्टर साहब आये हैं, ये जो रिपोर्टर साहब आये हैं और इतने मेहमानों के बीच, भारत के प्रसिद्ध जादूगर ‘एस.एस. सरकार जूनियर’ का क़त्ल कर दूंगा और गायब हो जाऊँगा। भाइयों एवं बहनों ‘कातिल एक कलाकार होता है और क़त्ल करना उसकी कला होती है। एन वैसे ही जैसे जादूगर एक कलाकार होता है और जादूगरी उसकी कला होती है। जादूगर असल में क्या करता है! हाथ की सफाई दिखाता है। वो अपने दर्शकों की तवज्जो अपने एक हाथ की तरफ करता है और दुसरे...

जान की बाजी (प्रमोद सीरीज)

बहुत दिन हुए कोई रिव्यु-सिव्यू नहीं लिखा, इसका मूल कारण भले ही कोई और हो लेकिन मेरे मित्र-गण कहते हैं, 'मैं 'पिलपिला' गया हुँ'। सिर्फ इतना ही नहीं, इस बात को कोट करने से पहले एक और लाइन कोट करते हैं 'शादी के बाद'। खैर, मित्रों की बात, जो सलाह के स्थान पर ताने का काम करती हो, उसे मैं 'गधे की लात' की तरह मानता हुँ। इस मुहावरे को कोट करने का यह मतलब मत निकालिएगा कि मुझे इस मुहावरे का अर्थ भी पता है, वो तो मैंने वैसे ही लिख दिया जैसे पाठक साहब ने वैसे ही 'जान की बाजी' में, लेखन में स्वतंत्रता लेते हुए, फॉरेंसिक साइंस का मजाक उड़ाते हुए, उस दौर में, हाथों-हाथ फिंगर-प्रिंट चेक करवाकर कई 'केबिन' एलिमिनेट कर दिए। कल से ही 'डेली-हंट' पर 'जान की बाजी' पढ़ रहा था। 'डेली-हंट' पर इसलिए कि मेरे घर में मौजूद पाठक साहब के सभी पुराने 'उपन्यास', कार्टन में पैक होकर, टांड़ पर रखे हुए हैं। सोच रहा हूँ, बाकायदा एक साल से सोच रहा हूँ कि रैक बनवाऊंगा जिसमें इन उपन्यासों को रखूँगा, 'लेकिन ये ना थी हमारी किस्मत कि विसाले यार...