इंतकाम ---------------- बहुत पुरानी एक कहावत अपने बुजर्गों से सुनने को मिली थी – “ज़र, ज़ोरु और ज़मीन, हर झगड़े की जड़ होते हैं।” सही बात भी है, क्यूंकि सोना (धन), स्त्री या भूमि के कारण ही आज कि तारीख में भारतीय न्यायालयों में मुकदमे भरे पड़े हैं। मुझे अचानक इस कहावत कि याद इसलिए आई क्यूंकि मैं आज ही “इंतकाम” उपन्यास पढ़ कर हटा हूँ। मैं सोचने पर मजबूर हुआ कि क्यूँ नहीं विक्रम गोखले जैसे शख्स को फांसी कि सजा मिल जाए। भले ही बाद में वह बेक़सूर साबित हो जाए। विक्रम गोखले, मुंबई में एक गाइड के रूप में फ्रीलांसर काम करता था। कहने को तो वह शादीशुदा था लेकिन अपनी पत्नी से अधिक उसे दूसरी औरतों में लगाव था। अगर सिर्फ जिस्मानी तौर पर लगाव रहता तो बात दूर थी, वो तो उनसे धन ऐंठने से भी बाज नहीं आता था। मतलब उसने “जड़ और जोरू” से दो-दो हाथ करने शुरू कर दिए थे। इंसान की एक खासियत है कि उसे पूरा पंचतंत्र याद हो, उसे पूरा मदभगवद गीता याद हो लेकिन वह इनमे प्रस्तुत किये गए जीवन मूल्यों को अपनी जिन्दगी में कभी लागू नहीं करता बल्कि इनका वह इस्तेमाल हमेशा दूसरों को सलाह देने में लगाता है। ऐसे ही वि...
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