जो लरै दीन के हेत (समीक्षा) इसी वर्ष प्रगति मैदान में हुए “कोलाबा कांस्पीरेसी” के विमोचन के दौरान एक साक्षात्कार में पाठक साहब ने इस बात की घोषणा कर दिया था की उन्होंने विमल की कहानी को १२०० पन्नों में पूरा कर लिया है और आने वाले दिनों में जल्दी सभी पाठकों के हाथ में होगा। निःसंदेह यह विमल सीरीज के सभी प्रेमियों के लिए बड़ी ख़ुशी की बात थी क्यूंकि तीन साल पहले पाठक साहब ने विमल का आखिरी उपन्यास “सदा नगारा कूच का” लिखा था। समय बीतता गया और आखिरकार जब यह खबर आई की विमल सीरीज का ४२ वां कारनामा सितम्बर माह में महज ४०० पन्नों में एक ही खंड में प्रकाशित हो रहा है तो सभी पाठकों को बहुत मायूस होना पड़ा। इस बात की कड़ी आलोचना की गयी विमल के उपन्यास को एक खंड में नहीं तीन खंड में प्रकाशित करना चाहिए। खैर पुस्तक बाज़ार में आई और तय वक़्त से पहले ही दिल्ली पुस्तक मेले में उपलब्ध होने लगे। इस समय फिर से यह उपन्यास कंट्रोवर्सी में घिर गया। जिन पाठकों ने महीनों पहले ई-कॉमर्स वेबसाइट से अपनी प्रतियाँ बुक कराई थी उन्होंने जम कर हार्पर कॉलिंस के मार्केटिंग पालिसी को कोसा। यहाँ तक कि कई पाठकों ...
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