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Showing posts from October, 2014

जो लरै दीन के हेत (समीक्षा)

जो लरै दीन के हेत (समीक्षा) इसी वर्ष प्रगति मैदान में हुए “कोलाबा कांस्पीरेसी” के विमोचन के दौरान एक साक्षात्कार में पाठक साहब ने इस बात की घोषणा कर दिया था की उन्होंने विमल की कहानी को १२०० पन्नों में पूरा कर लिया है और आने वाले दिनों में जल्दी सभी पाठकों के हाथ में होगा। निःसंदेह यह विमल सीरीज के सभी प्रेमियों के लिए बड़ी ख़ुशी की बात थी क्यूंकि तीन साल पहले पाठक साहब ने विमल का आखिरी उपन्यास “सदा नगारा कूच का” लिखा था। समय बीतता गया और आखिरकार जब यह खबर आई की विमल सीरीज का ४२ वां कारनामा सितम्बर माह में महज ४०० पन्नों में एक ही खंड में प्रकाशित हो रहा है तो सभी पाठकों को बहुत मायूस होना पड़ा। इस बात की कड़ी आलोचना की गयी विमल के उपन्यास को एक खंड में नहीं तीन खंड में प्रकाशित करना चाहिए। खैर पुस्तक बाज़ार में आई और तय वक़्त से पहले ही दिल्ली पुस्तक मेले में उपलब्ध होने लगे। इस समय फिर से यह उपन्यास कंट्रोवर्सी में घिर गया। जिन पाठकों ने महीनों पहले ई-कॉमर्स वेबसाइट से अपनी प्रतियाँ बुक कराई थी उन्होंने जम कर हार्पर कॉलिंस के मार्केटिंग पालिसी को कोसा। यहाँ तक कि कई पाठकों ...

Robbery V/s डकैती

मैं कभी इस सोच में पड़ जाता हूँ की इंसान की मानसिकता के गिरने का क्या स्तर होता है या यूँ कहूँ कि उसे मापने का क्या स्तर होता है ताकि यह पता लग सके की वह किस स्तर तक गिर चूका है। मैं उन महानुभावों के बारे में बात करना चाहता हूँ जिन्होंने कभी किसी बात का अनुभव नहीं किया होता लेकिन वे उस बात की आलोचना उस स्तर की करते हैं जैसे की उस बात ने उनकी इज्ज़त लूट ली हो। समय-समय की बात है या भाषा-भाषा की बात है, यह समझना मुश्किल है। मैं बात कर रहा हूँ भारत में लोगों के अन्दर उस दोहरी मानसिकता के चलते विचार कि जिसमे वे पल्प-फिक्शन में लिखी जाने वाली अच्छी कृतियों को भी निम्न स्तर का मानते हैं क्यूंकि किसी फलां पुस्तक में उन्होंने कुछ भयावह और घिनौना पढ़ लिया था। आप अड़े हैं की आप किसी अंतरष्ट्रीय लेखक की किसी भी कृति को अंग्रेजी में जरूर पढेंगे जबकि उसी कृति के सामानांतर और उससे अधिक उम्दा कृति को आप बस महज इसलिए नकार देंगे क्यूंकि वह हिंदी पल्प फिक्शन में लिखी गयी है। मैं यहाँ किसी लेखक की तुलना नहीं करना चाहता हूँ। बस इतना बताना चाहता हूँ भारत में उम्दा लेखकों और उनकी कृतियों की कमी नहीं है। ...