अमूमन देखा गया है की कभी किसी समय, किसी उम्र में, किताबें पढने के शौक़ीन इंसानों का शौक, धीरे-धीरे कम होते हुए, खत्म भी हो जाता है। इंसान के जीवन में जिम्मेदारी एवं उससे उत्पन्न होने वाली व्यस्तताएँ, उसके शौक के ऊपर हावी हो जाती हैं और अगर शौक किताबें पढना हुआ तो वह ज्यादा ही हावी हो जाता है। जब आप अपने आस-पास देखते हैं, तो आपको कई ऐसे उदाहरण नज़र आते हैं। ऐसा भी हुआ है कि, अपने पढने के शौक को छोड़ देने के कई वर्षों बाद अचानक ही उनका मन बदलता है और वह फिर से किताबें पढना शुरू कर देता है। यह लेख उन सभी अनगिनत इंसानों के लिए है जिन्होंने अपने पढने के शौक से यह कहकर किनारा कर लिया है कि – उनके पास अब इस शौक के लिए वक़्त नहीं है, अब इस शौक से ज्यादा भी अहम् चीजें हैं जिन्हें प्राथमिकता देना पड़ता है, आदि। किताबें पढने वालों एवं किताबी कीड़ों से, सामान्य इंसान का सबसे पहला सवाल यह होता है की किताबें पढने से फायदा क्या है? कमाल है, यह सवाल ऐसे इंसान आपसे पूछेंगे जिन्होंने अकेडमिक किताबों को पढ़ कर ही आपसे यह सवाल पूछने का हिम्मत किया होगा क्यूंकि अगर कोई व्यक्ति अधिक पढ़ा-लिखा नहीं ह...
This blog is totally dedicated to the novels written by Sir Surender Mohan Pathak, Crime investigation, Indian Literature, book reading etc.