हेलोवीन स्पेशल (What you should read on Halloween)
दोस्तों, अंग्रेजों
के जाने के बाद, हमारे देश में जो सबसे बड़ा विकास हुआ – वह था अंग्रेजी का
फलना-फूलना। अंग्रेजी हुकूमत के दौरान अधिकतर भारतियों ने अंग्रेजी शिक्षा को
इसलिए ग्रहण किया ताकि अपनी भावनाओं को उनको सभी सही से समझा सके। इसका सबसे बड़ा
फायदा यह हुआ की हम आज़ाद हैं। तो आज हम अंग्रेजों द्वारा बनाई गयी अंग्रेजी से
विकास की सीढ़ी चढ़ते हुए पुरे विश्व भर में चर्चा का विषय बने हुए हैं। कहने को ही
अब हमारी राष्ट्र भाषा हिंदी है जबकि हमारे देश में ८०-८५% काम अंग्रेजी के भरोसे
ही चलती है। FICCI या CII की कई कांफ्रेंस को देख लीजिये जो हमारी देश की अर्थव्यवस्था
के विकास में काम करती है, वहां सभी जाने-माने महानुभाव अंग्रेजी में ही बात
करेंगे। वैसे मैंने देखा है की हिंदी की दुर्दशा दुसरे भाषाओं से ज्यादा हो गयी है।
भारत के कई राज्यों में वहां की मूल भाषा में ही सभी सरकारी संवाद होते हैं लेकिन
चूँकि दिल्ली राजधानी है इसलिए यहाँ अंग्रेजी पर ज्यादा जोर दिया जाता है।
खैर, विदेशों में
बड़ा ही मनोरंजक एक त्यौहार मनाया जाता है जिसका नाम है – हालोवीन। फिल्मों में इस
त्यौहार के बारे में बहुत कुछ देखा है। डरावने और भूत एक जैसे कपडे पहने लोग हेलोवीन
पार्टी में जाते हैं और मौज-मस्ती करते हैं। विदेशों में, अधिकतर देशों में यह
त्यौहार ३१ अक्टूबर को मनाया जाता है। अगर मैं विकिपीडिया पर जाऊं, तो मुझे यह पता
लगता है की हेलोवीन मूल रूप से मृत आत्माओं को याद करने के लिए मनाया जाता है। भाई,
हमारे देश में तो मृत आत्माओं को याद करने के लिए पितृपक्ष का रिवाज है। हिन्दू
धर्म में इस रिवाज का बहुत महत्व है। कमाल की बात यह है की हेलोवीन में लोग इतने
भड़कीले, इतने डरावने, इतने खतरनाक कपडे क्यूँ पहनते हैं। अगर कोई अन्यथा और दिल पर
न लें तो यह कहना चाहूँगा की क्या जिन आत्माओं को वह याद कर रहे हैं वह वैसे नज़र
आते थे। वैसे ये विदेशी वक्त का अच्छा इस्तेमाल करते हैं, एक ही दिन में सभी मृत आत्माओं
को याद कर लेते हैं और साथ-ही-साथ पार्टी भी कर लेते हैं। जबकि भारत में तो
पितृपक्ष में सादा जीवन ही बिताना पड़ता है और पार्टी की तो छोडिये, सभी तामसी
चीजों पर बंदिश भी लग जाती है।
खैर, हेलोवीन की जब
बात चल ही पड़ी है तो सोच रहा हूँ आज पाठक साहब द्वारा लिखित, कुछ उन उपन्यासों के
बारे में बात करूँ जो डरावने, भूत-प्रेत पर आधारित और खतरनाक हों। सर सुरेन्द्र
मोहन पाठक जी के उपन्यासों की यह खूबी होती है की उनकी कहानियां वास्तविकता के
करीब होती है। मतलब सुपर-नेचुरल या भूत-प्रेत जैसा कुछ नहीं होता है। लेकिन कुछ
उपन्यास ऐसे हैं जिसमे पाठक को पढ़ते-पढ़ते कुछ ऐसा एहसास हो ही जाता है की कहीं
पाठक साहब कहानी को भूत-प्रेत के कारनामे पर जाकर अंत कर दें। ऐसे ही कुछ
उपन्यासों के बारे में आज मैं बात करने जा रहा हूँ और सोचता हूँ कि क्यूँ न
हेलोवीन के दिन आप इन उपन्यासों को पढ़ कर अपना मनोरंजन करें और सोचे की क्या सच
में ही भूत होते हैं।
1) काली हवेली – यह
उपन्यास जितना शानदार शीर्षक लिए हुए हैं उतनी ही शानदार इसकी कहानी भी है। इस
उपन्यास में पाठक साहब ने उस एहसास के दर्शन कराये हैं जो अमूमन उनके उपन्यासों
में नज़र नहीं आते हैं। उपन्यास की कहानी एक ऐसी हवेली पर आधारित है जो ४०० वर्ष से
समुद्र के किनारे खड़ी है। इस उपन्यास का केंद्रीय किरदार सुनील जब हवेली में
पहुचता है तो उसे हवेली का भूतहा एहसास होता है। उसे कई प्रकार के भूतहा अनुभव भी
होते हैं जो उसे बार-बार डराते हैं। कहानी का अधिकतर घटनाक्रम इस हवेली में ही
दर्शाया गया है इसलिए पाठकों को यह उपन्यास एक अलौकिक दुनिया की तरफ लेकर जाने की
कोशिश करेगा। इस हेलोवीन पर इस उपन्यास को पढ़िए ताकि आप भी उस एहसास को जी सकें जो
सुनील ने जिया था।
2) खुनी हवेली – यह
उपन्यास एक थ्रिलर और मर्डर मिस्ट्री का संगम है लेकिन इस उपन्यास के कुछ हिस्से
डरावने और भूतहा भी हैं। यह उपन्यास अपने आप में एक मास्टर-पीस है। कई प्रकार के
ट्विस्ट एंड टर्न से भरपूर यह उपन्यास निःसंदेह हेलोवीन पर पढ़े जाने लायक है। वैसे
पाठकों को अलौकिक शक्ति का एहसास इस उपन्यास में कम होगा लेकिन जो होगा वह भरपूर
होगा।
3)कोई गवाह नहीं – यह थ्रिलर
उपन्यास “हु डन इट?” का शानदार नमूना है। एक मीनार में एक तलवार घोंपकर मृत्यु
होती है। जिस व्यक्ति की मृत्यु होती है उसके पास कोई पहुंचा नहीं। जिस स्थान पर
उसकी मृत्यु हुई उस स्थान पर पहुँचने का सिर्फ एक ही रास्ता था लेकिन उस रास्ते से
कोई उस तक पहुंचा नहीं। और किसी जरिये से उस स्थान तक पहुंचना नामुमकिन था। जिस
प्रकार से व्यक्ति की मृत्यु हुई उससे यह अटकले भी साफ़ हो जाती है की उसने
आत्महत्या की। तब प्रश्न यह उठता है की क्या किसी भूत-प्रेत-आत्मा ने आकर उसकी
हत्या की?
4)भूत-बसेरा – सुनील
सीरीज की यह वृहद् लघु कथा है जिसके केंद्र में एक ऐसी इमारत है जो अपने भूतहा
प्रकृति के कारण लोगों में चर्चा का विषय बनी हुई है। इस इमारत में रह रही तीन
महिलाओं का जीवन बिलकुल ही जमाने से कट कर चल रहा है। ऐसे में इस इमारत में अचानक
ही कुछ ऐसी घटनाएं घटती हैं जो किसी अलौकिक शक्ति के द्वारा ही संचालित हो सकती है।
लेकिन पंगा तब पड़ता है जब सुनील के कदम इस इमारत में पड़ते हैं।
ये वो चार उपन्यास
हैं जिन्हें आप हेलोवीन पर पढ़ कर हेलोवीन का आनंद उठा सकते हैं। आपको किसी डरावने
कपडे और मुखौटे के पीछे छिपकर किसी पार्टी में जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी क्यूंकि
ये पुस्तकें ही आपका बैठे-बिठाए मनोरंजन कर देंगी।
अगर आप पाठक साहब द्वारा
लिखित कई उपन्यासों के शीर्षकों पर नज़र डालें तो अधिकतर आपको ऐसे उपन्यासों के नाम
नज़र आयेंगे जो बहुत ही डरावने हैं। जैसे की – पिशाच का प्रतिशोध, शैतान की मौत,
खुनी नैकलेस, मुर्दा जी उठा, अँधेरे की छीख आदि। मुझे याद पड़ता है की जब मैंने
पहली बार “पिशाच का प्रतिशोध” उपन्यास अपने हाथों में उठाया था तो तब मेरे मष्तिष्क
में यही बात थी की इसमें कुछ अलौकिक पढने को मिलेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्यूंकि
यह उपन्यास एक “हाउ डन इट?” मार्का उपन्यास निकला। मेरी बातों से आप यह निष्कर्ष न
निकालें की मुझे ऐसे भूतहा कहानी वाले उपन्यास पसंद हैं। बात सिर्फ इतनी सी है की,
पाठक साहब की सभी कहानियां वास्तविकता के करीब और जमीनी हकीकत पर आधारित हैं। ऐसे
में ऐसा शीर्षक दिखना, मीठा खाने के बाद कुछ चटपटा खाने के चाहत के बराबर होता है।
मैं यह देखना चाहता था पाठक साहब अपने इस उपन्यास में किस प्रकार से अलौकिक शक्ति
को प्रस्तुत करते हैं।
आशा है की आप सभी
ने, हेलोवीन की तैयारी कर ली होगी। अगर न की हो, तो ये उपन्यास आराम से पढ़
लीजियेगा। वैसे भी हमारे देश में विदेशी त्योहारों को बड़े ही कठोर दृष्टि से देखा
जाता है। मैंने तो यह तक देखा है की “वेलेंटाइन डे” के दिन प्रेमियों को अच्छी तरह
से प्रसाद दिया जाता है। इसलिए, हेलोवीन में डरावने कपडे पहनकर पड़ोसियों को डराने
से और उनसे दस बातें सुनने से अच्छा है की हम उपरोक्त किताबें निकालें और पढने को
बैठ जाएँ।
अगली दफ़ा, फिर मिलता
एक नए लेख के साथ। तब तक लिए विदा कीजिये (दक्षिणा देने की जरूरत नहीं है ;) )
आभार
राजीव रोशन
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