घात (सुधीर कोहली
सीरीज)
(स्पॉयलर अलर्ट)
एक क्राइम फिक्शन
नावेल में आपको पढने के लिए क्या चाहिए या यूँ कहूँ की क्या-क्या चाहिए। एक मर्डर
हो और उसकी तहकीकात एक डिटेक्टिव करे और अंत में करिश्मासाज तरीके से कातिल का
पर्दा फास हो जाए। लेकिन अगर इस कहानी में कोर्ट रूम ड्रामा हो, वकीलों की बहस हो
और एक घाघ अपराधी हो जो षड्यंत्रों के जाल को ऐसे बुनता हो कि शिकार खुद-ब-खुद
उसमे फंस जाए, तो कहानी एक अविस्मरणीय मनोरंजन को जन्म देती है। एक क्राइम फिक्शन
नावेल में गर कोर्ट रूम ड्रामा हो, एक डिटेक्टिव की शानदार तहकीकात हो, एक कातिल
द्वारा लगाई गयी अटूट घात हो, किसी कि जिन्दगी कि डोर इन्साफ कि तराजू में अटकी
हुई हो और उस डोर को बचाए रखने के लिए जो जद्दोजहद कि जाए, ऐसे मसाले से तैयार हुई
कहानी सच में बेमिसाल होती है।
वहीँ सोने पर सुहागा
वाली बात ये हो जाए कि इस कहानी में फिलोस्फर डिटेक्टिव सुधीर कोहली हो, वो अपना
खास, खासुलखास, एन दिल्ली का खास हरामी, जिसकी पूछ दिल्ली में और दिल्ली के करीब
४० कोस तक है, तब तो मजा ही आ जाए। अगर सुधीर हो किसी कहानी में तो उसकी चुलबुली
लेकिन शरीफ सेक्रेटरी रजनी तो होगी ही जिसके चुटीले संवाद से दिल खिलखिला उठता है।
वहीँ अगर सुधीर कोहली इस नावेल का केंद्रीय किरदार है तो निश्चय सी बात है कि खास
उसकी टाइप की महिलायें जरूर होंगी। जी हाँ, इस कहानी में भी कुछ ऐसे ही किरदार हैं।
वैसे इस नावेल की एक खास बात यह भी है “निम्फोमेनियाक” के बाद दूसरी बार पाठक साहब
ने इस नावेल में सुधीर के पास्ट को दिखाया है।
जी हाँ, इस नावेल का
नाम है “घात” जिसमे आपको क्राइम फिक्शन पढने का पूरा मजा मिलेगा। सुधीर कोहली सीरीज
का यह १८ वां उपन्यास है जो सितम्बर २००५ में पहली बार प्रकाशित हुआ था। एक शानदार
क्राइम फिक्शन के जो सभी मसाले उपरोक्त पहले अनुच्छेद में मैंने आपको बताये हैं वे
सभी आपको इस नावेल में जरूर मिलेंगे। इस नावेल की सभी ख़ास बातें मैंने आपको ऊपर के
दो अनुच्छेद से ही उजागर कर दिया है। उपन्यास की शुरुआत बहुत ही शानदार तरीके से
हुई है और ऐसा मुझे क्यूँ लगता है इसके बारे में मैं खुद कहूँ इससे अच्छा आप पढ़ कर
देख लें।
कहानी को पाठक साहब
ने बड़ी ही मुस्तैदी से आगे बढाया है जिससे एक ऐसे जाल का निर्माण होता है जिसमे
पाठक स्वयं लेखक के जाल में फंसता चला जाता है। इसका मतलब यह हुआ की आप पढना शुरू
करते हैं तो इसे ख़त्म किये बगैर रखना अपने अन्दर के कीड़े को तडपाने जैसा है। जब आप
क्राइम फिक्शन पढ़ते हैं तो आपके अन्दर एक कीड़ा जन्म लेता है कि आगे क्या होगा, ऐसा
होगा कि वैसा होगा, वैसा होगा तो कैसे होगा। कई सवाल मन में उठने लगते हैं। वहीँ
अगर क्राइम फिक्शन एक मर्डर मिस्ट्री और कोर्टरूम ड्रामे का मिश्रण हो तो आपको ये
सवाल किताब पर से नजर नहीं हटाने देंगे। एक कसे हुए कथानक से कहानी बढती जाती है
जिसमे घात-आघात-प्रतिघात के साथ षड्यंत्रों के जाल बुने जाते हैं जो आपके कल्पनाओं
से परे की कहानी को दिखाते हैं।
यह कहानी अनिरुद्ध
खनाल नामक युवक की है जिसे हत्या एवं लूट के जुर्म में दस वर्ष की सजा कोर्ट
द्वारा मुकर्रर हुई है। उसकी बहन नताशा खनाल और स्वयं उसने अदालत में बार-बार यह
गुहार लगाई थी कि वह बेगुनाह है लेकिन अदालत बिना शक उसे मुजरिम करार देते हुए १०
वर्ष कि सजा सुनाई थी। नताशा ने अपने भाई की बेगुनाही के लिए सबूत इकठ्ठा करने के
लिए सुधीर को हायर किया था लेकिन सुधीर के हाथ इस बार कुछ भी नहीं निकला। अनिरुद्ध
खनाल के 2 वर्ष जेल में सजा काटने के बाद उसके जीवन में एक नयी आशा की किरण ने उदय
लिया जब फांसी के तख्ते पर झूलते एक कैदी विष्णु शुक्ला ने यह बयान दिया की उस
हत्या और लूट का मुख्य दोषी वह है और उसके साथ जो इस लूट में शामिल था वह अनिरुद्ध
खनाल नहीं वरन कोई और था।
नताशा खनाल ने फिर
से प्राइवेट डिटेक्टिव की सेवा के लिए सुधीर कोहली को हायर किया। इस नए खुलासे ने
सुधीर के होश फाख्ते कर दिए। सुधीर कोहली फिर से इस केस के गड़े मुर्दे उखारना शुरू
कर देता है। फिर से वही अदालत लगती है जिसमे अनिरुद्ध खनाल को दोषी करार दिया गया
था। वही मजिस्ट्रेट, वही प्रोसीक्यूशन का वकील, वही डिफेन्स का वकील और वही इन्साफ
की देवी आँखों पर पट्टी बांधे हुए न्याय का तराजू उंचा उठाये हुए। प्रोसीक्यूशन का
वकील एस. एल. अग्रवाल, जिसका विष्णु शुक्ला की तहरीरी गवाही के बाद में भी दावा था
की अनिरुद्ध खनाल दोषी है। डिफेन्स का वकील कपिल मकवाना, जिसका शुक्ल के तहरीरी
बयान के बाद दावा था कि अनिरुद्ध खनाल निर्दोष है जबकि 2 साल पहले व्यक्तिगत स्तर
पर वह उसे दोषी मानता था।
विष्णु शुक्ला की
अदालत में पेशी हुई और उसने कबूल किया की जिस हत्या और लूट के लिए अनिरुद्ध खनाल
को दोषी ठहराया जा रहा है, उसका दोषी स्वयं वह है। लेकिन जब प्रोसीक्यूशन के वकील
ने उससे यह सवाल पूछा की उसका साथी कौन था तो भरी अदालत में विष्णु शुक्ला ने
अग्रवाल के सीने में रिवाल्वर कि छः कि छः गोलियां दाग दी। जब तक अदालत में बैठे
तमाम लोगों को होश आता तब तक घंटी बज चुकी थी जिसे अनबजी नहीं किया जा सकता था। जब
मजिस्ट्रेट से विष्णु शुक्ला से यह सवाल पूछा कि अदालत में गन देकर किसने उसकी
सहायता की तो उसने सहज ही अपनी ऊँगली डिफेन्स के वकील कपिल मकवाना पर ठहरा दी और
कपिल मकवाना को गिरफ्तार कर लिया गया। कपिल मकवाना को षड्यंत्रकारी के रूप सिद्ध
करने के लिए इस बात ने भी ताबूत में कील काम किया की जिस रिवाल्वर से हत्या हुई थी
वह कपिल मकवाना का ही था। ऐसे में कपिल मकवाना ने अपने लिए जिस जासूस को हायर किया
वह था दिल्ली का मशहूर प्राइवेट डिटेक्टिव सुधीर कोहली।
यह थी वह घात। लेकिन
विष्णु शुक्ला की मदद किसने की। क्या सच में डिफेन्स के वकील ने उसकी मदद की यह
विष्णु शुक्ला उसे सिर्फ फंसा रहा था। उसने अधिवक्ता अग्रवाल का क़त्ल क्यूँ किया। क्या
ये सच था की अनिरुद्ध खनाल निर्दोष था। विष्णु शुक्ला के बयान के बाद, वह दूसरा
शख्स कौन था जिसने उस लूट और हत्या में उसका साथ दिया था जिसको बचाने के लिए
विष्णु शुक्ल मुहं बंद किये बैठा था। कौन था अग्रवाल और कपिल मकवाना का ऐसा दुश्मन
जो विष्णु शुक्ला की सहायता करके अपना मतलब हर कर सकता था।
ऐसे कई सवाल मैं
आपके लिए छोड़ रहा हूँ क्यूंकि इन्हीं सवालों पर सुधीर कोहली ने काम करना शुरू किया
था। एक वृहद् तहकीकात होने जा रहा था सुधीर के द्वारा क्यूंकि इस सरे-आम, अदालत
में, पुलिस के नाक के नीचे, इन्साफ के देवी के सामने, मजिस्ट्रेट और पुलिस को
छकाते हुए इस हत्या को अंजाम दिया गया था। जहाँ पुलिस कपिल मकवाना को हत्यारा
मानकर तहकीकात बंद कर चुकी थी वहीँ सुधीर ने उसे बेगुनाह मानते हुए अपनी तहकीकात
शुरू की थी। इस षड़यंत्र के जाल में कई सस्पेक्ट आ रहे थे लेकिन कोई भी टिक के नहीं
बैठ पा रहा था। एक खुले छत के नीचे, इतने लोगों को बीच के मर्डर होकर हटा लेकिन
फिर भी सुधीर असली सबूत और सच के लिए तहकीकात करता है और बड़े ही ड्रामेटिक तरीके
से कातिल को बेनकाब करता है।
यह कहना बहुत
मुश्किल है मेरे लिए खासकर की सुधीर सीरीज का कौन सा उपन्यास आप सभी को पढने के
लिए न कहूँ। क्यूंकि सभी बेहतरीन हैं। इसलिए इसे भी पढने कि मुफ्त सलाह जरूर दूंगा।
क्यूँ? जवाब ऊपर ९ अनुच्छेद पढने के बाद मिल जाना चाहिए और न मिले हों तो मुझे
आराम से बिना किसी बेतकल्लुफी के लानत भेज सकते हैं। आपका खादिम विदा लेता है।
खुदा हाफिज
राजीव रोशन
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